FACEBAKE विवाद में मेटा की याचिका का हाईकोर्ट ने किया निपटारा, ट्रेडमार्क नियमों के पालन पर कोर्ट की मुहर
दिल्ली हाईकोर्ट ने मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक (पूर्व में फेसबुक) द्वारा दायर निष्पादन याचिका को यह देखते हुए निपटा दिया कि FACEBAKE और FACECAKE ब्रांड के संचालकों ने अदालत के पहले के आदेशों का पूरी तरह पालन किया। अदालत ने पाया कि प्रतिवादियों ने मेटा के FACEBOOK ट्रेडमार्क से मिलते-जुलते भ्रामक नामों का उपयोग बंद कर दिया, जो बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने 24 दिसंबर, 2025 को पारित अपने आदेश में 6 जुलाई, 2022 के उस फैसले के अनुपालन की समीक्षा की, जिसमें FACEBAKE और FACECAKE जैसे नामों संबंधित डोमेन नेम और ईमेल एड्रेस के उपयोग पर स्थायी रोक लगा दी गई। उस समय अदालत ने मेटा के पक्ष में 50,000 का सांकेतिक हर्जाना और कानूनी खर्च भी देने का आदेश दिया। मेटा ने अपनी हालिया याचिका में आरोप लगाया कि संबंधित पक्ष अभी भी प्रतिबंधित ट्रेडमार्क का उपयोग कर रहे हैं और हर्जाने के भुगतान में जानबूझकर देरी की जा रही है।
सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि विवादित बेकरी आउटलेट्स ने अपनी ब्रांडिंग को पूरी तरह से बदलकर अब BUNCAKE कर लिया। प्रतिवादियों ने स्पष्ट किया कि सभी पुराने साइनबोर्ड हटा दिए गए और व्यवसाय को नए नाम के साथ संचालित किया जा रहा है। मेटा ने भी बाद में अदालत के समक्ष इस बात की पुष्टि की कि उल्लंघन के जो भी शेष मामले थे, उनका समाधान कर लिया गया। इस अनुपालन को दर्ज करते हुए अदालत ने माना कि अब मामले में कोई विवाद शेष नहीं रह गया।
हर्जाने और कानूनी खर्च के भुगतान में देरी के मुद्दे पर अदालत ने मेटा के रुख पर सवाल उठाए। हालांकि मेटा ने तीन साल की देरी की शिकायत की थी, लेकिन रिकॉर्ड से यह स्पष्ट हुआ कि बेकरी संचालकों ने भुगतान करने के लिए मेटा से बार-बार बैंक विवरण मांगे। अदालत ने टिप्पणी की कि भुगतान अंततः 16 सितंबर, 2025 को किया गया और इस मामले में स्वयं डिक्री धारक (मेटा) ने आदेश के तहत मिलने वाली राशि को स्वीकार करने में सक्रियता नहीं दिखाई।
इन परिस्थितियों के आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हर्जाने और स्थायी व्यादेश (Injunction) से संबंधित आदेशों का संतोषजनक पालन किया जा चुका है। निष्पादन याचिका को निपटाते हुए अदालत ने यह स्पष्ट किया कि स्थायी रोक का आदेश भविष्य में भी प्रभावी रहेगा। यदि भविष्य में इन ट्रेडमार्क नियमों का दोबारा उल्लंघन होता है तो मेटा को फिर से अदालत से राहत मांगने की स्वतंत्रता होगी।