आईपीसी की धारा 295A | देश के 'धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने' को प्रभावित करने वाले अपराधों को कम नहीं आंका जा सकता: उत्तराखंड हाईकोर्ट

Update: 2023-04-25 05:22 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले और देश के 'धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने' को प्रभावित करने की प्रवृत्ति वाले अपराधों को कम नहीं आंका जा सकता।

जस्टिस शरद कुमार शर्मा की एकल न्यायाधीश की पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295ए के तहत अपराध को कम आंकने से करने इनकार करते हुए कहा,

"संविधान में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'लोकतांत्रिक गणराज्य' इन शब्दों को क्यों शामिल किया गया, इसका व्यापक कारण इस देश के प्रत्येक नागरिक में दूसरे धर्म के प्रति पारस्परिक सम्मान और सम्मान पैदा करना है। इसके अभाव में यदि दूसरे की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के कृत्य को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह परजीवी के रूप में कार्य करता है, जो समाज को ही खा जाता है और अकारण शत्रुता पैदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक अव्यवस्था और अशांति होती है।

इस मामले में राष्ट्रीय हिंदू वाहिनी, उधम सिंह नगर के उप-जिला सचिव होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई, जिसमें उस पर दूसरे धर्म के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने और उसे अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर पोस्ट करने का आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ता ने सौहार्दपूर्ण समाधान के आधार पर लंबित मामले को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हालांकि, न्यायालय ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत निहित शक्ति का उपयोग करने से पहले यह सचेत होना चाहिए कि क्या अपराध का व्यापक सामाजिक प्रभाव है। यह नोट किया गया कि आईपीसी की धारा 295ए के तहत दंडनीय अपराध में देश के 'धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने' को प्रभावित करने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए उसे सीआरपीसी की धारा 320 के तहत कंपाउंड नहीं किया जा सकता।

आईपीसी की धारा 295ए के तहत इस्तेमाल किए गए 'जानबूझकर' और 'दुर्भावनापूर्ण' शब्दों पर जोर देते हुए कोर्ट ने कहा,

"जानबूझकर मतलब है कि यह विशेष समुदाय से संबंधित व्यक्ति द्वारा किया गया सचेत कार्य है, जो सम्मान को अपमानित करने के लिए किया जाता है, जो इस देश में अन्य धर्मों का समान रूप से आनंद लेता है।"

आगे यह देखा गया,

"यदि भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 के तहत नागरिक होने के नाते कोई व्यक्ति दूसरे धर्म के प्रति सम्मान नहीं रखता है तो यह निश्चित विनाशकारी स्थिति को जन्म दे सकता है, जो समय पर प्रशासन और विशेष रूप से तथाकथित निर्मित धार्मिक समूहों द्वारा बेकाबू हो जाता है।"

तदनुसार, अदालत ने मामले को जोड़कर लंबित शिकायत रद्द करने से इनकार कर दिया।

केस टाइटल: ब्रजेश बनाम उत्तराखंड राज्य

केस नंबर: C482 नंबर 706/2023

आदेश दिनांक: 17 अप्रैल, 2023

याचिकाकर्ता के वकील: हर्षपाल सेखों और उत्तरदाताओं के वकील: अमित भट्ट, राज्य के सब-एडवोकेट जनरल; श्री जसमीत सहोता, निजी प्रतिवादी के वकील।

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