"दोषी का दाम्पत्य संबंध रखने का अधिकार पूर्ण नहीं": पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट मद्रास एचसी के हालिया फैसले से सहमति जताई
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि एक दोषी का वैवाहिक संबंध रखने का अधिकार पूर्ण नहीं है और यह 'उचित प्रतिबंध', 'सामाजिक व्यवस्था', 'सुरक्षा चिंताओं', 'अच्छे व्यवहार' के अधीन है।
जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह और जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के हालिया फैसले से अपनी सहमति व्यक्त की। इस मामले में यह फैसला सुनाया गया कि एक अपराधी के वैवाहिक संबंध रखने का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है और एक दोषी के लिए संतान उत्पन्न न कर पाने पर उपचार प्राप्त करने का उसका अधिकार उपलब्ध है।
इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि एक दोषी व्यक्ति को आम आदमी के समान अधिकारों का आनंद नहीं मिल सकता, क्योंकि कानून का पालन करने वाले नागरिक और कानून का उल्लंघन करने वाले कैदी के बीच अंतर होना चाहिए।
संक्षेप में मामला
अदालत नेहा द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें उसके हत्या के मामले में दोषी पति को पैरोल देने की मांग की गई। उसके पति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। याचिका में मांग की गई कि याचिकाकर्ता के साथ उसके पति को वैवाहिक संबंधों की स्थापना के लिए पैरोल पर रिहा किया जाए। याचिका में एक वैकल्पिक प्रार्थना यह की गई कि उन्हें जेल परिसर में वैवाहिक संबंध बनाने/बनाए रखने की अनुमति दी जाए।
याचिकाकर्ता ने 17 अप्रैल, 2016 को दोषी पति से शादी कर ली और 10 अगस्त, 2016 को उसके पति को गिरफ्तार कर लिया गया और तब से वह हिरासत में है।
इसके बाद उसने 19 नवंबर, 2020 को वैवाहिक संबंधों की समाप्ति के लिए पैरोल के लिए एक आवेदन दिया। उसे जेल अधीक्षक, जिला जेल, गुरुग्राम ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह एक गंभीर आपराधिक श्रेणी है इसलिए, वह हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिज़नर्स (अस्थायी रिहाई) संशोधन अधिनियम, 2013 के संदर्भ में पैरोल देने के लिए, हरियाणा गुड कंडक्ट प्रिज़नर्स (अस्थायी रिहाई) संशोधित नियम, 2015 के तहत उक्त छूट का हकदार नहीं है।
उसी को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने वर्मतान याचिका दायर कर उक्त आदेश को चुनौती दी।
राज्य के तर्क
हरियाणा राज्य ने प्रस्तुत किया कि "जसवीर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य, 2015 (1) आरसीआर (आपराधिक) 509" में न्यायालय के फैसले के संदर्भ में एक विवाहित की वैवाहिक संबंधों के लिए उपलब्ध अधिकार और पात्र अपराधी उन शर्तों के अधीन है जैसा कि क़ानून के तहत निर्धारित है।
राज्य ने यह भी तर्क दिया कि जसवीर सिंह के मामले में जारी निर्देशों के संदर्भ में हरियाणा राज्य ने 27 सितंबर, 2021 को एक जेल सुधार समिति का गठन किया था। इस प्रकार, याचिकाकर्ता का पति मांगे गए उद्देश्य के लिए पैरोल का लाभ उठा सकता है। पैरा 93 2013 अधिनियम की शर्तों के अधीन या वह जेल सुधार समिति द्वारा जारी किए जाने वाले निर्देशों की प्रतीक्षा कर सकता है और उसके बाद यदि ऐसा है तो आवेदन कर सकता है।
कोर्ट का आदेश
शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि हरियाणा राज्य ने जेल सुधार समिति का गठन किया। इस तरह, समिति प्रमुख जेल परिसरों का दौरा करने के बाद एक साल के भीतर अपनी सिफारिश करेगी।
इसके अलावा, जसवीर सिंह मामले के मामले में हाईकोर्ट के तथ्यों और टिप्पणियों का विश्लेषण करते हुए न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि यह स्पष्ट है कि एक दोषी के दाम्पत्य संबंध रखने का अधिकार क़ानून के तहत निर्धारित शर्तों के अधीन है।
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ न्यायालय ने निर्देश दिया:
"पैरोल लेने का दोषी का अधिकार जसवीर सिंह के मामले (सुप्रा) में फैसले के पैरा 93 द्वारा शासित होगा, जब तक कि जेल सुधार समिति वैवाहिक और पारिवारिक संबंध के लिए दिनांक 28.09.2021 के निर्देशों के आलोक में जेल में कैदी के लिए एक वातावरण बनाने के लिए एक योजना तैयार नहीं करती है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि जेल सुधार समिति अपनी सिफारिशें करते समय मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर विचार कर सकती है।
कोर्ट ने अंकुर मित्तल, अतिरिक्त महाधिवक्ता, हरियाणा को माननीय मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की कॉपी, जेल सुधार समिति और हरियाणा सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव, जेल विभाग, सचिवालय, चंडीगढ़ आवश्यक कार्यवाही के लिए हरियाणा सिविल को भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
केस का शीर्षक - नेहा बनाम हरियाणा राज्य और अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (पीएच) 21
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