जब तक कि अपील 5/6 वर्षों तक अनिर्णीत न हो, जघन्य मामलों में धारा 389 सीआरपीसी के तहत निलंबन पर विचार नहीं किया जाना चाहिएः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Update: 2022-09-15 06:18 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि हत्या जैसे जघन्य अपराध में, अपील का निस्तारण न होने की स्थिति में 5-6 वर्षों बाद ही सीआरपीसी की धारा 389 के तहत सजा के निलंबन और जमानत पर विचार होना चाहिए।

जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस मोहम्मद अकरम चौधरी एक आवेदन के साथ एक अपील पर विचार कर रही थी। अपीलकर्ता ने अपनी सजा के निलंबन और जमानत की मांग की थी। उसकी अपील लंबित थी। उसे धारा 302 और 392 आरपीसी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए सजा दी गई थी।

अपीलकर्ता ने अपनी अपील के साथ सजा के निलंबन और जमानत के लिए दायर आवेदन में कहा था कि वह 11.04.2011 को अपनी गिरफ्तारी के बाद से लगातार हिरासत में है और जेल में 10 साल और 10 महीने बिता चुका है। उसका इतिहास साफ-सुथरा है और कभी वह किसी आपराधिक मामले में शामिल नहीं रहा है।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसने अपनी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील दायर की है और उसे यकीन है कि वह अपील में सफल होगा। यह भी तर्क दिया गया कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका है और कथित घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और अभियोजन ने कोई स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया है और सभी गवाह या तो रिश्तेदार या शिकायतकर्ता के करीबी दोस्त हैं।

अंत में अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि अपील कानूनी कल्पना के तहत मुकदमे की निरंतरता है, इसलिए मामले के निस्तारण में अत्यधिक विलंब अपीलकर्ता को सजा के निलंबन और जमानत देने का अधिकार देती है और इसलिए सजा को निलंबित कर दिया जाए, और अपीलकर्ता -दोषी को अपील निस्तारित होने तक जमानत पर रखा जाए।

आवेदन के विरोध में प्रतिवादी ने तर्क दिया कि जब ट्रायल कोर्ट पहले ही दोषसिद्धि दर्ज कर चुकी है, तो अपीलकर्ता-दोषी 'बिना किसी ठोस' कारण के सजा के निलंबन और जमानत देने की रियायत नहीं मांग सकता है।

उन्होंने कहा कि दोषी को मामले में जहां उसे एक दशक से अधिक समय तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उसे इस तरह की राहत का अधिकार नहीं होगा। एएजी ने प्रार्थना की कि इस संबंध में पेश किए गए आवेदन को खारिज किया जा सकता है।

पीठ ने फैसले मेंकहा कि सजा के निलंबन और जमानत देने के आवेदन पर विचार करते हुए अपीलीय अदालत को रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता नहीं है, ताकि ऐसा न हो कि यह मुख्य अपील पर विचार करते समय मामले की योग्यता को प्रभावित करे।

अपीलीय अदालत को केवल यह पता लगाने के लिए मामले पर विचार करना होगा कि क्या प्रथम दृष्टया यह मानने का मामला है कि न्याय का लक्ष्य ‌विफल हुआ है, जो रिकॉर्ड से स्पष्ट हो सकता है और ऐसी स्थिति में सजा के निलंबन का आदेश दिया जा सकता है और परिणामस्वरूप अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

पीठ ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में निर्धारित कानून की व्याख्या की, जिस पर अपीलकर्ता ने भरोसा किया था।

पीठ ने कहा कि जहां एक व्यक्ति को धारा 302 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध का दोषी पाया गया है और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता ऐसे दोषी को अपील का अधिकार देती है हालांकि, कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब ऐसे दोषी द्वारा दी गई अपील को उचित समय के भीतर निस्तार‌ित नहीं किया जाता है, ‌विशेषकर तब जब अदालत 5/6 साल तक अपील का निस्तारण करने की स्थिति में नहीं होती।

कोर्ट ने कहा, दरअसल एक अपराध के लिए 5/6 साल की अवधि के लिए किसी व्यक्ति को जेल में रखना न्याय का मजाक होगा। इसलिए अपील का निस्तारण नहीं होने की स्थिति में 5/6 साल बाद हत्या जैसे जघन्य मामले में भी सजा के निलंबन और जमानत देने पर विचार किया जाना चाहिए।

केस टाइटल: जाविद अहमद शाह बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 153

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