गैर-जमानती मामले में जमानत की प्रारंभिक स्थिति में अस्वीकृति और जमानत को रद्द करने के लिए अलग- अलग आधार पर निपटा जाना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट
एक गैर-जमानती मामले में जमानत खारिज होने और जमानत रद्द करने के बीच के अंतर को देखते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने एक आरोपी व्यक्ति के जमानत आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और जमानत की शर्तों का घोर उल्लंघन किया।
आवेदक (मूल शिकायतकर्ता) ने कहा कि उसके घर से 42,35,000 रुपये का सामान चोरी हो गया था और परिणामस्वरूप आईपीसी की धारा 457, 454, 380 और 114 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए शिकायत दर्ज की गई थी।
हालांकि, यह प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी संख्या 2 (अभियुक्त व्यक्ति) ने वर्तमान कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान एक समान प्रकृति का अपराध किया और इसलिए, जमानत को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अतिरिक्त दावे यह भी थे कि आरोपी व्यक्ति को वर्तमान आवेदन के लिए 2017 में नोटिस दिया गया था और फिर भी उसने इसमें सहयोग नहीं करने का विकल्प चुना।
एपीपी ने प्रस्तुत किया कि आरोपी व्यक्ति ने याचिका के लंबित रहने के दौरान समान प्रकृति के कई अपराध किए थे। 2021 में दो और अपराध किए गए और इसलिए जमानत रद्द की जानी चाहिए।
जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने रिकॉर्ड पर सबूतों को नोट करते हुए कहा कि आरोपी व्यक्ति ने कुल छह अपराध किए हैं और अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और वर्तमान आवेदन के लंबित रहने के दौरान जमानत की शर्तों का उल्लंघन किया। आरोपी व्यक्ति को 2017 के महीने में बहुत पहले नोटिस भी दिया गया था और फिर भी कोर्ट के नोटिस के आलोक में उसकी ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं किया गया था। जस्टिस शास्त्री ने टिप्पणी की कि इस आवेदन का निपटारा करते समय प्रतिवादी नंबर 2 की इस मानसिकता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्ति के दुराचार के बारे में संबंधित पुलिस थाने की रिपोर्ट पर भी भरोसा किया जिसमें आरोपी ने अन्य आरोपी व्यक्तियों और एक पुलिस अधिकारी पर हमला किया था। यह कहा गया कि अदालत आश्वस्त है कि प्रतिवादी नंबर 2 जारी रखने के लिए किसी भी स्वतंत्रता के लायक नहीं है।"
कोर्ट ने मयकाला धर्मराजम एंड अन्य बनाम तेलंगाना राज्य एंड अन्य पर भरोसा जताया जिसमें कहा गया था,
"रघुबीर सिंह बनाम बिहार राज्य में इस अदालत ने माना कि जमानत रद्द की जा सकती है जहां (i) आरोपी समान आपराधिक गतिविधि में लिप्त होकर अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करता है, (ii) जांच के दौरान हस्तक्षेप करता है, (iii) साक्ष्य या गवाह के साथ छेड़छाड़ का प्रयास करता है, (iv) गवाहों को धमकाते हैं या ऐसी ही गतिविधियों में लिप्त होते हैं जो सुचारू जांच में बाधा उत्पन्न करती हैं, (v) उनके दूसरे देश में भागने की संभावना है, (vi) जांच के दौरान एजेंसी के समक्ष समय पर पेश नहीं होते, (vii) खुद को उसकी जमानत की पहुंच से बाहर रखने का प्रयास करता है, आदि। उपरोक्त आधार हैं जहां जमानत रद्द की जा सकती है।"
जमानत रद्द करने और जमानत की अस्वीकृति के बीच अंतर को नोट करने के लिए X. बनाम तेलंगाना राज्य एंड अन्य के संदर्भ में कहा,
"शुरुआती स्टेज में एक गैर-जमानती मामले में जमानत की अस्वीकृति और इस तरह दी गई जमानत को रद्द करने पर विचार किया जाना चाहिए और अलग-अलग आधार पर निपटा जाना चाहिए। जमानत रद्द करने के आदेश के लिए बहुत ही कठोर और भारी परिस्थितियां आवश्यक हैं।"
नतीजतन, हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी व्यक्ति को और कोई स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती है।
केस टाइटल: आसिफभाई हाजीबदुल भाया बनाम गुजरात राज्य एंड 1 अन्य
केस नंबर: आर/सीआर.एमए/14875/2017
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