राज्य को इस बात से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि अधिवक्ता व उनका स्टाफ न्याय वितरण प्रणाली का एक अभिन्न अंग है : बॉम्बे हाईकोर्ट
शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने वकीलों को अनिवार्य सेवाओं की सूची में शामिल करने की मांग करते हुए दायर जनहित याचिकाओं और हस्तक्षेप आवेदनों पर सुनवाई करने के बाद कहा कि राज्य को इस बात से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि न्याय तक पहुँच को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिल चुकी है और अधिवक्ता व उनके कर्मचारी उस प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है,जो ''न्याय के वितरण'' के लिए समर्पित है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने उम्मीद और विश्वास व्यक्त किया है कि असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं व हस्तक्षेप करने की मांग करने वाले पक्षकारों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर उचित ध्यान दिया जाएगा। साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा सौंपे गए प्रतिनिधित्व पर लिए गए अपने आदेश को प्रस्तुत करें। वकीलों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें व उनके कर्मचारियों को लॉकडाउन के प्रतिबंधों से छूट दी जाए।
हालांकि, 10 जुलाई को दिए गए एक आदेश में हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने अधिवक्ता चिराग चनानी की तरफ से दायर उक्त जनहित याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि ''आवश्यक सेवाओं'' के भीतर एक विशेष श्रेणी के व्यक्तियों को शामिल करना राज्य विधानमंडल के विशेष क्षेत्र के अंतर्गत आता है। वहीं राज्य विधानमंडल को कोई भी ऐसा आवश्यक निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है कि वह वकीलों और उनके कर्मचारियों को ''आवश्यक सेवाएं'' प्रदान करने के रूप में वर्गीकृत करें।
हालाँकि, समन्वय पीठ ने बाद में देखा कि उक्त आदेश में, यह उल्लेख किया गया था कि राज्य की तरफ से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक ने बताया था कि उसे मिले निर्देश के अनुसार प्रतिवादी रिट याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार करने के लिए तैयार हैं।
इन सभी दलीलों को ध्यान में रखते हुए समन्वयक पीठ ने याचिकाकर्ता को स्वंतत्रता दी थी कि वह राज्य सरकार के समक्ष एक व्यापक प्रतिनिधित्व दायर कर सकते हैं। वहीं राज्य को भी इस बात की स्वतंत्रता दी गई थी कि वह कानून के अनुसार ऐसे प्रतिनिधित्व पर विचार कर सकती हैं। हालांकि रिट याचिका को अस्वीकृत कर दिया गया था।
इन पीआईएल याचिकाओं और हस्तक्षेप के लिए दायर अंतरिम आवेदनों पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को सूचित किया गया था कि 10 जुलाई, 2020 के आदेश में दी गई स्वतंत्रता के तहत राज्य के समक्ष उपरोक्त याचिकाकर्ता ने एक प्रतिनिधित्व दायर किया था, लेकिन अभी तक उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया कि वकीलों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि हाईकोर्ट ने फिजिकली फाइलिंग की अनुमति तो दे दी है परंतु लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण उनके पास ट्रेन सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। वहीं सभी वकीलों के पास निजी वाहन भी नहीं हैं, इसलिए उनके लिए और ज्यादा मुश्किल हो रही है-
'' राष्ट्र महामारी के कारण वर्तमान संकटों को ध्यान में रखते हुए मुंबई में फिजिकल हियरिंग या सुनवाई के जरिए कोर्ट का कामकाज अभी निलंबित है। हालांकि वर्चुअल सुनवाई हो रही है। कुछ न्यायालयों में फिजिकल हियरिंग बहुत सीमित तरीके से की जा रही है। पश्चिम रेलवे और मध्य रेलवे सीमित रेल सेवाओं का संचालन कर रहे हैं। यह सेवाएं केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए खुली है जिनके पास सरकार के उपयुक्त विभाग द्वारा जारी किए गए पास हैं। वहीं इनका लाभ ले सकते हैं।
अधिवक्ताओं और उनके कर्मचारियों को वर्तमान में ट्रेन सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस कारण अधिवक्ताओं का एक बड़ा वर्ग किसी भी तरह की फिजिकल हियरिंग में भाग नहीं ले पा रहा है और कोर्ट की सहायता नहीं कर पा रहे हैं।
अधिवक्ताओं की ओर से यह भी दावा किया गया है कि सभी के पास निजी कारें नहीं हैं और इसलिए मुंबई में न्यायालयों तक आना उनके लिए एक बड़ी समस्या है। यह कुछ चिंताएं है जो इन रिट याचिकाओं व अंतरिम हस्तक्षेप आवेदनों में व्यक्त की गई हैं। इन सभी में एक जैसी राहतों की मांग की गई है।''
पीठ ने कहा कि-
''इस तरह उपर्युक्त रिट याचिकाओं पर कोऑर्डिनेट बेंच के फैसले के संबंध में, हमारा मानना है कि राज्य को कानून के अनुसार प्रतिनिधित्व पर फैसला करना चाहिए। दुर्भाग्य से, राज्य का निर्णय अभी आना बाकी है या अभी निर्णय नहीं लिया गया है।''
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान में मध्य रेलवे द्वारा 1774 ट्रेनों में से 353 (सामान्य अनुसूची के अनुसार) संचालित की जा रही हैं, जबकि 1365 ट्रेनों में से 150 (सामान्य अनुसूची के अनुसार) पश्चिम रेलवे द्वारा संचालित की जा रही हैं। यह सभी ट्रेनें सीमित स्टेशनों पर रुक रही हैं और ऐसे यात्रियों को लेकर जा रही है जिनके पास यात्रा करने के लिए पास है। एएसजी सिंह ने कोर्ट को बताया कि रेलवे ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि वह ''आवश्यक सेवाओं'' की पहचान करें ताकि रेल सेवाओं को उसी अनुसार बढ़ाया जा सकें परंतु अभी इस संबंध में कोई जवाब रेलवे को नहीं मिला है।
अंत में पीठ ने कहा कि-
''इन तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए,हमारा मानना है कि राज्य को अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए और अधिवक्ताओं व उनके कर्मचारियों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के संबंध में एक उचित निर्णय लेना चाहिए।
राज्य को इस बात से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए कि न्याय तक पहुंच को अब एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी है और अधिवक्ता व उनके कर्मचारी उस पूरी प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं, जो ''न्याय के वितरण'' के लिए समर्पित है।
हम उम्मीद व भरोसा करते हैं कि रेलवे के प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं व हस्तक्षेप करने की मांग करने वाले पक्षों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर विचार करते हुए उचित स्तर पर एक उचित निर्णय लिया जाएगा।
इस आदेश के अनुसार इस मामले में कोई निर्णय करते समय राज्य के समक्ष पहले से ही लंबित सभी अभ्यावेदन या प्रतिनिधित्व पर विचार किया जा सकता है। इस संबंध में लिया गया निर्णय अगले शुक्रवार (7 अगस्त, 2020) को कोर्ट के समक्ष रखा जाए।''
सुनवाई की अगली तारीख 7 अगस्त है।
केस का विवरण-
केस संख्या-पीआईएल-सीजे-एलडी-वीसी 33/2020
केस का शीर्षक- चिराग चनानी व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य।
कोरम-मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल
प्रतिनिधित्व-याचिकाकर्ताओं के लिए वकील श्याम दीवानी व राज्य के लिए महाधिवक्ता श्री ए.ए. कुंभकोनी