"ट्रायल कोर्ट ने अधूरा फैसला पारित किया": मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पीठासीन जज के खिलाफ जांच के आदेश दिए, मामला वापस भेजा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के समक्ष एक अजीबोगरीब आपराधिक अपील दायर की गई है। मामले में ट्रायल कोर्ट ने हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि का "अपूर्ण निर्णय" पारित किया था।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया और जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि जबकि अपीलकर्ता पर दो हत्याओं का मुकदमा चल रहा था, उसे केवल एक ही मामले में दंडित किया गया और दूसरी हत्या के मामले में बरी होने या दोषसिद्धि का कोई उल्लेख नहीं था।
इसी प्रकार निचली अदालत ने भी हत्या के प्रयास के एक आरोप को अनिर्णीत छोड़ दिया।
इस पृष्ठभूमि में, खंडपीठ ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, दो आरोपों को तय करने के उद्देश्य से मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेजना उचित समझा।
हाईकोर्ट ने आगे इस मामले की जांच का निर्देश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि संबंधित मामले में पीठासीन जज ने अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में लापरवाही की या कुछ बाहरी कारणों से अधूरा निर्णय पारित किया गया।
पृष्ठभूमि
आक्षेपित आदेश प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, गोहद, जिला भिंड ने पारित किया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना के दिन अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों का शिकायतकर्ता, भानुप्रताप और उसके परिजनों के साथ झगड़ा हुआ था। बाद में वह हिंसक हो गया, जिसका नतीजा यह रहा कि भानुप्रताप के पिता और चाचा, क्रमशः पहलवान और दर्शन को अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों ने गोली मार दी। उन्होंने भानुप्रताप के दोस्त अजब पर गंभीर हमला किया। उन्होंने भानुप्रताप पर भी गोलियां चलाईं, हालांकि वह भागने में सफल रहे।
इसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया और बाद में अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 147, 148, 149, 302, 307 और 120-बी आईपीसी के अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया।
ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ दो हत्याओं के लिए आईपीसी के धारा 148, 302 या वैकल्पिक 302/149 आईपीसी के तहत आरोप तय किए। भानुप्रताप और अजब की हत्या के प्रयास के मामले में धारा 307/149 आईपीसी के तहत आरोप तय किए।
हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को केवल धारा 302 धारा 307 के तहत केवल एक-एक आरोप के लिए दोषी ठहराया।
परिणाम
निचली अदालत के रिकॉर्ड की जांच करने के बाद हाईकोर्ट ने विचार किया कि क्या निचली अदालत की ओर से पारित निर्णय पूर्ण निर्णय है या नहीं? कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने अपीलकर्ता को धारा 302/149, 307/149 और 148 आईपीसी के तहत उचित ही दोषी ठहराया था।
हालांकि भले ही अपीलकर्ता पर हत्या के दो मामलों और हत्या के प्रयास के दो मामलों के लिए मुकदमा चलाया गया था, फिर भी उस पर क्रमशः धारा 302/149 और धारा 307/149 आईपीसी की एक-एक अपराध के तहत ही आरोप लगाया गया था।
उन्हें पहलवान की हत्या और भानुप्रताप की हत्या के प्रयास के लिए दोषी ठहराया गया था। हालांकि आश्चर्यजनक रूप से, निचली अदालत ने, बिना कोई कारण बताए, अपीलकर्ता को दर्शन की हत्या और अजब की हत्या के प्रयास के लिए न तो दोषी ठहराया और न ही बरी किया।
इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि "निचली अदालत ने अधूरा निर्णय पारित किया था।"
अदालत के समक्ष विचार के लिए अगला प्रश्न उस कार्रवाई के संबंध में था, जिसे उस स्थिति को देखते हुए अपनाया जाना चाहिए, जिसमें ट्रायल कोर्ट का निर्णय अधूरा पाया गया था।
कोर्ट ने कहा,
'अब, विचारार्थ अगला प्रश्न यह है कि चूंकि, इस संबंध में राज्य ने कोई अपील दायर नहीं की है तो क्या यह न्यायालय असहाय है या आईपीसी की धारा 302/149 के तहत तय आरोप के संबंध में निर्णय देने के लिए मामले को वापस कर सकता है।'
कोर्ट ने कहा,
'हालांकि राज्य ने कोई अपील दायर नहीं की है, लेकिन यह कोर्ट ट्रायल कोर्ट के फैसले को उलट नहीं रहा है। केवल यह पाया गया है कि ट्रायल कोर्ट का निर्णय अधूरा है।'
धारा 386 सीपीआरसी, 'अपीलीय न्यायालय की शक्तियां' के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए न्यायालय ने कहा कि-
'वर्तमान परिदृश्य में यह न्यायालय अपीलकर्ता को सजा में वृद्धि के लिए नोटिस जारी नहीं कर सकता क्योंकि उपरोक्त दो आरोपों पर ट्रायल कोर्ट ने कोई सजा नहीं दी है। इसके अलावा यह न्यायालय मामले को पुन: ट्रायल के लिए नहीं भेज सकता, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने कोई प्रक्रियात्मक चूक नहीं की है, बल्कि केवल अधूरा निर्णय पारित किया है। '
न्यायालय ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए धारा 482 सीआरपीसी के तहत मामले को निर्णय लिखने के लिए वापस भेज दिया, जिसे निचली अदालत ने अधूरा छोड़ दिया था।
अदालत ने निचली अदालत को दर्शन की हत्या के लिए धारा 302/149 आईपीसी और अजब की हत्या के प्रयास के लिए धारा 307/149 आईपीसी के तहत आरोपों के संबंध में निर्णय लेने का निर्देश दिया। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह पहलवान की हत्या और भानुप्रताप की हत्या के प्रयास के संबंध में अपने फैसले को वैसे ही रहने दे। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि मामला उस जज को नहीं सौंपा जाना चाहिए, जिसने आक्षेपित अपूर्ण निर्णय पारित किया हो।
आक्षेपित अपूर्ण निर्णय को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने मामले की जांच शुरू करने के निर्देश दिए।
कोर्ट ने कहा, 'जिला जज (निरीक्षण), ग्वालियर को मामले की जांच करने का निर्देश दिया जाता है, और यदि यह पाया जाता है कि पीठासीन जज अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही कर रहे थे, या कुछ बाहरी कारणों से अधूरा निर्णय पारित किया है तो मामला प्रशासनिक पक्ष पर कार्रवाई के लिए माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए। आज से 2 महीने के अंदर जांच पूरी कर लें।'
केस शीर्षक: सूरजभान सिंह बनाम मप्र राज्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एमपी) 13
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