PMLA अपीलीय अथॉरिटी के चेयरपर्सन और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिए शीघ्र कदम उठाएं: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा

Update: 2023-03-01 06:21 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आठ सप्ताह के भीतर धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत अपीलीय अथॉरिटी के चेयरपर्सन और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिए शीघ्र कदम उठाने का निर्देश दिया।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने इस तथ्य पर न्यायिक संज्ञान लेते हुए कि पीएमएलए के तहत "बड़ी मात्रा में मामले" लंबित हैं, कहा कि कई बेंचों के गठन की "सख्त आवश्यकता" है।

अदालत मैसर्स गोल्ड क्रॉफ्ट प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 25 जनवरी को अथॉरिटी द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अधिनियम की धारा 6 (7) के तहत दो सदस्यों वाली पीठ को पीएमएलए कार्यवाही स्थानांतरित करने की मांग करने वाले उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया।

पीएमएलए अधिनियम की धारा 6(7) में कहा गया कि अगर किसी मामले की सुनवाई के किसी भी स्तर पर अध्यक्ष या सदस्य को यह प्रतीत होता है कि मामला इस तरह का है कि इसे दो सदस्यों वाली पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए तो उसे ट्रांसफर किया जा सकता है या ऐसी पीठ को स्थानांतरण के लिए भेजा जा सकता है जिसे चेयरपर्सन उचित समझे।

अदालत ने कहा कि प्रावधान के अवलोकन से पता चलता है कि यह किसी भी मामले में सुनवाई के समय ही होता है, अगर चेयरपर्सन या सदस्य को लगता है कि मामला इस तरह का है कि इसे दो सदस्यीय खंडपीठ द्वारा सुना जाना चाहिए तो चेयरपर्सन उक्त आदेश की सुनवाई के लिए दो सदस्यीय पीठ निर्दिष्ट कर सकते हैं।

यह जोड़ा गया,

"वर्तमान मामले में एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी द्वारा इस आशय की कोई राय व्यक्त नहीं की गई कि मामला इतना जटिल है कि इसके लिए दो सदस्यीय पीठ की आवश्यकता है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने दो सदस्यीय पीठ के गठन की मांग करते हुए आवेदन दायर किया है। जिस खंडपीठ की स्थिरता स्वयं संदिग्ध हो सकती है, क्योंकि ए के किसी भी सदस्य द्वारा कोई राय व्यक्त नहीं की गई है कि इस तरह की खंडपीठ की आवश्यकता है।"

यह देखते हुए कि पीएमएलए के तहत कार्यवाही सामान्य रूप से इस तरह की होती है कि उनमें खातों और वित्त दोनों का विश्लेषण शामिल होता है, अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि एक सदस्य वाली पीठ विवाद का फैसला तब तक नहीं कर सकती जब तक कि कोई विशेष मामला नहीं बनाया जाता है।

अदालत ने कहा,

"प्रासंगिक प्रावधान, पीएमएलए अधिनियम की धारा 6 (7) के मात्र अवलोकन से पता चलता है कि यह दो सदस्यीय पीठ के गठन की मांग के लिए पक्षकार द्वारा दायर किए जा रहे आवेदन पर विचार नहीं करता। यदि इस तरह के आवेदनों को अनुमति दी जाती है तो इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि हर मामले में संबंधित पक्ष/संस्था केवल कार्यवाही में देरी के लिए ऐसी बेंच के गठन के लिए आवेदन करेगी।'

जस्टिस सिंह ने मामले के तथ्यों पर ने कहा कि अथॉरिटोी द्वारा कोई राय व्यक्त नहीं की गई कि मामला इतना जटिल है कि इसके लिए दो सदस्यीय पीठ की आवश्यकता है।

यह कहा गया,

"एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया और मामला अब एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के समक्ष अंतिम सुनवाई के लिए लाया गया। ऐसी स्थिति में इस न्यायालय का विचार है कि अधिनियम की धारा 6 और 7 के तहत आवेदन विचारणीय भी नहीं होगा।”

अदालत ने कहा कि भले ही एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के उक्त आदेश को चुनौती दी जानी है, अधिनियम की धारा 26 के तहत अपील उचित उपाय होगी न कि रिट याचिका।

इसमें कहा गया,

"अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण रिट क्षेत्राधिकार के प्रयोग के लिए इस मामले में कोई आधार नहीं उठाया गया।"

केस टाइटल: मैसर्स गोल्ड क्रॉफ्ट प्रॉपर्टीज प्रा. लिमिटेड बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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