अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम- यदि कोई प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-03-07 10:33 GMT

Gujarat High Court

गुजरात हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 323, 332, 504, 506(2), 114 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(5-ए) के तहत अपराधों के लिए जमानत आवेदन को रद्द करने के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील स्वीकार कर लिया है।

जस्टिस बीएन करिया की खंडपीठ ने कहा है कि अपीलकर्ता ने यहां शिकायतकर्ता की जाति के बारे में किसी भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया था और शिकायतकर्ता की जाति से भी अवगत नहीं था।

मामले यह था कि शिकायतकर्ता और एक अन्य व्यक्ति रात के समय जीईबी के सब-स्टेशन पर मौजूद थे और उस समय गांव की लाइटें काट दी गई थीं। अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को को बुलाया और उसे गाली देना शुरू कर दिया। इसके बाद, अपीलकर्ता अन्य तीन व्यक्तियों के साथ थाने आया और शिकायतकर्ता पर लात-घूंसे मारे। शिकायतकर्ता और अन्य कर्मचारी को अस्पताल ले जाया गया।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसे वर्तमान अपराध में झूठा फंसाया गया था और अत्याचार अधिनियम की धारा 3(2)(5-ए) की सामग्री नहीं बनाई गई थी। अपीलकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता की जाति के बारे में अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया गया। अपीलार्थी का कोई आपराधिक पूर्ववृत्त भी नहीं था, अतः अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।

प्रतिवादियों ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता ने, एक सरकारी कर्मचारी के रूप में अपराध किया था, जैसा कि शिकायत की सामग्री में स्‍थापित है। प्रथम दृष्टया, उसने अपराध किया था और अपीलकर्ता के पक्ष में न्यायालय द्वारा कोई उदार दृष्टिकोण नहीं लिया जा सकता था।

जस्टिस करिया ने यह ध्यान देने के बाद कि कोई अपमानजनक शब्द नहीं इस्तेमाल किया गया था, सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य 2018 (6) एससीसी 454 पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि अत्याचार अधिनियम के तहत मामलों में अग्रिम जमानत देने के खिलाफ कोई पूर्ण रोक नहीं है, यदि कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है या जहां न्यायिक जांच में प्रथम दृष्टया दुर्भावना नही पाई जाती है।

इसके अलावा, गोरिगे पेंटैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (2008)12 सुप्रीम कोर्ट केस 531 में इसकी पुष्टि की गई थी।

चूंकि अत्याचार अधिनियम के किसी भी प्रावधान को आकर्षित करने के लिए कोई बयान या आरोप नहीं थे, आपराधिक अपील की अनुमति दी गई थी और तदनुसार सत्र न्यायाधीश के फैसले को रद्द कर दिया गया था।

अपीलकर्ता को 10,000 रुपये के मुचलके के साथ अग्रिम जमानत दी गई।

उच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि अपीलकर्ता को आवेदन की सुनवाई की पहली तारीख और बाद के सभी मौकों पर मजिस्ट्रेट के निर्देश के अनुसार मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित रहना चाहिए जो कि मौजूदा मामले में न्यायिक हिरासत के बराबर होगा।

केस शीर्षक: चौधरी प्रवीणभाई रेवाभाई बनाम गुजरात राज्य

केस नंबर: आर/सीआर.ए/1625/2021

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