शांतिपूर्ण माहौल में काम करने का अधिकार एक बुनियादी अधिकार, यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने में प्रशासनिक चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2021-12-13 09:31 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम के एक अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में शिकायतों को जल्द से जल्द निस्तारण में प्रशासन की जिम्मेदारी को रेखांकित किया है। अदालत ने कहा कि शिकायत की स्थापना के बाद से पर्याप्त समय बीतना और मामले में अंतिमता का अभाव महिला कर्मचारियों की दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

समय का प्रवाह अनिवार्य रूप से उन पर प्रभाव डालेगा, जब वे उसी ही स्थान पर कार्य जारी रखेंगी। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले ने उसे मानसिक पीड़ा भी दी है।

अदालत ने पूछा,

"यदि ऐसा है तो क्या यह नियोक्ता का कर्तव्य नहीं है कि वह ऐसा माहौल सुनिश्चित करे, जो कर्मचारियों के लिए प्रभावी ढंग से काम करने के लिए अनुकूल हो?"

अदालत ने कहा कि लोक प्रशासन में दक्षता संवैधानिक जनादेश है और शिकायत को समयबद्ध तरीके से संबोधित करने में बरती गई असंवेदनशीलता यौन उत्पीड़न के अपराधियों को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त होगी।

जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम की सिंगल जज बेंच ने एक महिला कर्मचारी की रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिसकी यौन उत्पीड़न की शिकायत आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के समक्ष साढ़े सात वर्षों से लंबित है।

अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि काम करने के अधिकार में शांतिपूर्ण माहौल में काम करने का अधिकार शामिल है और कुशल प्रशासन विकसित करने के लिए बेहतर माहौल सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन कर्तव्यबद्ध है ।

अदालत ने कहा,

"काम करने का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है। काम के अधिकार में शांतिपूर्ण माहौल शामिल होना चाहिए।...कर्मचारियों के मन में सुरक्षा की भावना विकसित करना नियोक्ता का कर्तव्य है, विशेष रूप से महिला कर्मचारी में सुरक्षा की भावना से ही कार्य स्थल में दक्षता आएगी और ऐसी किसी भी सुरक्षा के अभाव में, निस्संदेह, कर्मचारी बेहतर तरीके से काम करने की स्थिति में नहीं होंगे...।"

2013 से दो आंतरिक शिकायत समितियों के गठन के बावजूद, प्रतिवादी अधिकारियों ने उचित कार्रवाई में व‌िलंब के लिए यौन उत्पीड़न अधिनियम की धारा 4 के अनुरूप दूसरी समिति के गठन न होने को जिम्मेदार ठहराया।

भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र सहित प्रतिवादी प्राधिकारियों ने तर्क दिया कि यदि वे दूसरी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ते हैं/कार्रवाई शुरू करते हैं, तो इस प्रकार की गई किसी भी कार्रवाई को कथित उत्पीड़क की चुनौती पर रद्द किया जा सकता है।

इससे पहले 2013 में दूसरी आंतरिक शिकायत समिति अपनी रिपोर्ट में इस नतीजे पर पहुंची थी कि आरोपी का गुनाह साबित हो गया है। पहली समिति को हालांकि 2013 में गठित किया गया थी लेकिन वह जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रही।

हालांकि कार्यवाही लंबित रहने से असंतुष्ट और दूसरी समिति की जांच रिपोर्ट से आश्वस्त होने के बावजूद प्रतिवादी अधिकारियों के प्रस्तुतीकरण को स्वीकार कर लिया गया और अदालत ने तीसरी आंतरिक शिकायत समिति के गठन की अनुमति दी, जिसका कामकाज एक सख्त समय-सीमा के अधीन होगा।

कोर्ट ने नई आंतरिक शिकायत समिति और अन्य कार्यवाही के संबंध में निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं-

-नई समिति का गठन कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 4 के अनुपालन में आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से एक सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा।

-एनजीओ, जो धारा 4 के तहत आईसीसी का एक अनिवार्य सदस्य होगा, को कलपक्कम के बाहर अधिमानतः नियुक्त किया जाना चाहिए।

-भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा गठित की जाने वाली नई समिति पिछली समिति द्वारा पहले से ही विचार किए गए साक्ष्य का उपयोग कर सकती है, पार्टियों को अपना मामला बनाने और किसी भी अतिरिक्त सबूत पर विचार करने की अनुमति दे सकती है।

-प्रतिवादी प्राधिकारी के कानूनी दायित्वों के तत्वावधान में गठित समिति को आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर जांच समाप्त करने और अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

-जांच रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद, यूनियन ऑफ इंडिया, परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम की निदेशक और महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वे रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक कानून के साथ-साथ सेवा कानूनों के तहत तेजी से कार्यवाही शुरू करें।

याचिकाकर्ता महिला कर्मचारी ने ऐसी शिकायतों से निपटने में प्रशासनिक पक्षपात का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने तर्क दिया कि तीसरी समिति के गठन को रद्द किया जाना चाहिए और दूसरी समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जानी चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील ने प्रक्रिया को अनिश्चित काल तक बढ़ाने पर मुवक्किल का असंतोष भी व्यक्त किया।

केस नंबर: WPNos.6995/2014, 27067 & 27068/2013 & MPNos.2/2014, 1& 2/2013

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