सीआरपीसी की धारा 91 | जांच अधिकारी और उनके सीनियर के बीच पत्राचार चार्जशीट का हिस्सा नहीं, इसलिए उन्हें तलब नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2023-05-24 04:19 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि चार्जशीट दायर करने से पहले जांच अधिकारी द्वारा अपने सीनियर अधिकारियों के साथ चर्चा में तैयार की गई रिपोर्ट को साक्ष्य के उद्देश्य से अदालत के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता।

जस्टिस के नटराजन की एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा,

"सीआरपीसी की धारा 161 के तहत जांच अधिकारी द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों को छोड़कर साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 के तहत विरोधाभास को छोड़कर शेष दस्तावेजों को तलब नहीं किया जा सकता।"

अभियुक्त सिद्दप्पा बी एच ने विशेष अदालत के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें मुकदमा चलाने की अनुमति प्राप्त करने के उद्देश्य से जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत कथित तीन रिपोर्टों को तलब करने के लिए सीआरपीसी की धारा 91 के तहत उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया।

इसके अलावा वह जांच अधिकारी से क्रॉस एक्जामिनेशन करना चाहता था और अन्य आठ गवाहों के अलावा खुद को गवाह के रूप में पेश करने के लिए और अपनी पत्नी को गवाह के रूप में बुलाने के लिए आवेदन खारिज करने के आदेश को चुनौती दी।

अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जांच अधिकारी ने उच्च अधिकारी के साथ चर्चा कर कुछ रिपोर्ट तैयार की। उक्त दस्तावेज उनके प्रशासन के भीतर पत्राचार हैं और चूंकि वे गोपनीय हैं। इसलिए उन्हें साक्ष्य के उद्देश्य से न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता है। यह जांच के दौरान अधिकारियों द्वारा बनाई गई राय है जो मामले का हिस्सा नहीं हो सकती। इसलिए इसे याचिकाकर्ता द्वारा सत्यापित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

जहां तक जांच अधिकारी को आगे क्रॉस एक्जामिनेशन का संबंध है, यह प्रस्तुत किया गया कि वह सेवानिवृत्त हो गया है और अब पार्किंसंस रोग से पीड़ित है। वह अपनी याददाश्त खो चुका है।

जांच - परिणाम:

पीठ ने कहा कि पुलिस पहले ही मामले की जांच कर चुकी है और वर्ष 2008 में ही चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। वर्ष 2005 में एफआईआर दर्ज की गई और लगभग 15 वर्षों से मुकदमा लंबित है। अभियोजन पक्ष द्वारा जांच अधिकारी से पूरी तरह से पूछताछ की गई और अभियुक्तों द्वारा क्रॉस एक्जामिनेशन की गई।

इस प्रकार रिपोर्ट तलब करने की याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा,

"कोई भी जांच दस्तावेज, जो जांच की केस डायरी में है, उसको साक्ष्य अधिनियम की धारा 145 के तहत विरोधाभास के लिए समन या समन नहीं किया जा सकता है। यह सीआरपीसी की धारा 172(3) के तहत वर्जित है।”

इसमें कहा गया,

"चार्जशीट दायर करने से पहले उच्च अधिकारी के साथ चर्चा पर पीडब्ल्यू79, (जांच अधिकारी) द्वारा तैयार की जाने वाली विभिन्न रिपोर्ट को तलब नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे जांच का हिस्सा हैं, लेकिन सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत रिपोर्ट चार्जशीट या अंतिम का हिस्सा नहीं हैं। इसलिए सीआरपीसी की धारा 91 के तहत दस्तावेजों को समन करने के उद्देश्य से तलब नहीं किया जा सकता। पीडब्ल्यू79 को आगे क्रॉस एक्जामिनेशन के लिए बुलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

हालांकि, अदालत ने खुद को गवाह के रूप में बुलाने और अपनी पत्नी को गवाह के रूप में पेश करने की याचिका को स्वीकार कर लिया।

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता-आरोपी ने पहले ही अपनी ओर से दो गवाहों की जांच की, लेकिन याचिकाकर्ता-आरोपी खुद के लिए अभियोजन पक्ष के सबूतों को समझाने या खंडन करने के लिए बेहतर गवाह है। यदि वह गवाह कठघरे में नहीं आता है तो उसके खिलाफ प्रतिकूल अनुमान लगाने की पूरी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और यह आय से अधिक संपत्ति का मामला है, जहां याचिकाकर्ता आरोपी की संपत्ति के अलावा पत्नी की संपत्ति भी शामिल है।”

अंत में अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले को मौजूदा दिन के आधार पर ले और कानून के अनुसार इसका निस्तारण करे।

केस टाइटल: लोकायुक्त पुलिस द्वारा सिद्दप्पा बी एच एंड द स्टेट

केस नंबर: आपराधिक याचिका नंबर 2954/2023, आपराधिक याचिका नंबर 2906/2023, आपराधिक याचिका नंबर 2908/2023

साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 181/2023

आदेश की तिथि: 18-05-2023

प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट शंकर पी हेगड़े और स्पेशल एडवोकेट बी.एस. प्रसाद प्रतिवादी लोकायुक्त के लिए।

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