[सेक्‍शन 66ए आईटी एक्ट] पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती, कोर्ट चार्जशीट का संज्ञान नहीं ले सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी, यूपी की जिला अदालतों को निर्देश दिया

Update: 2021-12-14 11:19 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश की सभी जिला अदालतों और पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई एफआईआर दर्ज ना की जाए और उक्त धारा के तहत दायर की चार्जशीट का कोई भी अदालत संज्ञान न ले।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने यह निर्देश जारी किया। कोर्ट ने यह नोट किया था कि आईटी अधिनियम की धारा 66ए को श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2015) 5 एससीसी 1 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही रद्द कर दिया है।

न्यायालय हर्ष कदम की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आईटी अधिनियम, 2008 की धारा 66 ए के तहत यूपी पुलिस की चार्जशीट और विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ द्वारा जारी समन आदेश को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया था कि आक्षेपित एफआईआर गलत है क्योंकि याचिकाकर्ता ने एफआईआर में कोई कृत्य नहीं किया, इसलिए, आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत दायर आरोप पत्र स्पष्ट रूप से अनुचित है और अनावश्यक है।

राज्य की ओर से पेश एजीए ने प्रस्तुत किया कि आईटी अधिनियम की धारा 66 ए की वैधानिकता सुप्रीम कोर्ट ने समाप्त कर दिया है। श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2015) 5 एससीसी 1 में सुप्रीम कोर्ट ने उक्त धारा को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।

इसे देखते हुए न्यायालय ने कहा,

"... जब आईटी अधिनियम, 2008 की धारा 66ए के तहत एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती थी क्योंकि कानून के उक्त प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने 24.03.2015 को रद्द कर दिया है, फिर कैसे आरोप पत्र दायर किया गया है और समन आदेश जारी किया गया है?"

इसलिए, जांच अधिकारी द्वारा आईटी अधिनियम, 2008 की धारा 66ए के तहत चार्जशीट दायर करने वाले और नीचली अदालत द्वारा बिना जांच के उस चार्जशीट का संज्ञान लेने वाले मामले को दिमाग का इस्तेमाल का स्पष्ट उदाहरण बताते हुए अदालत ने आरोप पत्र और समन आदेश को रद्द कर दिया।

केस शीर्षक: हर्ष कदम @ हितेंद्र कुमार बनाम यूपी प्र‌िंस‌िपल सेक्रेटरी होम के जरिए और अन्‍य

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