घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत ‘अस्थायी निवास’ में वैवाहिक घर की अशांति के बीच पीड़ित का आश्रय शामिल हैः जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2023-08-15 09:00 GMT

Jammu and Kashmir and Ladakh High Court

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के तहत ‘‘अस्थायी निवास’’ शब्द की व्याख्या को स्पष्ट करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि ‘‘अस्थायी निवास’’ उन स्थितियों को शामिल करता है जहां एक व्यक्ति को घरेलू हिंसा (या जहां उन्हें अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाला गया हो) के कारण आश्रय/शरण लेने के लिए मजबूर किया जाता है।

जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,

‘‘घरेलू हिंसा अधिनियम,2005 के तहत परिकल्पित ‘‘अस्थायी निवास’’ एक ऐसा निवास हो सकता है जिसमें एक पीड़ित व्यक्ति को उसके साथ हुई घरेलू हिंसा के मद्देनजर(या जहां उन्हें अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाला गया हो या वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा हो) आश्रय लेने के लिए मजबूर किया जाता है या नौकरी लेने या कुछ व्यवसाय करने के लिए मजबूर किया जाता है।’’

यह फैसला उस याचिका पर आया है जिसमें अधिनियम के तहत एक आवेदन पर विचार करने के मामले में त्राल स्थित एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी गई थी। इस मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ विभिन्न राहतों की मांग करते हुए अधिनियम की धारा 12 के तहत प्रतिवादियों ने एक आवेदन दायर किया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता, मट्टन अनंतनाग की स्थायी निवासी है परंतु उसने उन्हें परेशान करने के इरादे से रणनीतिक रूप से त्राल में आवेदन दायर किया, जहां वह वर्तमान में रहती है। उन्होंने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट के पास भौगोलिक स्थिति के आधार पर मामले पर फैसला देने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

अदालत के समक्ष उठाए गए मुद्दे की जड़ अधिनियम की धारा 27 की व्याख्या में थी, जिसमें कहा गया है कि अधिनियम के तहत एक याचिका उस अदालत में दायर की जा सकती है जहां पीड़ित व्यक्ति अस्थायी रूप से रहता है, व्यवसाय करता है या कार्यरत है।

शुरुआत में, जस्टिस वानी ने कहा कि अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों का अवलोकन स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है कि घरेलू हिंसा अधिनियम,2005 के तहत एक याचिका उस अदालत में दायर की जा सकती है जहां ‘‘पीड़ित व्यक्ति स्थायी या अस्थायी रूप से निवास करता है या व्यवसाय करता है या कार्यरत है।”

कोर्ट ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट, बैकवर्ड क्लास सर्टिफिकेट, जन्म तिथि प्रमाण पत्र और आधार कार्ड सहित विभिन्न आधिकारिक दस्तावेजों की ओर इशारा किया, जो सभी त्राल में प्रतिवादी के वर्तमान निवास को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय युवा कोर के सदस्य के रूप में उसकी भागीदारी ने उसके निवास के दावे की तथ्यात्मक सटीकता को और मजबूत किया है। इसके विपरीत, याचिकाकर्ताओं ने इस अच्छी तरह से प्रमाणित दस्तावेज़ का विरोध या विवाद करने के लिए कोई सबूत कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया।

स्थापित कानूनी स्थिति और मौजूदा मामले में इसकी प्रयोज्यता को देखते हुए पीठ ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और तदनुसार इसे खारिज कर दिया।

केस टाइटल-आमिर जाविद वाज़ा व अन्य बनाम गौसिया जान व अन्य

साइटेशन-2023 लाइव लॉ (जेकेएल) 216

फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News