अभियोजन के लिए स्वीकृति आदेश भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74(iii) के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते टिप्पणी की कि (अभियोजन के लिए) एक मंजूरी आदेश भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 (1) (iii) के अर्थ के भीतर एक सार्वजनिक दस्तावेज है और इसलिए, साक्ष्य अधिनियम की धारा 76/77 के तहत तैयार की गयी उसी की प्रमाणित प्रति साक्ष्य में स्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एसीजेएम, भिवानी (हरियाणा) द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी को उनके द्वारा पारित एक मंजूरी आदेश को औपचारिक रूप से साबित करने के लिए गवाह के रूप में पेश होने के लिए तलब किया गया था।
आरोपितों के खिलाफ शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत जिला भिवानी के एक थाने में प्वाइंट 315 बोर की देसी पिस्टल, बिना परमिट या लाइसेंस के 8 जिंदा कारतूस रखने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
चूंकि आर्म्स एक्ट के तहत यह आवश्यक है कि इस तरह के मामले में अभियुक्त पर मुकदमा चलाने से पहले संबंधित जिला मजिस्ट्रेट, जो सक्षम प्राधिकारी हैं, से अभियोजन की मंजूरी प्राप्त की जानी चाहिए, इसलिए तत्काल मामले में भी अभियोजन की मंजूरी जिलाधिकारी से ली गयी।
उक्त स्वीकृति आदेश सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत प्रस्तुत रिपोर्ट के साथ संलग्न किया गया था और जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी के रीडर को गवाहों की सूची में गवाह के रूप में उद्धृत किया गया ताकि जिलाधिकारी के रीडर द्वारा उक्त मंजूरी आदेश को औपचारिक रूप से साबित किया जा सके।
हालांकि, प्रतिवादी-अभियुक्त द्वारा किसी आवेदन या सरकार के किसी भी अनुरोध के बिना, एसीजेएम, भिवानी ने स्वत: आदेश दिया कि जिलाधिकारी के रीडर के बजाय, जिलाधिकारी को स्वयं गवाहों की सूची में जोड़ा जाए और मंजूरी आदेश को साबित करने के लिए उन्हें बुलाया जाए।
इस आदेश को चुनौती देते हुए, सरकार ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि स्वीकृति आदेश साक्ष्य अधिनियम की धारा 74(1)(iii) के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज है और इसलिए, इसे जिलाधिकारी के रीडर द्वारा साक्ष्य अधिनियम की धारा 78 के अनुसार सार्वजनिक दस्तावेज साबित किया जा सकता है।
पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुनने के बाद कोर्ट ने निम्नलिखित कारणों से याचिका में मेरिट पाई:-
न तो अभियुक्त द्वारा और न ही सरकार द्वारा कोई आवेदन किया गया था और इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने गवाह संख्या 9-जिला मजिस्ट्रेट के रीडर के स्थान पर खुद जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी को तलब करना न्यायोचित नहीं था।
जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी के रीडर को गवाह के रूप में केवल जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी द्वारा दी गई मंजूरी को सार्वजनिक दस्तावेज साबित करने के लिए उद्धृत किया गया था। चूंकि रीडर कोर्ट के अवलोकन के साथ-साथ बचाव पक्ष के वकील के लिए मूल रिकॉर्ड लाएगा और वह (बचाव पक्ष के वकील) मंजूरी आदेश के आधार के तौर पर इस्तेमाल होने वाले रिकॉर्ड में वर्णित कारणों को लेकर इस गवाह से जिरह करेगा। ऐसी स्थिति में जिला मजिस्ट्रेट को स्वत: तलब करने का कोई औचित्य नहीं है।
स्वीकृति आदेश भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74(1)(iii) के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 76/77 के तहत तैयार की गई प्रमाणित प्रति साक्ष्य में स्वीकार्य है।
उपरोक्त के आलोक में, इस याचिका को स्वीकार किया गया और एसीजेएम, भिवानी द्वारा दिनांक 31.10.2017 और 21.11.2017 को पारित आक्षेपित आदेशों को निरस्त कर दिया गया। ट्रायल कोर्ट को गवाह संख्या 9, यानी जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी के रीडर को गवाही देने के लिए बुलाने का निर्देश दिया गया।
केस का शीर्षक - हरियाणा सरकार बनाम आसमां एवं मामले से संबंधित अन्य व्यक्ति
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