धारा 41ए सीआरपीसी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 498 ए मामलों में मनमानी गिरफ्तारी से बचाव के लिए तय सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

Update: 2021-01-31 16:46 GMT



एक महत्वपूर्ण फैसले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को, विशेषकर दहेज मामलों (498 ए आईपीसी) में स्वचालित / नियमित गिरफ्तारी को रोकने और सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत निर्धारित पूर्व शर्तों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए हैं।

उच्च न्यायालय ने सभी मजिस्ट्रेटों को ऐसे पुलिस अधिकारियों के नामों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया, जिन्हें संभवतः यांत्रिक या दुर्भावनापूर्ण तरीके से गिरफ्तारी की हैं, ताकि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके।

सीआरपीसी की धारा 41 ए में यह प्रावधान है कि उन सभी मामलों में, जहां किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी धारा 41 (1) (जब पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है) के तहत आवश्यक नहीं है तो पुलिस उस व्यक्ति को, जिसके खिलाफ एक उचित शिकायत की गई है या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई है, या उचित संदेह मौजूद है कि उसने एक संज्ञेय अपराध किया है, उसे एक नोटिस जारी करेगी और अपने समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर, जिसे नोटिस में निर्दिष्ट किया जा सकता है, पेश होने के लिए कहेगी।

इसमें आगे कहा गया है कि जहां अभियुक्त अनुपालन करता है और नोटिस का अनुपालन करना जारी रखता है, उसे नोटिस में उल्लिखित अपराध के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जब तक कि रिकॉर्ड किए जाने के कारणों के लिए, पुलिस अधिकारी की राय है कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए।

जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि इस सुरक्षा के बावजूद, कई मामलों में पुलिस अभी भी नियमित रूप से आरोपियों को गिरफ्तार कर रही है, भले ही वे एसे अपराध में शामिल हैं, जिसमें 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है।

इस पर चिंता व्यक्त करते हुए, बेंच ने टिप्पणी की, "धारा 41 ए के प्रावधान को केवल इस उद्देश्य से शामिल किया गया था कि संबंधित, जिस पर जघन्य अपराध का आरोप नहीं लगा है और जिसकी हिरासत की आवश्यकता नहीं है, को गिरफ्तारी का सामना नहीं करना पड़े, हालांकि हमें दुख है कि यह प्रावधान अपने उद्देश्‍य को पूरा नहीं कर पा रहा है।" 

इसलिए कोर्ट ने मजिस्ट्रेट/ पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया कि जब ऐसे अभियुक्त को उनके सामने पेश किया जाता है, जिसने ऐसा अपराध किया है, जिसमें 7 साल तक की सजा हो सकती है तो मजिस्ट्रेट द्वारा खुद को संतुष्ट करने के बाद कि पुलिस अधिकारी द्वारा रिमांड के लिए आवेदन एक प्रमाणिक तरीके से किया गया है और केस डायरी में उल्लिखित रिमांड मांगने के कारण धारा 41 (I) (बी) और 41 ए सीआरपीसी की आवश्यकताओं के अनुसार हैं, और रिमांड की मांग के समर्थन में ठोस सामग्री मौजूद है, इसके बाद ही रिमांड दी जा सकती है।

सोशल एक्‍शन फोरम फॉर मानव अधिकार और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए खंडपीठ ने निम्न कई निर्देश जारी किए। 

आरोपी के आत्मसमर्पण करने पर भी तेजी से जमानत दें

यहां तक ​​कि जहां आरोपी खुद आत्मसमर्पण करता है या जहां जांच पूरी हो चुकी है और मजिस्ट्रेट को धारा 170 (I) और धारा 41 (I) (बी) (ii) (ई) सीआरपीसी के तहत आरोपी को न्यायिक हिरासत में लेने की जरूरत है, इस प्रारंभिक चरण में लंबे समय तक कारावास, जहां अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया गया है, में नहीं रखा जा सकता है, और मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालयों को जमानत पर शीघ्रता से विचार करना होगा और उन्हें यंत्रवत् रूप से इनकार नहीं करना चाहिए, विशेष रूप से ऐसे मामलों में , जिसमें 7 साल तक की सजा हो सकती है, जब तक आरोप गंभीर न हों और जमानत की अनुमति देने में कोई कानूनी बाधा न हो।

नियमित जमानत याचिका के लंबित होने के दौरान अंतरिम जमानत

आरोपियों को अंतरिम जमानत पर रिहा करने की सुविधा उनके नियमित जमानत के विचाराधीन होने के कारण मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायाधीशों द्वारा उचित मामलों में भी दी जा सकती है।

रिमांड को नियमित रूप से मंजूर नहीं किया जाना चाहिए

सत्र जिला न्यायाधीशों को रिमांड मजिस्ट्रेटों पर आरोपित करने के लिए भी निर्देशित किया जाना चाहिए ताकि पुलिस अधिकारियों को आरोपी की रिमांड नियमित रूप से न दी जा सके, यदि धारा 41 (1) (बी) और 41 ए सीआरपीसी में उल्लिखित रिमांड देने की पूर्वशर्तों का खुलासा, उन मामलों में नहीं किया गया है, जिनमें 7 साल की सजा हो सकती है, या जहां पुलिस अधिकारी ठोस सामग्री के अभाव में दुर्भावनापूर्ण तरीके से आरोपियों के लिए रिमांड की मांग करते हुए दिखाई देते हैं।

न्यायालय ने चेतावनी दी, केस डायरी में नियमित रूप से उल्लेख करके कि धारा 41 (1) (बी) या 41 ए सीआरपीसी में निर्दिष्ट विशेष शर्त पुलिस रिमांड की मांग के लिए पूरी हो गई है, गिरफ्तारी को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त कारण प्रदान नहीं करेगी।

कोर्ट ने रजिस्ट्री को यह आदेश डीजीपी, यूपी, सदस्य सचिव, यूपी एसएलएसए, यूपी के सभी जिलों के जिला न्यायाधीशों, सभी संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेटों, जिनमें पास रिमांड के लिए आरोपियों को पेश किया जाता है, भेजेने का निर्देश दिया।

पृष्ठभूमि

यह निर्देश एक रिट याचिका पर आए हैं, जिसे एक परिवार ने दायर किया था, जिसकी भावी बहू ने उस पर दहेज मांगने का आरोप लगाया था।

याचिकाकर्ता-अभियुक्त ने प्रस्तुत किया था कि भले ही उसके मामल में 7 साल से कम की सजा हो, लेकिन संबंधित पुलिस अधिकारी नियमित रूप से शिकायतकर्ता के प्रभाव में उसके घर आता रहा।

यह तर्क दिया गया कि धारा 204, धारा 41 (1) (बी), धारा 41 (1) (बी) (ii) (ई), धारा 41 (ए) सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत, पुलिस याचिकाकर्ता को बिना नोटिस दिए और बिना याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई विश्वसनीय साक्ष्य एकत्र किए, गिरफ्तार नहीं कर सकती।

केस टाइटिल: विमल कुमार और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।

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