किराया एक कर नहीं, यूपी नगर पालिका अधिनियम की धारा 173-ए के तहत भूमि राजस्व के बकाया के रूप में इसकी वसूली नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1916 किसी भी नगर पालिका को अधिनियम की धारा 173-ए के तहत किसी दुकान के किराये की बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करने का अधिकार नहीं देता है।
कथित तौर पर याचिकाकर्ताओं पर बकाया किराए की वसूली के लिए बरेली के नगर पालिका परिषद के कार्यकारी अधिकारी द्वारा जारी किए गए वसूली प्रमाणपत्रों और कलेक्टर द्वारा अधिनियम की धारा 173-ए (भू-राजस्व के बकाया के रूप में करों की वसूली) के तहत जारी परिणामी रिकवरी सिटेशनों को चुनौती देते हुए कई रिट याचिकाएं दायर की गई थीं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि नगर पालिका द्वारा आवंटित दुकान के कब्जे वाले किसी भी दुकानदार पर बकाया किराए का कोई भी कथित बकाया केवल अधिनियम, 1916 के अध्याय-VI सहपठित धारा 292 (अन्य अचल संपत्ति के किराए की वसूली) के तहत वसूल किया जा सकता है। यह तर्क दिया गया कि भूमि पर किराया देय नहीं है और इसलिए इसे धारा 173-ए या धारा 291 के तहत भू-राजस्व के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है, जो कलेक्टर को भूमि पर भू-राजस्व के रूप में किराया एकत्र करने का अधिकार देता है।
अधिनियम, 1916 के अध्याय-VI (नगरपालिका दावों की वसूली) में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, धारा 167 के तहत बिल जारी किए जाने थे। याचिकाकर्ता द्वारा 15 दिनों की अवधि के भीतर उक्त बिल को पूरा करने में विफल रहने पर, मांग नोटिस धारा 168 के तहत जारी किया जा सकता था। इसके बाद, किसी भी विफलता पर धारा 169 लागू होगी, यानी वारंट जारी किया जाएगा, जिसे अधिनियम, 1916 की धारा 170, 171 और 172 के तहत निर्धारित तरीके से निष्पादित किया जा सकता है।
न्यायालय के समक्ष दायर याचिकाओं में, धारा 173-ए के तहत वसूली प्रमाणपत्र और परिणामी रिकवरी सिटेशन जारी करने से पहले कोई बिल नहीं बनाया गया था।
जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने कलेक्टर द्वारा जारी किए गए रिकवरी सर्टीफिकेट और रिकवरी सिटेशन को अधिकार क्षेत्र के बिना होने के कारण रद्द कर दिया। यह माना गया कि यूपी नगर पालिका अधिनियम, 1912 नगर पालिका को किसी दुकान के किराये की बकाया राशि को भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करने का अधिकार नहीं देता है।
किसी भी बकाया के भुगतान के लिए बकाएदार को पंद्रह दिन की अवधि प्रदान की जाती है। यह माना गया कि उक्त अवधि के भीतर अपना बकाया पूरा करने में विफल रहने के बाद ही अधिनियम के अध्याय VI के तहत आगे की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा,
“अधिनियम, 1916 की धारा 292 को पढ़ने से पता चलता है कि नगर पालिका द्वारा दुकान आवंटित किए जाने के बाद उस पर कब्ज़ा करने वाले व्यक्ति से दुकान के किराए का कोई भी बकाया केवल अध्याय VI में निर्धारित तरीके से ही वसूल किया जा सकता है। किराया एक कर नहीं है और इसलिए, इसे अधिनियम, 1916 की धारा 173-ए के तहत भूमि राजस्व के बकाया के रूप में वसूल नहीं किया जा सकता है।”
तदनुसार, रिट याचिकाओं की अनुमति दी गई।
केस टाइटल: मंजीत सिंह और अन्य उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट सी नंबर 30049 ऑफ 2016]