ईडब्ल्यूएस कोटे का पूर्वव्यापी आवेदन संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को झारखंड लोक सेवा आयोग के एक विज्ञापन को रद्द कर दिया, जिसमें पुराने आवेदनों को पूर्वव्यापी रूप से ईडब्ल्यूएस कोटे का लाभ देने का प्रयास किया गया था। 2019 में प्रकाशित विज्ञापन में 2013 और 2015 की पुरानी रिक्तियों को, 2019 की रिक्तियों के साथ जोड़ दिया गया था।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की सिंगल बेंच ने कहा, "2013 और 2015 के विज्ञापनों के समय, ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10% आरक्षण का लाभ नहीं था। रिक्तियों को एक साथ जोड़कर 2013 और 2015 की रिक्तियों को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के 10% आरक्षण का लाभ दिया गया। यह भारत के संविधान के जनादेश के खिलाफ है।"
कोर्ट ने झारखंड राज्य को 103 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 की रोशनी में विज्ञापन को संशोधित करने का भी निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पहले के रिक्त पद संवैधानिक जनादेश के भीतर भरे जा सकें। बेंच ने कहा, "10% ईडब्ल्यूएस कोटा का पूर्वव्यापी आवेदन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ है।"
मामला
याचिकाकर्ताओं ने 2019 में झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) द्वारा सहायक अभियंता (सिविल) के पद पर नियुक्ति के लिए जारी किए गए एक विज्ञापन को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जो ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10% आरक्षण की पूर्वव्यापी स्तर पर लागू करता था।
उक्त विज्ञापन के अनुसार, वर्ष 2019 के लिए अधिसूचित रिक्तियों के साथ वर्ष 2013 और 2015 के पहले के विज्ञापनों के लिए एक चयन प्रक्रिया के संचालन के लिए अनारक्षित श्रेणी के लिए विलय की गई रिक्तियों को अधिसूचित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि भारत सरकार ने कार्यालय ज्ञापन दिनांक 31.01.2019 को सिविल पदों और सरकारी सेवाओं में ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10% आरक्षण शुरू करने का अपना निर्णय प्रकाशित किया था। इसलिए, झारखंड राज्य 15.02.2019 के एक प्रस्ताव के साथ सामने आया, जिसके तहत ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रदान किया गया था, जो 15.01.2019 से प्रभावी था। जिसके बाद आरक्षण की सीमा का प्रतिशत बढ़ाकर 60% करने के लिए 2001 के राज्य नियमों में संशोधन भी किए गए थे।
याचिकाकर्ताओं ने 2019 के विज्ञापन से दुखी होकर दावा किया कि भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार, यह स्पष्ट किया जा सकता है कि इसकी प्रयोज्यता का प्रभाव पोस्ट फैक्टो होगा और पूर्वव्यापी नहीं होगा और इसलिए, जेपीएसी ने 2013 और 2015 के अपने पहले के विज्ञापनों को हटा दिया क्योंकि उस समय कोई ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू नहीं था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट सौरभ शेखर ने दलील दी कि चूंकि याचिकाकर्ता ईडब्ल्यूएस कैटेगरी से संबंधित नहीं है, इसलिए विज्ञापन ने, पहले के रिक्तियों पर उनके अधिकारों का उल्लंघन किया, जिन्हें बाद में पूर्वव्यापी तरीके से लागू कर 10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ दिया गया।
याचिका में दलील दी गई कि 103 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 के अनुसार, अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (5) को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को विशेष प्रावधान प्रदान करने के लिए 14 जनवरी 2019 के आधिकारिक गजट में डाला गया था।
इसलिए, 103 वें संशोधन अधिनियम, 2019 को पूर्वव्यापी स्तर पर लागू कर आरक्षण की सीमा को 50% से बढ़ाकर 60% करने का राज्य सरकार का फैसला संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है। इसलिए, हाईकोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि, "क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण को पूर्वव्यापी स्तर पर प्रभावी किया जा सकता है या नहीं?"
अवलोकन
कोर्ट ने अपने अवलोकन में कहा राज्य सरकार ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण 15.01.2019 से प्रभावी किया था, जिसे स्पष्ट रूप से 15.02.2019 के प्रस्ताव के क्लॉज 11 से तय किया गया था। इसलिए, झारखंड को ईडब्ल्यूएस के लिए 10% आरक्षण, 15.01.2019 से प्रभावी बनाने की आवश्यकता थी।
मुद्दे के कानूनी सवाल की विशिष्टता को समझने के लिए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के कई फैसलों पर भरोसा किया।
एमआर बालाजी और अन्य मैसूर राज्य और अन्य (1976) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया था कि अनुच्छेद 15 (4) के तहत सीमा के अभाव के कारण कोर्ट आरक्षण की सीमा की कोई सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है।
बेंच ने इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (1992) के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने बहुमत से एमआर बालाजी मामले के दृष्टिकोण को स्वीकार किया था और कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण के साथ, कुछ असाधारण स्थिति को छोड़कर, आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती है।
इस मुद्दे पर फैसलों विश्लेषण और शामिल कानून के प्रश्न के अवलोकन के बाद बेंच ने कहा, "इस प्रकार, आरक्षण को पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ प्रभावी बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, यह भारत के संविधान के जनादेश के खिलाफ है।.....2013 और 2015 के विज्ञापन के समय, ईडब्ल्यूएस के लिए 10% आरक्षण लागू नहीं था और रिक्तियों को विलय कर 2013 और 2015 की रिक्तियों को ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के आरक्षण का लाभ प्रदान किया गया है। यह भारत के संविधान के जनादेश के खिलाफ है।"
उक्त अवलोकन के साथ बेंच ने 2019 के विज्ञापन को रद्द कर दिया और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पूर्वव्यापी आवेदन को संविधान के अनुच्छेद 14 अनुच्छेद 16 का उल्लंघनकारी घोषित किया। बेंच ने झारखंड राज्य को निर्देश दिया कि विज्ञापन को संशोधित किया जाए और 2013, 2015 की रिक्तियों के लिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण को पूर्वव्यापी स्तर पर लागू ना किया जाए। साथ ही नई रिक्तियों को 8 सप्ताह के भीतर अलग से विज्ञापित किया जाएगा।
केस टाइटिल: रणजीत कुमार साह और अन्य झारखंड और अन्य राज्य। WP (S)No.53 of 2020
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