'महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा निजता के अधिकार में गैरकानूनी घुसपैठ': तेलंगाना हाईकोर्ट ने पीछा और ताक-झांक करने के आरोपी को हिरासत में रखने के आदेश को उचित ठहराया
तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा उनके निजता के अधिकार में एक गैरकानूनी घुसपैठ है। यह कहते हुए कोर्ट ने महिलाओं का पीछा करने, ताक-झांक करने और कथित तौर पर उन्हें न्यूड वीडियो चैट करने के लिए प्रेरित करने वाले 22 वर्षीय आरोपी को हिरासत में रखने के आदेश को बरकरार रखा।
यह देखते हुए कि ऐसे जघन्य अपराधों में दया दिखाना न्याय का उपहास होगा, न्यायमूर्ति ए राजशेखर रेड्डी और न्यायमूर्ति शमीम अख्तर की खंडपीठ ने कहा कि,
''महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा, एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा, एक महिला की निजता और पवित्रता के अधिकार में एक गैरकानूनी घुसपैठ है। यह उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर आघात है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह पीड़िता का अनादर व अपमान करता है और उसे एक दर्दनाक अनुभव के पीछे छोड़ देता है।''
इसके अलावा, यह भी कहा किः
''इसलिए अदालतों से महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण के मामलों में अत्यंत संवेदनशीलता के साथ निपटने की उम्मीद की जाती है। ऐसे मामलों से सख्ती और गंभीरता से निपटने की आवश्यकता है। यौन शोषण न केवल पीड़ित की गोपनीयता और व्यक्तिगत पवित्रता का उल्लंघन करता है, बल्कि अनिवार्य रूप से गंभीर मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ शारीरिक नुकसान का कारण बनता है। एक हत्यारा पीड़ित के भौतिक शरीर को नष्ट कर देता है, लेकिन एक यौन हमलावर एक असहाय महिला की आत्मा को अपमानित करता है।''
हिरासत/डिटेंशन के आदेश को चुनौती देते हुए एक 22 वर्षीय लड़के की मां ने एक हैबियस कार्पस याचिका दायर की थी।
पुलिस आयुक्त ने कॉलेज आने-जाने वाली लड़कियों और विवाहित महिलाओं के साथ धोखाधड़ी करने, दृश्यरतिकता/ताक-झांक करने, उनका पीछा करने, उनके कपड़े उतारने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग करने,जबरन वसूली, हमला करने जैसे शर्मनाक और अमानवीय अपराध करने का आदी होने के कारण डिटेन्यू को हिरासत/डिटेंशन में रखने का आदेश पारित किया था।
उक्त आदेश उसके खिलाफ दर्ज तीन विशिष्ट मामलों पर भरोसा करने के बाद पारित किया गया था।
मामले के तथ्यों को देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि,
''यहां यह कहना उचित है कि भारत के परंपरा से बंधे समाज में एक महिला या लड़की, उस घटना के संबंध में पुलिस के पास एक रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए बेहद अनिच्छुक होती है, जो उसकी पवित्रता से जुड़ी हो।''
''जबकि सामान्य आपराधिक कानून के तहत दंडात्मक डिटेंशन को लागू किया जा सकता है, तो प्रीवेंटिव डिटेंशन के कानून को आदतन अपराधियों के खिलाफ लागू किया जा सकता है ताकि उन्हें भविष्य में ऐसे समान अपराध करने से रोका जा सके, जो सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक हैं, जीवन की गति में हस्तक्षेप करते हैं और समाज में सुकून और शांति को नुकसान पहुंचाते हैं।''
यह देखते हुए कि डिटेंशन में लिए जाने का आदेश पारित करना उचित था। इस प्रकार अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
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