'राजद्रोह के लिए हिंसा का आह्वान आवश्यक है, उन्हें जमानत क्यों ना दी जाए?': दिल्ली हाईकोर्ट ने सीएए विरोधी भाषण मामले में शरजील इमाम की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2022-03-09 15:20 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को शरजील इमाम की याचिका पर नोटिस जारी किया। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया इलाके में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एक मामले में जमानत की मांग की है।

जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की खंडपीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए को 24 मार्च को पोस्ट किया। कोर्ट ने मामले में अभियोजन पक्ष का जवाब मांगा है। उल्लेखनीय है कि विचाराधीन एफआईआर में निचली अदालत ने इमाम को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

इमाम का मामला है कि विशेष न्यायालय यह मानने में विफल रहा कि ऐसे मामलों में, जहां मूल दंडात्मक अपराध जमानत आवेदन पर फैसला करने में न्यायालय की शक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते हैं, तब केवल इस तथ्य के आधार पर कि सत्र न्यायालय को है एनआईए एक्ट के तहत 'विशेष न्यायालय' के रूप में नामित किया गया है, किसी अभियुक्त की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।

इमाम पर दिल्ली पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर 22/2020 के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन पर यूएपीए के तहत कथित अपराध को बाद में जोड़ा गया। ट्रायल कोर्ट ने इमाम के खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना, आदि), 153बी (आरोप, राष्ट्रीय-एकता के लिए पूर्वाग्रही दावे), 505 (सार्वजन‌िक अनिष्ट में मददगार बयान) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत आरोप तय किए थे।

आज सुनवाई के दरमियान एडवोकेट तनवीर अहमद मीर ने तर्क दिया कि विचाराधीन एफआईआर मामले में इमाम को फंसाने के लिए कथित देशद्रोही भाषण से केवल कुछ खास पंक्तियों लिया गया है। उन्होंने कहा कि इमाम ने अपने भाषणों में हिंसा का आह्वान नहीं किया।

बेंच ने कहा कि इमाम की जमानत से इनकार करने के लिए अभियोजन पक्ष को अदालत की संतुष्ट‌ि के लिए तीन व्यापक पहलुओं को साबित करना चाहिए, पहला , क्या इमाम के भागने का जोखिम है, दूसरा , क्या वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और तीसरा , क्या वह अब गवाहों को डरा सकता है।

जस्टिस मृदुल ने मौखिक रूप से कहा, "हमें वास्तव में यह देखने की जरूरत है कि आदेश (ट्रायल कोर्ट) बहुत ही गूढ़ है।"

उन्होंने कहा, "यह जमानत याचिका पर विचार नहीं है। संभवत: विशेष अदालत इसे अलग कर सकती थी क्योंकि आरोप पर आदेश पूरी तरह से अलग है।" .

जस्टिस मृदुल ने अभियोजन पक्ष से पूछा, "उसे रिहा क्यों नहीं किया जाना चाहिए? क्या उसे बाहर भागने का जो‌‌खिम है? क्या वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेगा?"

दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने कहा कि इमाम के आचरण को समग्रता में देखा जाना चाहिए।

जस्टिस मृदुल ने इसके बाद राजद्रोह के मुद्दे से संबंधित केदारनाथ के फैसले का हवाला दिया।

उन्होंने कहा,

"हमें इस पर चक्र को फिर से शुरू करने की जरूरत नहीं है। यह बहुत स्पष्ट है। हिंसा के लिए उकसाने का आवाह्न होना चाहिए। हिंसा को बढ़ावा देने के लिए सचेत कार्य होना चाहिए। कृपया इसकी जांच करें।"

तदनुसार, मामले को 24 मार्च को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया था।

केस शीर्षक: शारजील इमाम बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य

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