यूएपीए नियमों के तहत अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए समय सीमा अनिवार्य, विलंब के मामले में आरोपी अंतरिम जमानत का हकदार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2023-05-23 07:45 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि जांच के निष्कर्ष और चालान दाखिल करने पर, यदि अभियोजन की स्वीकृति पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) (अनुशंसा और अभियोजन की स्वीकृति) नियमावली, 2008 में निर्दिष्ट अवधि के भीतर सूचित नहीं किया जाता है तो अभियुक्त को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

यह देखते हुए कि यूएपीए के प्रावधान कठोर हैं और यह ध्यान में रखते हुए कि अनुमति के लिए एक विशिष्ट समय सीमा निर्दिष्ट की गई है, जस्टिस हरिंदर सिंह सिद्धू और जस्टिस ललित बत्रा की खंडपीठ ने कहा,

"यह न्याय का मजाक होगा यदि अभियुक्त को जांच के निष्कर्ष के बाद लंबी अवधि के लिए हिरासत में रखा जाता है, सिर्फ अनुमति का इंतजार करने के लिए ताकि संज्ञान लिया जा सके। चूंकि यूए (पी) अधिनियम या नियमों में मंजूरी देने में देरी के लिए कोई परिणाम निर्धारित नहीं किया गया है, हमारे विचार में यह उचित होगा कि ऐसे मामले में अभियुक्त को मंजूरी मिलने के बाद आत्मसमर्पण करने के वचन पर अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया जाए।"

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में अंतरिम जमानत दिए जाने के समय आरोपी को यह वचन देना होगा कि मंजूरी मिलते ही वह अदालत के सामने आत्मसमर्पण कर देगा। पीठ ने कहा कि आत्मसमर्पण करने पर आरोपी के पास जमानत के लिए आवेदन करने सहित अन्य उपायों का लाभ उठाने का विकल्प उपलब्ध होगा।

यूएपीए नियमों में निर्धारित "मंजूरी देने के लिए समय सीमा" के केरल हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए खंडपीठ ने हालांकि, इस सवाल पर कोई राय व्यक्त नहीं की कि अगर निर्धारित अवधि के बाद प्रदान किए गए स्वीकृति आदेश पर संज्ञान लिया जाता है तो क्या वह दूषित होगा।

अदालत ने कहा, "वह स्थिति हमारे सामने नहीं है और इस पर विचार करने का कोई अवसर नहीं है।"

इसने यह भी नोट किया कि केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील वापस ले ली गई थी और कानून के सवाल को खुला रखा गया था। अदालत ने विजय राजमोहन बनाम सीबीआई पर भी भरोसा किया, जहां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के संदर्भ में मंजूरी देने का सवाल उठा था।

अदालत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जालंधर की ओर से गुलशन शर्मा नामक व्यक्ति के कार्यालय के बाहर दीवार पर काले पेंट से 'खालिस्तान जिंदाबाद' लिखने से संबंधित यूएपीए मामले में धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत आवेदन की अस्वीकृति के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की।

अपीलकर्ता धारा 153-ए और 153-बी के तहत आईपीसी की धारा 120-बी के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13 और पीडीपीए, 1985 की धारा 3 के तहत आरोपी है।

चार्जशीट की प्रस्तुति के लिए 90 दिनों की वैधानिक अवधि 10 अक्टूबर, 2022 को समाप्त होनी थी क्योंकि समय अवधि बढ़ाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया गया था। पुलिस ने उसके खिलाफ 8 अक्टूबर को धारा 153-ए, 153-बी, 120-बी आईपीसी, यूए (पी) अधिनियम की धारा 13 और पीडीपीए 1985 की धारा 3 के तहत चार्ज शीट पेश की, जबकि पुलिस ने सक्षम अधिकारियों से यूए (पी) अधिनियम की धारा 45 और सीआरपीसी की धारा 196 के तहत मंजूरी प्राप्त नहीं की थी।

अदालत ने कहा कि 6 अक्टूबर, 2022 को अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए एक आवेदन दिया गया था और उसके खिलाफ चार्जशीट 8 अक्टूबर, 2022 को अदालत में पेश की गई थी।

अदालत ने अभियोजन स्वीकृति की मांग करने वाले आवेदन का जिक्र करते हुए कहा, "इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। नियमों के तहत निर्धारित अवधि समाप्त हो चुकी है।”

नियम 3 के अनुसार, प्राधिकरण, धारा 45 यूएपीए की उप-धारा (2) के तहत, अपनी रिपोर्ट, जिसमें सिफारिश शामिल होगी, केंद्र सरकार या राज्य सरकार को, जैसा भी मामला हो, संहिता के तहत जांच अधिकारी द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य की प्राप्ति के सात कार्य दिवसों के भीतर प्रस्तुत करेगा।

आरोपी को अंतरिम जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि वह एक हलफनामा दायर करेगा कि अगर मंजूरी दी जाती है तो वह वापस आत्मसमर्पण कर देगा।

नोट: जस्टिस सिद्धू 16 मई को सेवानिवृत्त हुए।

केस टाइटल: मनजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य


Tags:    

Similar News