प्रतिवादी ने जब उत्तर नहीं दिया तो पक्षकारों को बातचीत करने के लिए नहीं कहा जा सकता, इस आधार पर परिसीमा अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि पक्षकारों को बातचीत करने के लिए नहीं कहा जा सकता है जब प्रतिवादी ने आवेदक के पत्रों का जवाब नहीं दिया हो। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता को लागू करने की परिसीमा अवधि को ऐसे परिदृश्य में नहीं बढ़ाया जाएगा।
जस्टिस के लक्ष्मण की एकल पीठ ने माना कि परिसीमा अवधि तब शुरू होगी जब भुगतान की देयता पक्षकार द्वारा विवादित हो और केवल पत्र लिखने से परिसीमा अवधि का विस्तार नहीं होगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि केवल इसलिए कि पक्षकार ने अपने नामित मध्यस्थ को नियुक्त किया है, यह स्वीकार करने का कोई आधार नहीं कि उक्त वाद मध्यस्थ विवाद है, जब नियुक्ति आवेदक के दावों की परिसीमा अवधि पर आपत्ति करने के अधिकार के पूर्वाग्रह के बिना की गई है।
तथ्य
एनसीसी (प्रतिवादी) और आईएल एंड एफएस इंजीनियरिंग कंपनी ने संघ का गठन किया और पांडिचेरी के लिए चार-लेन एक्सप्रेसवे कार्यक्रम के निर्माण के लिए एनएचएआई के साथ समझौता किया। कंसोर्टियम ने परियोजना कार्य के निष्पादन के लिए पांडिचेरी टिंडीवनम टोलवे प्राइवेट लिमिटेड (पीटीटीपीएल) बनाया।
आईएल एंड एफएस इंजीनियरिंग कंपनी के साथ वित्तीय मुद्दों के कारण प्रतिवादी ने इसके साथ अनुबंध समाप्त कर दिया और इसे टेरा इंफ्रा डेवलपमेंट लिमिटेड (आवेदक) को सौंप दिया।
प्रोजेक्ट का काम पूरा होने में देरी हो रही थी। तदनुसार, आवेदक ने विलम्ब के लिए मुआवजे का दावा करते हुए प्रतिवादी को दिनांक 05.02.2013 को पत्र लिखा। इसके उत्तर में प्रतिवादी ने दावा की गई राशि का भुगतान करने के अपने दायित्व पर विवाद करते हुए दिनांक 18.05.2013 को पत्र भेजा।
इसके बाद, आवेदक ने प्रतिवादी को विभिन्न पत्र भेजे जिनका उत्तर प्रतिवादी द्वारा नहीं दिया गया। फिर से 24.07.2019 को आवेदक ने प्रतिवादी को ईमेल भेजकर राशि का भुगतान करने का अनुरोध किया। प्रतिवादी ने दिनांक 21.10.2019 को ईमेल से आवेदक को उत्तर दिया और दोहराया कि आवेदक उसके द्वारा दावा की गई पूरी राशि का हकदार नहीं है।
अंततः, प्रतिवादी ने दिनांक 02.01.2021 पत्र लिखकर मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) का आह्वान किया और अपने नामित मध्यस्थ को नियुक्त किया और प्रतिवादी से अपने मध्यस्थ को नामित करने का अनुरोध किया। प्रतिवादी ने दिनांक 03.04.2021 को पत्र लिखकर अपना नामित मध्यस्थ नियुक्त किया और कहा कि आवेदक के दावों को सीमा से रोक दिया गया है और मध्यस्थ को उसके अधिकारों के पूर्वाग्रह के बिना नियुक्त किया गया है।
दो मध्यस्थ पीठासीन मध्यस्थ नियुक्त करने में विफल रहे। तदनुसार, आवेदक ने ए एंड सी अधिनियम की धारा 11(5) के तहत आवेदन दायर किया।
पक्षकारों की प्रस्तुतियां
आवेदक ने निम्नलिखित आधारों पर मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की:
1. परिसीमा अवधि का प्रश्न कानून और तथ्यों का मिश्रित प्रश्न है, इसलिए मध्यस्थ की नियुक्ति के स्तर पर इसका निर्णय नहीं किया जा सकता।
2. परिसीमा अवधि बढ़ा दी गई है, क्योंकि प्रतिवादी ने कभी भी भुगतान करने के लिए अपने दायित्व से इनकार नहीं किया।
3. परिसीमा अवधि भी बढ़ाई जाएगी, क्योंकि पक्ष विवाद पर बातचीत कर रहे हैं।
4. प्रतिवादी पहले ही पीठासीन मध्यस्थ नियुक्त कर चुका है; इसलिए, वह पीठासीन मध्यस्थ की नियुक्ति पर आपत्ति नहीं कर सकता।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर आवेदन की स्थिरता पर आपत्ति जताई:
1. उक्त परिस्थितियों में मध्यस्थ की नियुक्ति के चरण में परिसीमा अवधि के मुद्दे का निर्णय किया जा सकता है।
2. आवेदक के दावे पूर्व दृष्टया परिसीमन अवधि द्वारा वर्जित हैं, क्योंकि वे वर्ष 2013 से संबंधित हैं और आवेदक ने सात वर्षों के अंतराल के बाद मध्यस्थता का आह्वान किया।
3. परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 18 के संदर्भ में परिसीमा की अवधि को कभी भी विस्तारित नहीं किया गया है।
4. प्रतिवादी ने कभी भी आवेदक को भुगतान करने के अपने दायित्व को स्वीकार नहीं किया।
न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थ की नियुक्ति के स्तर पर अदालत नियुक्ति से इनकार कर सकती है, जब आवेदक के दावों को निश्चित परिसीमा अवधि से रोक दिया गया प्रतीत होता है।
कोर्ट ने माना कि परिसीमा अवधि उस तारीख से शुरू होती है जिस दिन मध्यस्थ कार्यवाही शुरू करने का अधिकार प्राप्त होता है और पक्षकारों के बीच केवल संचार का आदान-प्रदान सीमा अवधि का विस्तार नहीं करेगा।
कोर्ट ने माना कि परिसीमा अवधि 18.05.2013 को शुरू हुई, जब प्रतिवादी ने आवेदक के दावों को खारिज कर दिया।
अदालत ने आवेदक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि परिसीमा की अवधि बढ़ाई जाएगी, क्योंकि पक्ष मध्यस्थता के आह्वान से पहले बातचीत कर रहे थे। कोर्ट ने माना कि पक्षकारों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी और केवल आवेदक ने प्रतिवादी को कई पत्र लिखें, जिसका उसने जवाब नहीं दिया। इसलिए प्रतिवादी ने आवेदक के साथ कभी बातचीत नहीं की।
कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी की चुप्पी आवेदक के दावों से इनकार करने के बराबर है, इसलिए प्रतिवादी के पास मध्यस्थता का आह्वान करने से पहले सात साल इंतजार करने का कोई कारण नहीं है।
अदालत ने माना कि केवल इसलिए कि आवेदक ने प्रतिवादी को कुछ पत्र भेजे हैं, यह परिसीमा अवधि बढ़ाने के लिए पक्षकारों के बीच बातचीत नहीं होगी।
अदालत ने आगे आवेदक के इस तर्क को खारिज कर दिया कि प्रतिवादी ने भुगतान करने के लिए अपने दायित्व को स्वीकार किया था, इसलिए परिसीमा अवधि बढ़ा दी गई। यह माना गया कि भले ही दिनांक 21.10.2019 को लिखा पत्र देयता की पावती के बराबर हो, यह परिसीमा अधिनियम की धारा 18 के संदर्भ में नहीं है, जो 18.05.2016 को समाप्त होने वाली परिसीमा अवधि की समाप्ति के बाद जारी किया गया है।
अदालत ने आवेदक के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि प्रतिवादी ने नामित मध्यस्थ नियुक्त किया है, जो पीठासीन मध्यस्थ की नियुक्ति पर आपत्ति नहीं कर सकता। न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी ने आवेदक के दावों की परिसीमा अवधि पर आपत्ति करने के अपने अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना मध्यस्थ नियुक्त किया है।
इस हिसाब से कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी।
मामला: टेरा इंफ्रा डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम एनसीसी लिमिटेड एआरबी। 2021 का आवेदन नंबर 113
दिनांक: 20.06.2022
आवेदक के लिए वकील: बी चंद्रसेन रेड्डी, पशम मोहित के साथ सीनियर एडवोकेट
प्रतिवादी के लिए वकील: अविनाश देसाई
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