स्टूडेंट को सजा देने के बजाय गलती सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यूनिवर्सिटी द्वारा स्टूडेंट के खिलाफ पूरी तरह से दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इसमें कहा गया कि छात्र युवा वयस्क हैं जिन्हें सुधार का अवसर दिया जाना चाहिए।
जस्टिस अजय भनोट ने कहा,
“याचिकाकर्ता के खिलाफ यूनिवर्सिटी द्वारा उसके आचरण में सुधार करने, उत्कृष्टता की संभावनाओं का पता लगाने और उसकी प्रतिष्ठा को बचाने के अवसरों को छोड़कर पूरी तरह से दंडात्मक कार्रवाई की गई। स्टूडेंट द्वारा गलत व्यवहार से संबंधित मामलों में इस तरह का दृष्टिकोण कार्रवाई को असमानता के आधार पर न्यायिक पुनर्विचार के लिए असुरक्षित बना सकता है।”
याचिकाकर्ता बी.टेक (सीएसई) का स्टूडेंट है। उल पर आचरण सहित अनुशासनहीनता के विभिन्न कृत्यों का आरोप लगाया गया, जिसमें नैतिक अधमता, भ्रष्टाचार/रिश्वत देना, यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक कामकाज में व्यवधान पैदा करना और जांच और परीक्षाओं से संबंधित शामिल है। प्रारंभ में उसे छह महीने की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया, जिसे अपील में घटाकर तीन महीने कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के हैं और निष्कासन को उचित ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं रखी गई। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि सज़ा अनुपातहीन है। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता को कभी भी आरोप पत्र नहीं दिया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।
प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि उचित जांच के बाद सजा दी गई। चूंकि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए निष्कासन की सजा उचित है।
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी यूनिवर्सिटी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के दावे का खंडन करने में असमर्थ है। रिकॉर्ड पर प्रतिकूल सामग्री याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को साबित नहीं कर सकी।
कोर्ट ने कहा,
"उत्तरदाताओं द्वारा अपनाई गई उक्त प्रक्रिया से याचिकाकर्ता को जो पूर्वाग्रह हुआ, वह स्मरणीय नहीं है।"
जस्टिस भनोट ने कहा,
“किसी उच्च शिक्षा संस्थान में दंडात्मक कार्रवाई की योजना उसके प्रशासन की अनिवार्य विशेषता है। प्रणाली में दंड व्यवस्था को यूनिवर्सिटी में अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक तत्वों को समाहित करना होगा जो इसके शैक्षणिक माहौल और सुधारात्मक दृष्टिकोण के लिए अनुकूल हो, जो स्टूडेंट के परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रभावी प्रणाली की कुंजी निवारक प्रभाव और सुधारात्मक संभावनाओं के बीच संतुलन है।
अनंत नारायण मिश्रा बनाम भारत संघ में अपने पहले के फैसले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि स्टूडेंट पर केवल दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। सज़ा, यदि कोई हो, में सुधारात्मक दृष्टिकोण शामिल होना चाहिए।
स्टूडेंट की याचिका स्वीकार करते और सजा रद्द करते हुए न्यायालय ने कहा कि स्टूडेंट युवा वयस्क हैं, जिन्हें यदि कोई त्रुटि हो तो उसे सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए और साफ स्लेट पर नया जीवन शुरू करना चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
"अनुपातिकता दंडात्मक कार्रवाई को निष्प्रभावी कर देती है।"
अदालत ने 100 अंकों में से याचिकाकर्ता के प्रदर्शन के मूल्यांकन को दर्शाते हुए नई अंकतालिका जारी करने और "रीअपीयरेंस सितंबर 2020" के समर्थन अंक को हटाने और याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त अंकों पर बी कैप को हटाने की प्रार्थना भी स्वीकार कर ली।
केस टाइटल: प्रखर नगर बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य लाइव लॉ (एबी) 244/2023 [रिट सी नंबर 21339/2020]
याचिकाकर्ता के वकील: सिद्धार्थ खरे, जिगर खरे, प्रतिवादी के वकील: सी.एस.सी., राहुल चौधरी, राहुल चौबे
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