यूएपीए के तहत जमानत देने से इनकार करने के मामले में क्या सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका डिवीजन बेंच के समक्ष रखी जानी चाहिए? : मद्रास हाईकोर्ट ने बड़ी पीठ के पास सवाल रेफर किया
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक बड़ी पीठ को यह सवाल रेफर किया है कि क्या गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर आवेदन को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के समक्ष रखा जाना चाहिए या डिवीजन बेंच के समक्ष?
न्यायमूर्ति ए डी जगदीश चंदीरा की एकल पीठ एक आरोपी जफर सथीक की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जफर के खिलाफ यूएपीए अधिनियम (एनआईए अधिनियम के तहत अनुसूचित अपराध) के तहत केस बनाया गया है और उसे जिला एंव सत्र न्यायाधीश,कोयम्बटूर ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसी मामले में यह रेफरेंस भेजा गया है।
सरकारी अधिवक्ता ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया था कि एनआईए अधिनियम की धारा 21 (रिड विद 22 (2)) के तहत आवेदन को सुनने के लिए एकल-बेंच सक्षम नहीं है, क्योंकि इस धारा के तहत प्रावधान किया गया है कि विशेष न्यायालय (या सत्र अदालत जहां विशेष अदालत की स्थापना नहीं की गई है) के फैसले,सजा या आदेश के खिलाफ एक अपील केवल हाईकोर्ट के समक्ष दायर की जा सकती है और उक्त अपील पर हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए।
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि जमानत की अर्जी को एक अपील के रूप में माना जाना चाहिए और हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों की एक बेंच द्वारा सुना जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति चंदीरा ने हालांकि इस संदर्भ में हाईकोर्ट की दो समन्वय पीठों द्वारा दिए गए दो परस्पर विरोधी विचारों पर भी ध्यान दिया।
उन्होंने उल्लेख किया कि ए मोहम्मद हुसैन बनाम राज्य, सीआरएल आरसी संख्या 18/2020 मामले में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा था कि जब तक विशेष अदालत का गठन नहीं हो जाता, तब तक सत्र न्यायालय के पास सभी शक्तियां होंगी और वह एनआईए अधिनियम के अध्याय IV के तहत प्रदान की गई प्रक्रिया का पालन करेंगी और इस तरह, केवल एक अपील ही दायर की जा सकती है और वह भी इस अदालत की दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष पोस्ट की जानी चाहिए। इस विचार को समर्थन तमिलनाडु राज्य व अन्य बनाम एस थरवीस मेडेन मामले में एक डिवीजन बेंच द्वारा दिए गए फैसले से मिलता है।
हालाँकि, अब्दुल्ला उर्फ अब्दुल मुथालिफ बनाम राज्य, सीआरएल आरसी नंबर 223/2017 मामले में मद्रास हाईकोर्ट की एक अन्य एकल पीठ ने कहा था कि एनआईए अधिनियम की धारा 21 लागू नहीं होगी और केवल अपराध प्रक्रिया संहिता के प्रावधान अकेले ही लागू होंगे और इस प्रकार यूएपीए अधिनियम के मामलों में जिला न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर एकल न्यायाधीश द्वारा सुनवाई की जा सकती है। इस विचार को समर्थन बहादुर कोरा व अन्य बनाम बिहार राज्य मामले में पटना हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ द्वारा दिए गए फैसले से मिलता है।
इसके अलावा न्यायमूर्ति चंदीरा को सूचित किया गया कि बहादुर कोरा मामले (सुप्रा) में पूर्ण पीठ का फैसले में भले ही प्रेरक मूल्य हो, लेकिन इसे मोहम्मद हुसैन मामले (सुप्रा) में एकल पीठ के सामने नहीं रखा गया था।
इस पृष्ठभूमि में, न्यायमूर्ति चंदीरा ने माना कि चूंकि दो अलग-अलग एकल न्यायाधीशों और हाईकोर्ट की दो अलग-अलग पीठों द्वारा असंगत विचार किए गए हैं, इसलिए इस मामले पर एक आधिकारिक निर्णय देने के लिए एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है।
उन्होंने निम्नलिखित प्रश्नों को रेफर किया हैः
1) क्या यूएपी एक्ट से संबंधित एक मामले में जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ दायर आवेदन को जमानत के आवेदन के रूप में माना जाएगा या अपील के रूप में?
2) क्या, इसे न्यायालय की सिंगल बेंच के समक्ष पोस्ट किया जाना चाहिए या डिवीजन बेंच के समक्ष?
केस का शीर्षकः जफर सथीक बनाम राज्य
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