परिसीमा अधिनियम की धारा 5 रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट, 1987 के तहत कार्यवाही पर लागू होती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-08-18 04:45 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल (प्रक्रिया) नियम, 1989 के साथ पठित रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट, 1987 के तहत कार्यवाही पर लागू होती है।

जस्टिस अजय भनोट की पीठ रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर दावा आवेदन से उत्पन्न अपील पर फैसला सुना रही थी, जिसे गैर-अभियोजन पक्ष के कारण डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया। इसके बाद दावेदार ने दावा आवेदन की बहाली के लिए आवेदन दायर किया, लेकिन उसे समय बाधित होने के कारण खारिज कर दिया गया।

न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी करते हुए दावेदार की ओर से देरी को माफ कर दिया,

“डिफ़ॉल्ट रूप से आवेदन खारिज करने का आदेश रद्द करने और मामले को बहाल करने के लिए आवेदन दायर करने से आवेदन दाखिल करने के लिए परिसीमा अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे। आवेदन दाखिल करने के लिए 30 दिन की समय-सीमा है। इसलिए इसे 30 दिनों के भीतर दाखिल करना होगा। यदि पर्याप्त कारण बताया गया तो ट्रिब्यूनल को परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत देरी को माफ करने की शक्ति मिल गई और ट्रिब्यूनल को उदार दृष्टिकोण अपनाना होगा। यहां देरी को माफ करने के लिए अपीलकर्ताओं द्वारा पर्याप्त कारण दिए गए। इसलिए ट्रिब्यूनल को देरी को माफ कर देना चाहिए।”

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता ने अपने बेटे की मौत के लिए मुआवजे की मांग करते हुए रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल, लखनऊ बेंच (रेलवे न्यायाधिकरण) के समक्ष दावा दायर किया। 09.02.2000 को गैर-अभियोजन के कारण दावा डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने 04.10.2000 को 8 महीने की देरी के बाद बहाली आवेदन दायर किया। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल (प्रक्रिया) नियम, 1989 का नियम 18 डिफ़ॉल्ट रूप से बर्खास्तगी का आदेश रद्द करने के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए 30 दिनों की समय-सीमा निर्धारित करता है। रेलवे ट्रिब्यूनल ने समय बाधित होने के कारण बहाली आवेदन खारिज कर दिया।

अपीलकर्ता ने रेलवे ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की।

हाईकोर्ट का फैसला

न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या परिसीमा अधिनियम, 1963 रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट, 1987 सपठित रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट (प्रक्रिया) नियम, 1989 के तहत कार्यवाही पर लागू होता है।

न्यायालय ने श्याम संतराम साली (मराठी) बनाम भारत संघ और धर्मेश मधुभाई परमार बनाम भारत संघ में गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों पर भरोसा जताया, जिसमें यह माना गया कि परिसीमा अधिनियम की धारा 5 सपठित रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट, 1987 रेलवे दावा न्यायाधिकरण (प्रक्रिया) नियम, 1989 के तहत कार्यवाही पर लागू होगी।

अदालत ने कहा कि मामला गोरखपुर से लखनऊ ट्रांसफर कर दिया गया और आधिकारिक निरीक्षण के कारण कार्यवाही के ट्रांसफर की सूचना अपीलकर्ता को नहीं दी गई। जिस दिन मामला ख़ारिज हुआ उस दिन सुनवाई से उनकी अनुपस्थिति उनके नियंत्रण से बाहर थी।

अदालत ने कहा,

“विलंब माफी के लिए आवेदन से पता चलता है कि देरी का कारण वास्तविक था और देरी जानबूझकर नहीं की गई। इस न्यायालय ने यह भी पाया कि अपीलकर्ता अपने दावे के अभियोजन में हमेशा मेहनती है। इसके अलावा, जब पक्षकारों के वास्तविक अधिकार अदालतों के सामने आते हैं तो अदालतों का प्रयास हमेशा वास्तविक न्याय प्रदान करना होता है, न कि तकनीकी पहलुओं पर दावेदारों के लिए न्याय के दरवाजे बंद करना।

यह राय दी गई कि देरी के लिए पर्याप्त कारण मौजूद होने पर रेलवे ट्रिब्यूनल को देरी को माफ कर देना चाहिए था।

अदालत ने कहा,

"डिफ़ॉल्ट रूप से आवेदन खारिज करने का आदेश रद्द करने और मामले को बहाल करने के लिए आवेदन दायर करने पर आवेदन दाखिल करने के लिए परिसीमा अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे। आवेदन दाखिल करने में 30 दिनों की समय-सीमा है। इसलिए इसे 30 दिनों के भीतर दाखिल करना होगा। यदि पर्याप्त कारण बताया गया तो ट्रिब्यूनल को परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत देरी को माफ करने की शक्ति मिल गई। ट्रिब्यूनल द्वारा उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना है। यहां अपीलकर्ता द्वारा देरी को माफ करने के लिए पर्याप्त कारण दिए गए हैं। इसलिए ट्रिब्यूनल को देरी को माफ करना चाहिए।"

न्यायालय ने विलंब माफी आवेदन खारिज करने का आदेश रद्द कर दिया और मामले को गुण-दोष के आधार पर निर्णय के लिए बहाल कर दिया।

केस टाइटल: मैसर्स कृषक भारती को-ऑपरेटिव लिमिटेड कृभको सूरत गुजरात बनाम यूनियन ऑफ इंडिया थ्रू जी.एम. उत्तर पूर्व रेलवे गोरखपुर

केस नंबर: एफएएफओ नंबर - 236/2002

अपीलकर्ता के वकील: अशोक कुमार भटनागर, प्रतिवादी के वकील: ए. श्रीवास्तव, अनिल श्रीवास्तव, जे.पी.मौर्य

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