इच्छुक गवाह की गवाही की अतिरिक्त सावधानी और सतर्कता के साथ जांच की जानी चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-03-17 01:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा है कि मामले की सुनवाई के दौरान इच्छुक गवाहों की गवाही की अतिरिक्त सावधानी और सतर्कता से जांच की जानी चाहिए। हत्या के प्रयास के मामले में निचली अदालत के बरी करने के आदेश के खिलाफ शिकायतकर्ता द्वारा दायर एक अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

मामले में रुचि रखने वाले गवाहों के बयानों में गंभीर विसंगतियां पाते हुए, जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने अक्टूबर 2014 के एएसजे, महोबा द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा, जिसके तहत धारा 387, 307/34, 452, 323/34 और 427 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए दो आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

मामला

श‌िकायतकर्ता/अपीलकर्ता ने थाने में रिपोर्ट दी थी कि जब वह अपने घर जा रहा था, हरिराम प्रजापति (आरोपी प्रतिवादी संख्या 2) और धीरेंद्र सिंह (आरोपी-प्रतिवादी संख्या 3) ने शिकायतकर्ता को पकड़ लिया और उस पर बंदूक, लात-घूंसों से हमला किया और कहा कि वे उसे तभी छोड़ेंगे जब वह 10,000 रुपये देगा।

आगे आरोप लगाया गया कि उन्होंने उसे बंदूक और देसी पिस्टल से जान से मारने की धमकी दी। मौका पाकर शिकायतकर्ता अपने घर की ओर भागा और तभी एक अन्य आरोपी (धन्नी) ने जान से मारने की नीयत से 315 बोर की देसी पिस्टल से उस पर फायरिंग कर दी।

हालांकि, गोली शिकायतकर्ता की कनपटी को छूकर ‌निकल गई और वह बाल-बाल बच गया। इसके बाद, आरोपी कथित रूप से शिकायतकर्ता के घर में घुस गए । उन्होंने उसकी मां और बहन पर लात-घूसों और जूतों से मारा और घरेलू सामान नष्ट कर ‌दिए। साथ ही उन्होंने धमकी दी कि अगर शिकायतकर्ता ने इसकी रिपोर्ट की तो यह उसके लिए अच्छा नहीं होगा।

उक्त आरोप पर प्रकरण दर्ज किया गया और विवेचना के बाद आरोपी-प्रतिवादियों के खिलाफ धारा 387, 307/37, 452, 323/34, 427 आईपीसी के तहत आरोप पत्र पेश किया गया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।

कोर्ट की टिप्पणियां

शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष ने मुख्य रूप से 3 गवाहों, पीडब्लू-1, 2 और 4 की जांच की, जो क्रमशः शिकायतकर्ता, उसकी मां और उसकी बहन हैं। इसके अलावा, अदालत ने इच्छुक गवाहों की गवाही में निम्नलिखित विसंगतियां भी पाईं, और इसलिए, यह माना गया कि अभियोजन पक्ष के गवाह भरोसेमंद नहीं लगते हैं:

-शिकायतकर्ता/पीडब्ल्यू-1 की गवाही से संकेत मिलता है कि आरोपी ने उसे एफआईआर दर्ज न करने की धमकी दी थी और इसलिए, अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा धमकी दिए जाने के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज करने के लिए अकेले जाने में पीडब्ल्यू-1 का आचरण अप्राकृतिक था।

-पीडब्ल्यू-1 ने आरोप लगाया था कि आरोपी व्यक्तियों ने उसे बंदूक, डंडे और लातों से मारा था, लेकिन इसका कोई निशान नहीं दिखा और न ही खून बह रहा था। आरोपी ने उसे जोर से नहीं मारा था बल्कि धीरे से मारा था। पीडब्लू-3 जिसने पीडब्लू-1 की मेडिकल जांच की, उसे पीडब्लू-1 के शरीर पर कोई चोट नहीं मिली।

-पीडब्लू-1 ने कहा है कि उसकी बहन का मेडिकल परीक्षण भी उसी दिन किया गया था जबकि बहन पीडब्लू-4 ने कहा कि उसकी मेडिकल जांच नहीं की गई थी। पीडब्लू-4 की कोई रिपोर्ट रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है और पीडब्लू-3 द्वारा इस संबंध में कोई बयान नहीं दिया गया है।

-पीडब्ल्यू-1 ने कहा था कि वह अकेले थाने गया था, हालांकि, पीडब्ल्यू-2 ने कहा कि उसकी बेटी भी उसके साथ पुलिस स्टेशन गई थी।

-पीडब्ल्यू-4 (शिकायतकर्ता की बहन) का बयान कि आरोपी ने उसकी मां को देसी प‌िस्टल से मारा और दुकान का सामान फेंक दिया और उसकी बहन की शादी के गहने और अन्य सामान ले गए, जबकि उसकी भाभी ने पीडब्लू-1 और पीडब्लू-2 के बयानों से पुष्टि नहीं की। ये बयान झूठे और अप्राकृतिक प्रतीत होते हैं।

-पीडब्लू-2 ने कहा कि जब ‌शिकायतकर्ता पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए गया तो आरोपी ने सामान तोड़ दिया था। शिकायतकर्ता की रिपोर्ट में भी सामान टूटने का उल्लेख किया गया था, जो यह दिखाता है, जैसा कि अदालत ने नोट किया कि अभियोजन की पूरी कहानी सुनियोजित और मनगढ़ंत थी, अन्यथा इस तथ्य का उल्लेख रिपोर्ट में नहीं होता।

इसे ध्यान में रखते हुए और यह मानते हुए कि निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों के बयानों की पूरी तरह से जांच की और पाया कि पीडब्लू-1, पीडब्लू-2 और पीडब्लू-4 के बयानों की जांच करने पर 8 गंभीर विसंगतियां सामने आई थीं। हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता अपील को स्वीकार करने के लिए कोई आधार बनाने में विफल रहा था और इस प्रकार, अपील को स्वीकार करने के चरण में ही खारिज कर दिया गया।

केस शीर्षक - नोखे लाल बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य

केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 116

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