जब वादी की दलीलों से पता चलता है कि मुकदमा समय बाधित है, तब बिना मुकदमा चलाए उसे खारिज किया जा सकता हैः दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि जब वादी की दलीलों से पता चलता है कि मुकदमा समय बाधित है, तब ट्रायल कोर्ट पर उसी आधार पर, बिना मुकदमा चलाए, मुकदमे को खारिज करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
जस्टिस सी हरि शंकर ने अपीलकर्ता (मूल वादी) की इस दलील को खारिज कर दिया कि परिसीमा को, तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न होने के कारण ट्रायल के बाद ही तय किया जाना चाहिए था। पीठ एक मार्ग संबंधित विवाद का निस्तारण कर रही थी, जो अपीलकर्ता के अनुसार, उसके स्वामित्व वाली संपत्ति के साथ-साथ अन्य आस-पास के भूखंडों में प्रवेश और निकासी का एकमात्र तरीका था।
अपीलकर्ता के अनुसार ईंट की दीवार के निर्माण के कारण मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप उसके प्रवेश द्वारा तक कोई पहुंच नहीं है। अपीलकर्ता ने चकबंदी अधिकारी द्वारा 31 जुलाई, 2012 को पारित एक आदेश पर भरोसा किया, जिसमें अपीलकर्ता को उक्त मार्ग का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
अपीलकर्ता ने तब प्रतिवादियों पर मुकदमा दायर किया और अपीलकर्ता को उसकी संपत्ति तक पहुंच प्रदान करने के लिए एक पक्का मार्ग प्रदान करने के साथ-साथ उस दीवार को हटाने के लिए निर्देश मांगा था जो मार्ग को अवरुद्ध कर रही थी।
सिविल जज ने सीपीसी, 1908 के आदेश VII, नियम 11 (डी) के तहत मुकदमा खारिज कर दिया था।
अतिरिक्त जिला जज के समक्ष अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि विद्वान सिविल जज ने डीडीए द्वारा दायर लिखित बयान पर भरोसा करते हुए मुकदमे को समय बाधित के रूप में खारिज करते हुए गलती की और यह देखने में भी गलती की कि अपीलकर्ता ने 2006 में डीडीए द्वारा दीवार के निर्माण को स्वीकार कर लिया था।
2006 में एडीजे ने अपील के तहत आदेश में दोनों आधारों पर अपीलकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया।
बहरहाल, एडीजे ने विद्वान सिविल जज के वाद को समय सीमा के रूप में खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा। इस उद्देश्य के लिए एडीजे द्वारा चकबंदी अधिकारी के आदेश के निम्नलिखित हिस्सो पर भरोसा किया गया।
कोर्ट ने कहा,
"मौजूदा दूसरी अपील में धारा 100 के तहत, अपीलकर्ता ने यह तर्क देने की मांग की है कि परिसीमन तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न है, जिसे केवल ट्रायल के परिणामस्वरूप तय किया जाना चाहिए था, इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जहां वादी की दलीलें खुलासा करें कि एक मुकदमा समय बाधित है, ट्रायल कोर्ट पर उस आधार पर मुकदमे चलाए बिना मुकदमे को खारिज करने पर कोई बंधन नहीं है।"
तदनुसार, न्यायालय ने कानून के निम्नलिखित दो महत्वपूर्ण प्रश्न तैयार किए:
(i) क्या अपीलकर्ता द्वारा विद्वान सिविल जज के समक्ष दायर किए गए वाद को कार्रवाई के निरंतर कारण पर आधारित कहा जा सकता है?
(ii) क्या, इसलिए, सीपीसी, 1908 के आदेश VII नियम 11(डी) के तहत अपीलकर्ता के वाद को खारिज करने में निचली अदालतों ने गलती नहीं की थी, जैसा कि समय बाधित है?
मामला अब 24 मई, 2022 को निस्तारण के लिए पोस्ट किया गया है।
केस शीर्षक: ज्ञान चंद बंसीवाल बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 282