अनुच्छेद 25 के तहत अपना धर्म मानने के अधिकार का प्रयोग किसी ग़ैरक़ानूनी संरचना के संरक्षण के लिए नहीं हो सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2020-07-20 11:15 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत नागरिक को हर जगह पूजा करने और ग़ैरक़ानूनी रूप से बने पूजा स्थलों के संरक्षण का अधिकार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि ग़ैरक़ानूनी मंदिर बनाने का अधिकार आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस नहीं कहा जा सकता और इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत कोई संरक्षण नहीं मिला हुआ है।

कोर्ट ने कहा,

"…ग़ैरक़ानूनी मंदिर और वह भी फूटपाथ पर,  इसे बनाने के अधिकार के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह किसी धर्म या धार्मिक प्रैक्टिस का हिस्सा है और न ही इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण मिला है।"

इस बारे में बृहत् बेंगलुरु महानगर पालिके (बीबीएमपी) के फूटपाथ पर बने एक ग़ैरक़ानूनी मंदिर को नहीं ढहा पाने को लेकर दायर याचिका पर कोर्ट ने यह प्रतिक्रिया दी।

एक रेज़िडेंट वेल्फ़ेर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) ने इस मंदिर को बचाने के लिए हस्तक्षेप किया जिसे कोर्ट का कोपभाजन बनना पड़ा।

कोर्ट ने कहा,

"नागरिकों का कर्तव्य यह देखना है कि उसके इलाक़े में कोई ग़ैरक़ानूनी संरचना विशेषकर कोई ग़ैरक़ानूनी धार्मिक संरचना नहीं बने। लेकिन आवेदक एक मंदिर को बचना चाहते हैं जिसे फूटपाथ पर बनाया गया है। अगर आवेदकों की मंशा सही है तो बहुत पहले उन्हें इसे फूटपाथ से अन्यत्र ले जाने का आवेदन देना चाहिए था, लेकिन उनकी मंशा एक ग़ैरक़ानूनी संरचना को बचाने की है। मैं नहीं मानता कि कोई ईश्वर या धर्म फूटपाथ पर बने किसी ग़ैरक़ानूनी संरचना का समर्थन कर सकता है। फूटपाथ चलने के लिए है और कोई धार्मिक संरचना इसके मार्ग में बाधा नहीं बन सकती।"

RWA के वकील ने कहा कि मंदिर को 1854 में बनाया गया था और शुरू में यह रोड या फूटपाथ पर नहीं था पर जैसे जैसे रोड को चौड़ा किया गया मंदिर फूटपाथ पर चला गया।

इस दलील को ख़ारिज करते हुए पीठ ने कहा,

"कोर्ट में पेश फ़ोटोग्राफ़ से स्पष्ट है और इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि यह निर्माण नया लगता है और यह ठीक फूटपाथ पर बनाया गया है। अगर यह मान भी लिया जाए कि निर्माण सुप्रीम कोर्ट के 29 सितम्बर 2009 की कट ऑफ़ तिथि से पहले बनाया गया, फूटपाथ पर बने निर्माण को कभी भी संरक्षित नहीं किया जा सकता विशेषकर तब जब अदालत में ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया है जो यह साबित कर सके कि इस संरचना का निर्माण उचित अथॉरिटी से अनुमति लेने के बाद बनाया गया है।"

इस तरह, अदालत ने RWA के सदस्यों पर मुक़दमे के खर्च के रूप में ₹25,000 का जुर्माना लागाया और कहा कि इस राशि को COVID 19 के लिए मुख्यमंत्री के राहत कोष में डाल दिया जाए। अदालत ने कहा कि चूंकि शहर अभी लॉकडाउन में है इसलिए वह बीबीएमपी के ख़िलाफ़ कोई विपरीत आदेश नहीं दे रहा है पर हम उसे अपने क़ानूनी कर्तव्य की याद दिला रहे हैं।

इस मामले की अगली सुनवाई अब 30 जुलाई को होगी। 

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