'राज्य को अल्पसंख्यकों के साथ समान व्यवहार करना है': केरल हाईकोर्ट ने मुसलमानों को 80% अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति आवंटित करने की योजना रद्द की

Update: 2021-05-28 14:36 GMT

केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केरल सरकार के मुस्लिम छात्रों और लैटिन कैथोलिक/धर्मांतरित ईसाइयों को 80:20 के अनुपात में छात्रवृत्ति देने की घोषणा के आदेश को रद्द कर दिया।

यह घोषणा करते हुए कि आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हो सकता, जस्टिस शाजी पी चाली ने अपनी और चीफ जस्टिस मणिकुमार की खंडपीठ के ओर से बोलते हुए राज्य को अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करने का निर्देश दिया।

फैसले में कहा गया, "हम राज्य सरकार को राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पास उपलब्ध नवीनतम जनसंख्या जनगणना के अनुसार राज्य के भीतर अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को समान रूप से योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए आवश्यक और उचित सरकारी आदेश पारित करने का निर्देश देते हैं"।

इसके साथ ही कोर्ट ने वकील जस्टिन पल्लीवाथुकल की ओर से दायर याचिका को मंजूर कर लिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार राज्य में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर मुस्लिम समुदाय को अनुचित वरीयता दे रही है।

तथ्य और प्रस्तुतियां

मामले में विवाद का कारण राज्य सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए घोषित छात्रवृत्ति योजना थी। इस योजना की घोषणा 11 सदस्यीय समिति द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों के अनुसार की गई थी। समिति को केरल में जस्टिस राजिंदर सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने का काम सौंपा गया था। सच्चर समिति भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट करने के लिए गठित एक उच्च स्तरीय समिति थी।

छात्रवृत्ति योजना के तहत राज्य सरकार ने डिग्री और स्नातकोत्तर मुस्लिम छात्राओं को 5000 छात्रवृत्तियां प्रदान की थीं। योजना को फरवरी 2011 में लैटिन कैथोलिक और परिवर्तित ईसाई समुदायों के छात्रों तक बढ़ा दिया गया। 2015 में एक सरकारी आदेश के अनुसार, यह कहा गया था कि मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच आरक्षण 80:20 (मुसलमानों के लिए 80%, लैटिन कैथोलिक ईसाइयों और अन्य समुदायों के लिए 20%) के अनुपात में होगा।

याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार की योजना 2006 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित छात्रवृत्ति के विपरीत है, जहां अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को योग्यता-सह-साधन के आधार पर भी छात्रवृत्ति प्रदान की जाती थी। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि कहीं भी यह नहीं कहा गया कि किसी विशेष अल्पसंख्यक समुदाय को अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर तरजीह देकर छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी।

याचिकाकर्ता ने भेदभाव को दूर करने और सभी अल्पसंख्यक समुदायों को समान रूप से छात्रवृत्ति वितरित करने की मांग की थी। वैकल्पिक प्रार्थना के रूप में, याचिकाकर्ता ने मांग की ‌थी कि छात्रवृत्ति प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार वितरित की जाए।

सच्चर समिति और केरल पदना रिपोर्ट के आधार पर राज्य ने तर्क दिया कि कॉलेज में नामांकन में मुस्लिम ईसाइयों के पीछे थे। यह कहा गया था कि केवल 3% ईसाई भूमिहीन थे, जबकि 37.8% मुसलमान भूमिहीन थे। दलील दी गई कि केरल में मुसलमान पिछड़े हैं, जबकि ईसाई, रोमन कैथोलिक और ईसाइयों के कुछ अन्य संप्रदायों सहित अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक पिछड़े नहीं हैं।

कोर्ट की राय

न्यायालय ने माना कि राज्य सरकार द्वारा समुदाय के कमजोर वर्गों को सुविधाएं प्रदान करने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन जब अधिसूचित अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार करने की बात आती है, तो "उन्हें उनके साथ समान व्यवहार करना होगा"।

फैसले में कहा गया है कि सरकार को उनके साथ असमान व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं था।

"लेकिन यहां एक ऐसा मामला है, जहां राज्य के भीतर ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के जनसंख्या अनुपात से उपलब्ध अधिकार को ध्यान में रखे बिना, राज्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को 80% छात्रवृत्ति प्रदान कर रहा है, जो हमारे अनुसार, असंवैधानिक है और किसी भी कानून द्वारा समर्थित नहीं।

राज्य सरकार द्वारा जारी कार्यकारी आदेश अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 और 2014 के प्रावधानों और ऊपर चर्चा किए गए संविधान के प्रावधानों के तहत निहित अनिवार्यताओं को पार नहीं कर सकते।"

आवंटन को राशन के रूप में 'उप-वर्गीकरण' बताते हुए कोर्ट ने कहा, "इसलिए, तथ्यों, परिस्थितियों और कानूनों के आधार पर, मुस्लिम समुदाय को 80% और लैटिन कैथोलिक ईसाइयों और धर्मांतरित ईसाइयों को 20% योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करके अल्पसंख्यकों को उप-वर्गीकृत करने में राज्य सरकार की कार्रवाई को कानूनी रूप से कायम नहीं रखा जा सकता है।

राज्य से सभी अधिसूचित अल्पसंख्यकों को समान रूप से योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति प्रदान करने का आग्रह करते हुए याचिका को अनुमति दी गई।

मामला: जस्टिन पल्लीवथुकल बनाम केरल राज्य और अन्य।

वकील: याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू जोसेफ, जे जूलियन जेवियर, फिरोज के रॉबिन, रॉय जोसेफ, जोस वीवी, अनीस मैथ्यू, ई हरिदास। राज्य के अटॉर्नी केवी सोहन और केंद्र के लिए सहायक सॉलिसिटर जनरल पी विजयकुमार, अतिरिक्त प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता हारिस बीरन और ओए नुरिया।

फैसला डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News