क्षणिक उत्तेजना में दोस्त की गर्दन पर वार किया: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हत्या के दोषसिद्धि को गैर इरादतन हत्या में बदला
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की हत्या को सदोष मानव हत्या, जो हत्या के बराबर ना हो में बदल दिया। कोर्ट ने यह कहते हुए कि यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि अपराध मृतक को मारने के इरादे या मकसद से किया गया था, आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त की गर्दन में छुरा घोंपा था।
जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस मालाश्री नंदी की खंडपीठ ने कहा,
"रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से पता चलता है कि अपीलकर्ता और मृतक लंबे समय से दोस्त थे और वे एक साथ शराब पीते थे। घटना के दिन वे पीडब्लू-3 के घर गए थे, जहां उन्होंने शराब पी थी। सबूत में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता और मृतक के बीच कोई दुश्मनी थी। इस प्रकार, यह दर्शाने के लिए कुछ भी नहीं है कि अपीलकर्ता के पास मृतक की हत्या की पूर्व-योजना बनाने का कोई कारण था।"
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि अपीलकर्ता-आरोपी ने मृतक को श्री लेटू लोहार (पीडब्ल्यू-3) के घर बुलाया जहां मृतक को शराब उपलब्ध कराई गई थी और अपीलकर्ता ने चाकू से उसकी गर्दन पर वार कर मृतक की हत्या कर दी।
अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। निचली अदालत ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
अपीलार्थी ने विचारण न्यायालय के आक्षेपित निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष अपील में चुनौती दी।
अपीलकर्ता का तर्क था कि यह कार्य जानबूझकर नहीं किया गया था और न ही यह पूर्वचिंतन के साथ किया गया था। आगे यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता और मृतक के बीच हुए झगड़े के कारण, गर्मी के दौरान, अपीलकर्ता ने मृतक की गर्दन पर चाकू मार दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
अदालत ने नोट किया कि PW-3 के साक्ष्य जो अपीलकर्ता और मृतक के साथ बैठा था, यह बताता है कि आरोपी और मृतक के बीच विवाद हुआ था, जिसके दौरान अपीलकर्ता ने चाकू ले लिया, जिसका इस्तेमाल आम काटने के लिए किया जाता था और उसी से मृतक की गर्दन पर वार किया गया था।
रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य, गवाहों और अभियुक्तों के बयानों पर विचार करने पर, अदालत ने कहा कि हालांकि अपीलकर्ता ने मृतक की गर्दन पर चाकू से वार कर उसे मार डाला था, लेकिन अपीलकर्ता के पास मृतक की जान लेने के लिए कोई पूर्व में सोचा-समझा कारण नहीं था।
अदालत ने कहा,
"इस तथ्य पर विचार करने पर कि उक्त विवाद से पहले ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे यह पता चलता हो कि अपीलकर्ता द्वारा मृतक को चाकू मारने का कोई कारण था, हमारा विचार है कि झगड़े के कारण और जुनून की गर्मी में और शराब के नशे में अपीलकर्ता ने मृतक को चाकू मार दिया। इस तरह, हमारा विचार है कि अपीलकर्ता की कार्रवाई आईपीसी की धारा 300 (हत्या) के अपवाद 4 के तहत आती है।”
अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता को अपने कृत्य का ज्ञान था कि इससे मृत्यु या ऐसी शारीरिक चोट लगने की संभावना थी, जिससे मृतक की मृत्यु होने की संभावना थी। इसलिए, अदालत ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या के लिए दंड) के भाग- II के तहत दोषी ठहराया।
तदनुसार, अदालत ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और उसे आईपीसी की धारा 304 के भाग- II दोषी ठहराया। 7 साल की अवधि के कठोर कारावास और 5000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
केस टाइटल: श्री मंजीत सरकार @ बाबू सरकार बनाम असम राज्य और अन्य।