"वह बालिग और उच्च शिक्षित है, तय कर सकती है उसे कहां रहना है: " इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य पुरुष के साथ रहने वाली विवाहित महिला की सुरक्षा का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को उस विवाहित महिला को राहत दी , जिसने हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर करते हुए अपनी सुरक्षा की मांग की। इस महिला ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उसे अपने परिवार के सदस्यों से धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए, पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि उसे और एक अन्य पुरुष (जिसके साथ वह वर्तमान में रह रही है) को सुरक्षा प्रदान की जाए।
न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से पुलिस अधीक्षक, गोंडा को निर्देश दिया है कि वे याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करें।
पीठ ने कहा कि,
''निर्विवाद रूप से वह बालिग और उच्च शिक्षित महिला है और इस तरह अपनी पसंद का प्रयोग करने के अधिकार के लिए कानूनी रूप से संरक्षित है और यह तय कर सकती है कि उसे कहां रहना है,कहां जाना है और कहां निवास करना है।''
संक्षेप में तथ्य
याचिकाकर्ता नंबर एक, पोस्ट ग्रेजुएट ममता देवी ने एक पुरुष (जिसके साथ वह रह रही है) के साथ अपनी सुरक्षा के लिए अदालत का रुख किया। महिला ने दावा किया कि वह अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाहती है। हालांकि, उसके परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से माता-पिता ने उसकी आगे की पढ़ाई में कुछ बाधाएं पैदा कर दी हैं।
उसने प्रस्तुत किया कि यद्यपि वह विवाहित है, तथापि, इस समय कुछ कारणों से, वह अपने पति के साथ नहीं रह रही है और याचिकाकर्ता नंबर दो, जानकी प्रसाद (जिसके साथ वह वर्तमान में रह रही है) के साथ कुछ सुरक्षित महसूस कर रही है।
उसने यह भी दावा किया कि उसके परिवार के सदस्यों ने पहले भी उसे शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया था और इसलिए वह उनके साथ नहीं रहना चाहती है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके परिवार के सदस्यों के कहने पर याचिकाकर्ता नंबर दो के छोटे भाई को पुलिस ने बेवजह परेशान किया।
अंत में, उसने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि बभनान पुलिस पोस्ट, जिला गोंडा के चौकी प्रभारी ने उसे उसके मोबाइल नंबर पर कॉल किया और उससे अनुचित तरीके से बात की।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि कुछ व्यक्तिगत कारणों से, विवाहित महिला/याचिकाकर्ता नंबर एक अपने पति या अपने ससुराल वालों के साथ नहीं रही है, हालांकि, कोर्ट ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता नंबर एक के इस निर्णय में उसके परिवार के सदस्यों सहित किसी को भी हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं है।
अदालत ने कहा, '
'किसी भी तरीके से उसके परिवार के सदस्यों या यहां तक कि पुलिस अधिकारियों की ओर से इस तरह का कोई भी प्रयास संविधान द्वारा निहित उसके मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन और हस्तक्षेप होगा, अर्थात् जीवन और स्वतंत्रता दोनों का अधिकार।''
पूर्वाेक्त परिस्थितियों में, न्यायालय ने रिट याचिका को निपटारा करते हुए पुलिस अधीक्षक, गोंडा को निर्देश दिया है कि वह सुनिश्चित करें कि याचिकाकर्ताओं का जीवन और स्वतंत्रता सुरक्षित रहे और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि याचिकाकर्ता नंबर एक द्वारा व्यक्त और प्रयोग की गई पसंद में किसी भी तरीके से उसके परिवार के सदस्यों द्वारा या पुलिस अधिकारियों की तरफ से कोई हस्तक्षेप न किया जाए।
केस का शीर्षक - ममता देवी व अन्य बनाम प्रधान सचिव,गृह, लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
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