ट्रायल कोर्ट को सीआरपीसी के तहत अपनी कार्यवाही पर रोक लगाने का अधिकार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि एक ट्रायल कोर्ट किसी आपराधिक मामले में अपनी कार्यवाही पर रोक नहीं लगा सकता है और संबंधित सिविल मामले के फैसले का आपराधिक मामले की कार्यवाही पर कोई असर नहीं पड़ता है।
जस्टिस विवेक रूसिया की सिंगल जज बेंच ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता किसी मुकदमे में अपनी कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए ट्रायल कोर्ट को कोई अधिकार नहीं देती है।
कोर्ट ने कहा,
“…एक बार आरोपपत्र दाखिल हो जाने के बाद ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को या तो बरी किया जा सकता है या दोषी ठहराया जा सकता है। ट्रायल कोर्ट द्वारा ही मुकदमे पर रोक लगाने का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करके या उच्चतर क्षेत्राधिकार पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग कर कार्यवाही को रद्द कर सकती है या रोक सकती है लेकिन ट्रायल कोर्ट स्वयं कार्यवाही पर रोक नहीं लगा सकता है…।”
पीठ ने कैलाश बनाम अर्जुन सिंह और अन्य (2022) पर भरोसा किया, जहां एक सिविल मुकदमे के लंबित होने के कारण आपराधिक शिकायत को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को हाईकोर्ट की समन्वय पीठ द्वारा रद्द कर दिया गया था।
अदालत ने प्रतिवादी की इस दलील को खारिज कर दिया कि जब बिक्री समझौते और रसीद की वैधता पहली अपील में हाईकोर्ट के विचाराधीन है तो निचली अदालत आपराधिक मामले को आगे नहीं बढ़ा सकती है।
तदनुसार, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को मुकदमे को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: जयराज चौबे बनाम दिनेश पुजारी
केस नंबर: विविध आपराधिक मामला संख्या 9533/2022