सार्वजनिक रोजगार में महिलाओं के लिए आरक्षण केवल क्षैतिज हो सकता है, उर्ध्वाधर नहींः मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2022-09-09 07:36 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक रोजगार में महिलाओं के लिए आरक्षण केवल क्षैतिज रूप से किया जा सकता है, उर्ध्वाधर नहीं।

चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की पीठ ने तमिलनाडु लोक सेवा आयोग को तमिलनाडु गवर्नमेंट सर्वेंट (कंडीशन ऑफ सर्विस) एक्ट, 2016 में संशोधन का निर्देश दिया, अन्यथा इसे अल्ट्रा वायर्स माना जाएगा।

पीठ ने कहा,

उन मामलों में जहां नियुक्तियां होनी बाकी हैं, हमारी ओर से की गई व्यवस्था लागू की जाए और यदि प्रतिवादी इसे अधिनियम, 2016 की धारा 26 के उल्लंघन में पाते हैं तो इसे असंवैधानिक घोषित किया जाएगा, क्योंकि संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय महिला उम्मीदवारों के लिए पदों को उर्ध्वाधर रूप से व्यवस्थित करने का प्रावधान नहीं करते हैं।

याचिकाकर्ताओं ने तमिलनाडु गवर्नमेंट सर्वेंट्स (कंडीशन ऑफ सर्विस) एक्ट, 2016 की धारा 26 और 27 के अनुसार महिलाओं के आरक्षण के लिए की गई व्यवस्था को चुनौती दी ‌थी।

उक्त अधिनियम के प्रावधान यह निर्धारित करते हैं कि सीधी भर्ती के माध्यम से भरी जाने वाली सभी रिक्तियों का न्यूनतम 30% महिला उम्मीदवारों के लिए अलग रखा जाएगा, इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना कि नियुक्ति के आरक्षण का नियम पदों पर लागू होता है या नहीं, और जिन पदों पर आरक्षण का नियम लागू होता है, 30% रिक्तियों को महिला उम्मीदवारों के लिए अलग रखा जाएगा, यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग मुस्लिम, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग या ‌डिनोटिफाइड कम्यूनिटी एंड जनरल टर्न के आरक्षण के बाद होगा। महिला उम्मीदवार भी पुरुष उम्मीदवारों के साथ शेष 70% रिक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने की हकदार होंगी।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 16 (2) और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में स्थापित मिसाल का उल्लंघन करता है।

अदालत ने दोहराया कि इंद्रा साहनी में अदालत ने विशेष रूप से यह माना था कि महिलाओं को पिछड़े वर्ग के नागरिक की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है और उन्हें अलग से एक कमजोर वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके लिए संविधान में कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया गया है।

अदालत ने इस प्रकार सुझाव दिया कि राजेश कुमार डारिया बनाम राजस्थान लोक सेवा आयोग और अन्य, (2007) 8 SCC 785 में निर्णय के बाद सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण की व्यवस्‍था की जानी है, जिसमें अदालत ने निम्नानुसार देखा,

उचित और ठीक तरीका यह है कि पहले ओसी कोटा (50%) को योग्यता के आधार पर भरना उचित और सही तरीका है; फिर प्रत्येक सामाजिक आरक्षण कोटा यानी एससी, एसटी और बीसी भरें; तीसरा चरण यह पता लगाना होगा कि उपरोक्त आधार पर विशेष आरक्षण से संबंधित कितने उम्मीदवारों का चयन किया गया है। यदि क्षैतिज आरक्षण के लिए निर्धारित कोटा पहले से ही संतुष्ट है- यदि यह एक समग्र क्षैतिज आरक्षण है- तो कोई और प्रश्न नहीं उठता है। लेकिन अगर इससे संतुष्ट नहीं है, तो विशेष आरक्षण के उम्मीदवारों की अपेक्षित संख्या लेनी होगी और उम्मीदवारों की संबंधित संख्या को हटाकर उनके संबंधित सामाजिक आरक्षण श्रेणियों में समायोजित करना होगा।

अदालत ने कहा कि यदि अधिनियम की धारा 26 की व्याख्या इस तरह की जानी है कि पहले महिला उम्मीदवारों के लिए 30% पदों को आरक्षित करना है और उसके बाद आगे बढ़ना है, तो ऐसी व्याख्या संवैधानिक नहीं है और यह रद्द करने योग्य है। इस प्रावधान की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार की जानी चाहिए। अदालत ने जोर देकर कहा कि ऊर्ध्वाधर आरक्षण केवल सामाजिक आरक्षण के मामले में लागू किया गया था और विशेष आरक्षण के मामले में इसे क्षैतिज रूप से किया जाना था।

चूंकि नियुक्तियां पहले ही की जा चुकी थीं, इसलिए अदालत ने नियुक्तियों को रद्द करना उचित नहीं समझा, लेकिन साथ ही अदालत ने उन लोगों को नियुक्ति के अधिकार से वंचित करना उचित नहीं पाया, जो योग्यता के आधार पर इसके हकदार थे। इस प्रकार अदालत ने प्रतिवादियों को पूरी सूची को पुनर्व्यवस्थित करने का निर्देश दिया और कहा कि यदि किसी याचिकाकर्ता को व्यवस्था के आधार पर योग्यता के आधार पर जगह मिलती है तो उन्हें नियुक्ति दी जानी चाहिए।

केस टाइटल: एम सतीश बनाम सचिव, राजस्व विभाग और अन्य| WP No 6201 of 2013

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 393

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