साइना नेहवाल पर सेक्सिस्ट टिप्पणी को लेकर एक्टर सिद्धार्थ के खिलाफ दर्ज मामला खारिज, कहा- मज़ाकिया ट्वीट को गलत समझा गया

Update: 2025-08-04 05:32 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने पिछले महीने तमिल, तेलुगु और हिंदी फिल्मों के एक्टर सिद्धार्थ के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। एक्टर सिद्धार्थ पर जनवरी 2022 में ट्विटर पर बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल के खिलाफ लैंगिकवादी और अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप था।

आरोपी-याचिकाकर्ता (एस. सिद्धार्थ) द्वारा CrPC की धारा 482 के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस जुव्वाडी श्रीदेवी की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ IT Act की धारा 67 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 509 के तहत अपराध बनाने के लिए आवश्यक तत्व नहीं बनाए गए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि 'मज़ाकिया' तरीके से किए गए ट्वीट को कथित तौर पर गलत समझा गया।

संक्षेप में मामला

हैदराबाद के नामपल्ली स्थित बारहवें अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी के समक्ष लंबित शिकायत का मामला याचिकाकर्ता के ट्वीट (नेहवाल पर लक्षित) पर आधारित था, जिसमें कथित तौर पर कहा गया था:

"दुनिया की चालाक मुर्गा चैंपियन... भगवान का शुक्र है कि हमारे पास भारत के रक्षक हैं। शर्म आनी चाहिए #रिहाना"।

बता दें, कथित ट्वीट प्रधानमंत्री के काफिले में कथित सुरक्षा चूक से संबंधित नेहवाल के एक पूर्व ट्वीट के जवाब में था।

अब प्रतिवादी नंबर 2 ने अदालत में एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि ट्वीट अपमानजनक प्रकृति का है। विशेष रूप से नेहवाल को लक्षित करके किया गया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई है और एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंची है।

इस मामले को चुनौती देते हुए सिद्धार्थ ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि यह ट्वीट उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते हुए बिना किसी दुर्भावना या गलत इरादे के किया गया था।

उन्होंने दलील दी कि किसी भी गलतफहमी से बचने के लिए उन्होंने ट्वीट करने के 4 दिन बाद स्पष्टीकरण भी जारी किया, जिसमें कहा गया कि टिप्पणी "मुर्गी-और-बैल की कहानी" मुहावरे के संदर्भ में थी, न कि अन्यथा।

इसके अलावा, हाईकोर्ट को यह भी बताया गया कि नेहवाल ने 13 जनवरी, 2022 के एक प्रेस बयान में स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता ने माफ़ी मांग ली है और वह इससे संतुष्ट हैं।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश सहायक लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि निचली अदालत द्वारा सुनवाई योग्य मुद्दों और तथ्यात्मक पहलुओं की जांच की जानी है। साथ ही यह कार्यवाही रद्द करने का उपयुक्त मामला नहीं है।

इस पृष्ठभूमि में याचिका की जांच करते हुए न्यायालय ने शुरू में ही नोट किया कि शिकायतकर्ता (प्रतिवादी नंबर 2) एक तृतीय पक्ष था और कथित कृत्य से व्यक्तिगत रूप से पीड़ित नहीं था और उसने बिना किसी सुने जाने के अधिकार के वर्तमान शिकायत दर्ज की थी।

IT Act की धारा 67 के तहत लगाए गए आरोपों पर न्यायालय ने कहा कि कथित तौर पर अपमानजनक या अपशब्दों से भरी भाषा का प्रयोग इस सीमा को पूरा नहीं करता, क्योंकि यह न तो किसी यौन या कामुक छवि या अर्थ को उद्घाटित करता है और न ही उद्घाटित करने का इरादा रखता है।

IPC की धारा 509 के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में न्यायालय ने कहा कि इस अपराध को लागू करने के लिए यह स्पष्ट आरोप होना चाहिए कि अभियुक्त ने किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द कहे, हाव-भाव बनाए, या कोई ऐसा कृत्य किया हो।

न्यायालय ने कहा,

"आरोप पत्र के अवलोकन से अश्लील सामग्री के प्रकाशन का कोई विशिष्ट उदाहरण सामने नहीं आता, जो किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के बराबर हो, जैसा कि कानून के संबंधित प्रावधानों के तहत परिकल्पित है।"

अब FIR और आरोप पत्र की सावधानीपूर्वक जांच के बाद न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों की पुष्टि के लिए जांच एजेंसी ने नेहवाल या ट्विटर प्लेटफॉर्म के किसी प्रतिनिधि सहित किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की।

न्यायालय ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे पता चले कि नेहवाल ने स्वयं उक्त ट्वीट से नाराज़गी या अपमान महसूस किया हो।

अतः यह मानते हुए कि भले ही FIR और आरोप पत्र में निहित आरोपों को उनके अंकित मूल्य पर लिया जाए और उनकी संपूर्णता को स्वीकार किया जाए। फिर भी वे प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता-अभियुक्त के विरुद्ध किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा नहीं करते, न्यायालय ने आपराधिक याचिका को स्वीकार कर लिया और मामला रद्द कर दिया।

Case title - S.Siddharth vs. The State of Telangana, Rep. by its Public Prosecutor, High Court, Hyderabad and another

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