ट्रांसजेंडर व्यक्ति, जो लिंग बदलने के लिए सर्जरी कराकर महिला बनी है, वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2023-03-31 16:08 GMT

Bombay High Court

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक ट्रांसजेंडर महिला, जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी कराई है, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक "पीड़ित व्यक्ति" हो सकती है और उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरणपोषण की मांग करने का अधिकार है।

जस्टिस अमित बोरकर ने एक पुरुष की याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अपनी पत्नी, जो कि एक ट्रांस-महिला थी, को दिए गए भरण-पोषण को चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा-

"...वह ट्रांसजेंडर जिसने जेंडर बदलने के लिए सर्जरी की है, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के अर्थ के तहत एक पीड़ित व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसलिए, यह माना जाता है कि एक व्यक्ति जिसने महिलाओं के रूप में खुद की पहचान के ‌लिए अपने ‌अधिकारों का प्रयोग किया है, उसे तय करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया है, वह घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के अर्थ में एक पीड़ित व्यक्ति है।

अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं की सुरक्षा की धारा 2 (ए) के तहत 'पीड़ित व्यक्ति' शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना है।

मामले में याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी जो कि एक ट्रांसजेंडर महिला था, से विवाह किया था, जिसकी 2016 में सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई थी। प्रतिवादी ने डीवी एक्ट के तहत मामला दायर किया और अंतरिम भरणपोषण की मांग की। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे भरणपोषण दिया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपील में इसे बरकरार रखा।

इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी 'पीड़ित व्यक्ति' की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि इसमें केवल घरेलू संबंधों में महिलाएं शामिल हैं। उसने कहा कि प्रतिवादी के पास ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 के तहत प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उसे डीवी अधिनियम के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है।

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकार को मान्यता दी है, जिसने अपनी जेंडर आइडेंटिटी के अनुसार अपने जेंडर को बदल दिया है, उसे ‌रि-एसाइन किए गए जेंडर के आधार पर जेंडर पहचान को मान्यता दी जाए।

अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी कराने वाली एक ट्रांसजेंडर महिला को डीवी अधिनियम की धारा 2 (ए) के तहत "पीड़ित व्यक्ति" माना जा सकता है।

अदालत ने कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 2(एफ) जो घरेलू संबंध को परिभाषित करती है, लिंग तटस्थ है।

अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की धारा 2 (के) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को परिभाषित करती है, भले ही उनकी सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई हो या नहीं। अधिनियम की धारा 7 एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सक्षम बनाती है जिसने अपना लिंग बदलने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर करने के लिए सर्जरी की है।

अदालत ने कहा कि "महिला" शब्द डीवी अधिनियम की धारा 2 (ए) के आयाम को नियंत्रित करता है। अदालत ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम यूनियन ऑफ इडिया के मामले पर भरोसा किया और कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति जो सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी से गुजरे हैं, वे अपनी पसंद के लिंग के हकदार हैं।

कोर्ट ने कहा कि डीवी एक्ट का मकसद घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराना है। इस प्रकार, पीड़ित व्यक्तियों की परिभाषा को व्यापक संभव शब्दों में व्याख्या करने की आवश्यकता है।

अदालत ने कहा कि धारा 2 (ए) में महिला शब्द अब महिलाओं और पुरुषों की बाइनरी तक सीमित नहीं है और इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जिनकी सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई है।

केस टाइटलः विट्ठल माणिक खत्री बनाम सागर संजय कांबले @ साक्षी विट्ठल खत्री और अन्य।

केस नंबरः रिट याचिका संख्या 4037/2021

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