''हलाल फूड'' स्टिकर हटाने के लिए बेकरी के मालिक को धमकायाः केरल हाईकोर्ट ने अभियुक्तों को अग्रिम जमानत दी
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक बेकरी में हलाल खाद्य पदार्थ परोसने के विरोध में उसके कर्मचारियों को नोटिस भेजने वाले दो व्यक्तियों को अग्रिम जमानत दे दी है।
हालांकि आवेदकों के खिलाफ दंगा और आपराधिक धमकी देने के इरादे से जानबूझकर उकसाने के लिए मामला दर्ज किया गया था (भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 और 506) जो कि जमानती अपराध है, परंतु अदालत ने कहा कि उनकी यह आशंकाएं उचित हैं कि उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए और 295ए के तहत गैर-जमानती अपराध का केस दर्ज किया जा सकता है।
जस्टिस अशोक मेनन ने कहा,
''भले ही आईपीसी की धारा 153-ए या 295-ए को एफआईआर में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन एफआईआर के विवरण से संकेत मिलता है कि आवेदकों के कृत्य का उद्देश्य दो धार्मिक समूहों के बीच असहमति को बढ़ावा देना था। ऐसी परिस्थितियों में, एक संभावना है कि उन गैर-जमानती अपराधों को एफआईआर में शामिल कर लिया जाए। इसलिए आवेदकों द्वारा व्यक्त की गई गिरफ्तारी की आशंका वाजिब है।''
केस क तथ्य
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने एक शाम को कुरुमासेरी जंक्शन पर स्थित एक मोदी बेकरी के मालिक को इस बात के लिए धमकाया क्योंकि बेकरी के बाहर एक स्टिकर लगा था कि यहां पर हलाल फूड परोसा जाता है।
यह भी दावा किया गया कि आवेदकों ने बेकरी के एक कर्मचारी को डराया और उसे नोटिस दिया कि अगर बेकरी के बाहर से यह स्टिकर नहीं हटाया गया तो वह बेकरी का बाॅयकट कर देंगे और कुछ समूह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी करेंगे। यह भी कहा गया कि नोटिस 'हिंदू ऐक्यवेदी' के लेटरहेड पर प्रिंट किया गया था।
पक्षकारों ने क्या तर्क दिया
अग्रिम जमानत की मांग करते हुए आवेदकों ने दावा किया कि यह बेकरी परकदावु पंचायत नामक जगह पर स्थित है,जहां 36,000 की कुल आबादी में से केवल 7 मुस्लिम परिवार हैं।
बेकरी के कर्मचारी ने दूसरे आवेदक को सूचित किया था कि वे बेकरी में केवल हलाल फूड बेचते हैं। इस पर,दूसरे आवेदक ने जोर देकर कहा कि स्टिकर में यह कहा जाना चाहिए कि केवल 'हलाल फूड' परोसा जाता है।
आवेदकों ने प्रस्तुत किया कि,
''बेकरी उस क्षेत्र में रहने वाले हिंदुओं को हलाल भोजन खाने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है और यही कारण है कि आवेदकों ने स्टिकर को हटाने पर जोर दिया और कहा कि वे बेकरी की ऐसी गतिविधियों का विरोध करेंगे।''
आवेदकों ने अदालत को यह भी बताया कि बेकरी से स्टिकर को तुरंत हटा लिया गया था और राजनीतिक दलों के इशारे पर उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है। चूंकि उन्हें एफआईआर में आईपीसी की धारा 153ए और 295ए को भी शामिल किए जाने आशंका है, इसलिए उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए अदालत का रुख किया है।
वर्तमान में आवेदकों के खिलाफ कथित अपराध केवल आईपीसी की धारा 153 और 506 के तहत दर्ज किया गया है। दोनों अपराध जमानती हैं और इसलिए अग्रिम जमानत के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर किया गया आवेदन अनुरक्षणीय नहीं है। परंतु आवेदकों को आशंका है कि गैर-जमानती धाराएं 153ए और 295ए के तहत उनके खिलाफ केस दर्ज किया जा सकता है ताकि उनको कैद किया जा सके।
वही अदालत की कार्यवाही के दौरान वरिष्ठ लोक अभियोजक संतोष पीटर ने आईपीसी की धारा 153 ए और 295 को एफआईआर में शामिल किए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया।
कोर्ट ने क्या कहा
आईपीसी की धारा 153ए और 295ए पर चर्चा करने के बाद, अदालत ने पाया कि प्राथमिकी को पढ़ने से यह संकेत नहीं मिला है कि आवेदकों ने दो समूहों के बीच नफरत को बढ़ावा देने के लिए कोई कार्य किया है।
हालांकि, एफआईआर के तथ्यों ने यह संकेत दिया है कि आवेदकों के कृत्य का उद्देश्य दो धार्मिक समूहों के बीच असहमति को बढ़ावा देना था।
धारा 153ए के बारे में, कोर्ट ने कहा,
''आईपीसी की धारा 153-ए के तहत दंडनीय अपराध को आकर्षित करने के लिए अभियुक्त ने शब्दों द्वारा, या तो बोलकर या लिखकर, या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या अन्यथा, प्रचार करके या प्रचार करने का प्रयास करके, या धर्म, जाति, जन्म स्थान,निवास के स्थान,भाषा,जाति या समुदाय के आधार पर या कोई अन्य आधार, जो भी हो, विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा या क्षेत्रीय समूहों या जाति या समुदायों के बीच दुश्मनी की भावना, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा देने का प्रयास किया हो या ऐसा कोई भी कार्य किया हो जो कि विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण हो और जो सार्वजनिक शांति को भंग कर सकता है या भंग करने की संभावना रखता हो।''
धारा 295-ए के तहत अपराध के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि,
''.. यह एक जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य होना चाहिए, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना हो।''
यह देखते हुए कि आवेदकों द्वारा व्यक्त की गई गिरफ्तारी की आशंका उचित है, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक पूर्व-गिरफ्तारी जमानत के हकदार हैं।
इसलिए, अदालत ने निर्देश दिया कि आवेदकों को 50-50 हजार रुपये के बांड व दो-दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत पर रिहा कर दिया जाए।
आवेदकों की तरफ से एडवोकेट ई.एस सोनी, आर.कृष्णा राज और कुमारी संगीता एस नायर पेश हुए।
बेकरी के मालिक की तरफ से अधिवक्ता इनोक डेविड साइमन जोएल, एस श्रीदेव, रोनी जोस, सिमिल चेरियन कोट्टिल पेश हुए।
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