अवैध खनन के संबंध में विश्वसनीय साक्ष्य प्राप्त करना और प्रस्तुत करना राज्य का कर्तव्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माइनिंग लीज़ रद्द करने के डीएम के आदेश को रद्द किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जिला मजिस्ट्रेट के एक माइनिंग लीज़ (पट्टा)को रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि निरीक्षण रिपोर्ट, जिस पर याचिकाकर्ता के खिलाफ पूरा मामला खड़ा था, पट्टेदार को दी नहीं की गई थी, जो प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि मामले में निरीक्षण रिपोर्ट गुप्त तरीके से तैयार की गई थी, जिसमें केवल यह दर्ज किया गया था कि याचिकाकर्ता ने खनन क्षेत्र के बाहर के क्षेत्रों से उत्खनन किया और गौण खनिजों को निकाला, हालांकि, याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई निर्णायक सामग्री जुटाई नहीं गई थी।
जस्टिस आलोक माथुर ने कहा,
"यह कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि निरीक्षण कब और कहां किया गया था। निरीक्षण के दमियान कौन-कौन मौजूद था और सबसे महत्वपूर्ण यह कि यह संदिग्ध है कि क्या याचिकाकर्ता को आवंटित स्थान पर निरीक्षण किया गया था, क्योंकि प्लॉट को जीपीएस कोऑर्डिनेट द्वारा पहचाना जा सकता है और यह उल्लेख नहीं किया गया है कि प्लॉट की पहचान के लिए जीपीएस कोऑर्डिनेट का उपयोग किया गया था। ये आवश्यक तथ्य हैं जो मामले की जड़ तक जाते हैं।"
इस मुद्दे पर कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अवैध खनन के आरोपों के समर्थन में विश्वसनीय साक्ष्य प्राप्त करे और पेश करे ताकि आरोपों को साबित किया जा सके, हालांकि मौजूदा मामले में राज्य ने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया है, और इस प्रकार केवल निरीक्षण रिपोर्ट के आधार पर पट्टेदार के खिलाफ कार्यवाही मनमानी है और यह रद्द करने योग्य है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने उस निर्देश में भी खामियां पाईं, जिससे भूविज्ञान और खनिकर्म विभाग के निदेशक ने डीएम को याचिकाकर्ता [मैसर्स राधिका कंस्ट्रक्शन्स, अपने प्रोपराइटर श्री राकेश तिवारी के माध्यम से] के खनन पट्टे को रद्द करने के लिए दिया था। उसके बाद पुनरीक्षण प्राधिकारी के रूप में पट्टाधारी की ओर से डीएम के आदेश को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा,
"…डॉ रोशन जैकब, जो निदेशक, भूविज्ञान और खनन भी थे, ने जिला मजिस्ट्रेट को याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने और उसके खनन पट्टे को रद्द करने का निर्देश दिया था, जिसका विधिवत पालन किया गया था, और बाद में उन्होंने खुद, पुनरीक्षण प्राधिकरण के रूप में रद्द करने के आदेश के खिलाफ संशोधन की सुनवाई की और खारिज करने का आदेश दिया, जो आदेश निश्चित रूप से पक्षपात के दोष से प्रभावित है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी मामले में एक उच्च अधिकारी [मंत्रालय/विभाग] की सीमित शक्ति प्रासंगिक/विश्वसनीय जानकारी को सक्षम प्राधिकारी को अग्रेषित करने के लिए है, जो आरोपी के अपराध को साबित कर सकती है, इसे उच्च अधिकारी द्वारा आदेश लिखवाने तक, जैसा कि इस मामले में हुआ था, विस्तारित नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए।
पीठ ने आगे कहा कि निदेशक, खनन और भूविज्ञान का डीएम को रिपोर्ट अग्रेषित करने का कार्य और विशेष रूप से याचिकाकर्ता और अन्य उसी के समान व्यक्तियों के पट्टे को रद्द करने का निर्देश देना और उन्हें ब्लैकलिस्ट करना
जांच के "पूर्व-निर्धारित" परिणामों का खुलासा करता है, नतीजतन अंतिम आदेश के साथ-साथ राज्य पुनरीक्षण आदेश अवैध और मनमाना बनाता है।
पीठ ने आगे कहा कि रद्द करने का आदेश पारित करने की वैधानिक सीमा नोटिस की समाप्ति से पहले नहीं की जा सकती है- जो कि वर्तमान मामले में 26.05.2021 को समाप्त हो जाएगी, जबकि रद्द करने का आदेश एक महीने पहले यानी 26.04.2021 को पारित किया गया था।
कोट ने फैसले में रणवीर सिंह बनाम यूपी राज्य, (2017) 1 एडीजे 240, गोरखा सुरक्षा सेवा बनाम सरकार (एनसीटी ऑफ दिल्ली) और अन्य, (2014) 9 एससीसी 105, मुस्तफा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2022) 1 एससीसी 294, और उत्तर प्रदेश गौण खनिज (परिहार) नियमावली, 1963 के नियम 58 यथा संशोधित 2021 पर भरोसा किया था।
केस टाइटलः मेसर्स राधिका कंस्ट्रक्शन्स अपने प्रोपराइटर श्री राकेश तिवारी के माध्यम से बनाम स्टेट ऑफ यूपी, सेक्रेटरी ,जियोलॉजी एंड माइंस लखनऊ के माध्यम से और अन्य।
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 114