"सब एक पल में हुआ, मारने का कोई इरादा नहीं था": त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हत्या के प्रयास के अपराध के लिए दी गई सज़ा कम की

Update: 2022-07-26 10:57 GMT

त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 के तहत दंडनीय हत्या के प्रयास के अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को इस आधार पर कम कर दिया कि घटना पल भर में हुई और दोषी का पीड़ित को मारने का कोई इरादा नहीं था।

जस्टिस अमरनाथ गौड़ और जस्टिस अरिंदम लोध की खंडपीठ ने फैसला सुनाया:

"इस प्रकार विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन द्वारा पेश किए गए भौतिक साक्ष्य के आधार पर अपीलकर्ता को सही तरीके से दोषी ठहराया है और दोषसिद्धि के संबंध में आक्षेपित निष्कर्षों में कोई दोष नहीं है। रिकॉर्ड के अवलोकन और तथ्यों पर विचार करने से पूरी तरह से ऐसा लगता है कि अपराध अचानक से हुआ है; अपीलकर्ता का पीड़ित को मारने का कोई इरादा या मकसद नहीं था; अपीलकर्ता का अपने पिछले जीवन में कोई आपराधिक इतिहास नहीं है; विचाराधीन मामले को छोड़कर किसी अन्य अपराधी में उसकी संलिप्तता नहीं है। तदनुसार, अपीलकर्ता की सजा को 10 साल से घटाकर 7 (सात) साल करना उचित माना जाता है।"

यह अपील अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 447, 326 और धारा 307 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए पारित निर्णय को चुनौती देते हुए दायर की गई।

अभियोजन का मामला यह था कि अपीलकर्ता शिकायतकर्ता के घर में घुस गया और उसे गाली-गलौज करना शुरू कर दिया, जब पीड़ित गौतम अधिकारी घटनास्थल पर यह जानने के लिए पहुंचे कि क्या हो रहा है। उसने स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को क्रोधित कर दिया, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने अधिकारी पर चाकू से हमला किया। इसके परिणामस्वरूप, अधिकारी के पेट पर खून बहने लगा। आरोप है कि आरोपी इतना गुस्से में था कि उसने बार-बार अधिकारी पर चाकू से वार किया।

अपीलकर्ता के वकील ने अपील में स्वीकार किया कि आरोपी-अपीलकर्ता के बीच हाथापाई हुई थी। हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि संपत्ति विवाद के संबंध में शत्रुता के कारण अपीलकर्ता को वर्तमान मामले में झूठा फंसाया गया है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि यदि कोई हमला हुआ, जैसा कि आरोप लगाया गया है तो वह एक पल में गुस्से की वजह से हुआ और अपीलकर्ता का पीड़ित को कोई चोट पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था।

हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सामग्री को खंगालने पर यह विचार किया कि चूंकि आरोपी और पीड़ित के परिवार के बीच कुछ विवाद है। भूमि विवाद के संबंध में आरोपी और पीड़ित के बीच विवाद हुआ। इससे आरोपी-अपीलकर्ता को गुस्सा आ गया, जिससे उसने ऐसा अपराध किया, जो दंडनीय है, पर जानबूझकर नहीं किया गया।

कोर्ट ने कहा,

"अपीलकर्ता का पीड़ित को मारने या उसे कोई गंभीर चोट पहुंचाने का कोई मकसद नहीं था।"

इस प्रकार, अदालत ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन सजा को कम कर दिया।

केस टाइटल: चंदन अधिकारी बनाम त्रिपुरा राज्य

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