एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए यह आवश्यक कि डिसऑनर्ड चेक खाताधारक ने अपने नाम और हस्ताक्षर से जारी किया होः मेघालय हाईकोर्ट
मेघालय हाईकोर्ट ने दोहराया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रयूमेंट एक्ट (एनआई एक्ट) की धारा 138 के तहत अपराध के लिए खाताधारक द्वारा अपने नाम और हस्ताक्षर के तहत डिसऑनर्ड चेक जारी किया जाना चाहिए।
जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह ने कहा कि केवल उस खाताधारक को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिस खाते से चेक ड्रा किया गया है और इस तरह के दोष को अन्य लोगों तक नहीं बढ़ाया जा सकता है, सिवाय जैसा कि धारा 141 एनआई एक्ट के तहत प्रावधान किया गया है, जो कंपनी या पार्टनरशिप द्वारा और उसकी ओर से अपराधों से संबंधित है, जहां चेक पर हस्ताक्षरकर्ता कंपनी का निदेशक या साझेदारी फर्म का भागीदार हो सकता है।
मौजूदा मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दो याचिकाएं दायर की गईं थीं। यह न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जेएमएफसी) शिलांग की अदालत द्वारा पारित एक सामान्य आदेश के खिलाफ दायर की गईं थीं।
प्रतिवादी ने चेक बाउंस होने के एक कथित मामले में एनआई एक्ट, 1881 की धारा 142 सहपठित धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की थी, जिसमें एचडीएफसी बैंक, मवलाई, नोंगलम शाखा पर 1,00,000 रुपये का चेक ड्रॉ किया गया था। बैंक में प्रस्तुत किए जाने पर बैंक ने प्रतिवादी के खाते में पैसा ट्रांसफर कर दिया। प्रतिवादी ने तब एचडीएफसी बैंक, पुलिस बाजार शाखा, शिलांग गया, जहां यह पाया गया कि उक्त राशि बैंक खाते में वापस की जा चुकी थी।
कथित कार्रवाई से व्यथित होकर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 सहपठित धारा 138 के तहत एक शिकायत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, शिलांग की अदालत के समक्ष की गई, जिसमें आरोपियों के खिलाफ एनआई एक्ट के उक्त प्रावधानों के तहत कार्रवाई शुरू करने की प्रार्थना की गई है।
जेएमएफसी ने बयान के आधार पर निर्देश दिया कि आरोपियों को समन जारी किया जाए। उक्त आदेश से अत्यधिक व्यथित एवं असन्तुष्ट होने के कारण याचीगणों ने उपरोक्त याचिकाओं के माध्यम से अपने विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही को निरस्त करने की प्रार्थना के साथ इस हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया ।
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के गहन अवलोकन पर, कोर्ट ने कहा कि अपराध के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हो सकते हैं: -
(i) कि एक व्यक्ति ने किसी ऋण या देनदारियों के निर्वहन के लिए दूसरे को पैसे के भुगतान के लिए अपने खाते पर एक चेक प्राप्त किया;
(ii) उक्त चेक तीन महीने के भीतर अदाकर्ता के बैंक को प्रस्तुत कर दिया गया है;
(iii) यह कि बैंक द्वारा 6 अपर्याप्त फंड के कारण भुगतान न किए गए चेक को वापस कर दिया गया था या यह बैंक द्वारा किए गए समझौते द्वारा उस खाते से भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक है।
(iv) कि पेयी उक्त चेक के आहर्ता से पैसे के भुगतान की मांग करता है, ऐसी मांग उस तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर की जाती है, जब उक्त चेक को ऑनर करने से मना कर दिया गया था; और
(v) कि आहर्ता नोटिस प्राप्त होने के पंद्रह दिनों के भीतर पेयी को भुगतान करने में विफल रहता है।
अदालत ने अलका खांडू अफहद बनाम अमर श्यामप्रसाद मिश्रा और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि केवल एक व्यक्ति जो उसके चेक पर हस्ताक्षरकर्ता है और ऐसा चेक बैंक द्वारा अनपेड वापस किया गया है, यह कहा जा सकता है कि उसने धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अपराध किया है।
कोर्ट ने कहा,
"यह धारा संयुक्त दायित्व के बारे में नहीं बोलती है, यहां तक कि संयुक्त देयता के मामले में, व्यक्तिगत मामले में, एक व्यक्ति, जिसने अपने खाते पर चेक ड्रॉ किया है, उसके अलावा अन्य व्यक्ति को धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अपराध के लिए आरोपी नहीं बनाया जा सकता है, जब तक कि बैंक खाता संयुक्त न हो और वह चेक के हस्ताक्षरकर्ता न हो।"
एचडीएफसी बैंक के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए, कोर्ट ने कहा कि चेक जारी करने या डिसऑनर के लिए बैंक को कोई भूमिका नहीं हो सकती है; यह नोट किया गया कि बैंक केवल ग्राहकों के पैसे का संरक्षक है और ऐसे ग्राहकों के निर्देशों का पालन करना है।
कोर्ट ने कहा, "अपर्याप्त धन के मामले में, बैंक केवल उसे रिपोर्ट करने के लिए है और ग्राहक के किसी भी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकता है, जिसने चेक जारी किया था, जो बाद में डिसऑनर्ड हो गया था।"
केस टाइटल: एचडीएफसी बैंक लिमिटेड मवलाई नोंगलम शाखा और अन्य बनाम श्री बकलाई सीज और अन्य।