तलाक की कार्यवाही में भरण-पोषण के आवेदन का अस्वीकार होना, पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करने से नहीं रोक सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-08-01 13:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाक की याचिका के लंबित रहने और इस तरह की कार्यवाही में भरण-पोषण के लिए दायर एक आवेदन का अस्वीकार होना,एक पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मांगने के हक से वंचित नहीं करेगा।

जस्टिस योगेश खन्ना इस मामले में पति द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहे थे,जिसमें फैमिली कोर्ट के समक्ष निर्णय के लिए लंबित सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर भरण-पोषण याचिका और आदेश को चुनौती दी गई थी।

पति का कहना था कि आक्षेपित आदेश और भरण-पोषण याचिका हाईकोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा विधिवत स्पष्ट और दोहराए गए सहमति आदेश और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय का प्रत्यक्ष उल्लंघन हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि फैमिली कोर्ट ने इस मुद्दे पर पारित आदेशों की सराहना किए बिना पति की तरफ से दायर उस आवेदन को यांत्रिक तरीके से खारिज कर दिया,जिसमें प्रतिवादी पत्नी की तरफ से दायर भरण-भोषण की याचिका को खारिज करने की मांग की गई थी।

न्यायालय ने देखा कि दोनों बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करने के बहाने याचिकाकर्ता पति अपनी पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहा है। जिस पर न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पता चलता है कि यह याचिकाकर्ता स्वयं था जिसने अपने दोनों बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करने के लिए स्वेच्छा से सहमति जताई थी।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि प्रतिवादी पत्नी को देय भरण-पोषण की कीमत पर ऐसी सहमति नहीं दी जा सकती थी और याचिकाकर्ता पति द्वारा दी गई इस तरह की रियायत को उसकी पत्नी के भरण-पोषण की मांग करने के अधिकार के विपरीत नहीं पढ़ा जा सकता है।

कोर्ट ने कहा,

''इसलिए जहां याचिकाकर्ता ने स्वयं दण्ड से मुक्ति के साथ सहमति आदेश का उल्लंघन किया है, वह यह नहीं कह सकता है कि प्रतिवादी को उपचारात्मक उपायों की तलाश करने का कोई अधिकार नहीं है। यह सच है कि उसने स्कूल फीस का भुगतान करने के बहाने पिछले दो वर्षों से प्रतिवादी को किसी भी तरह के भरण-पोषण का भुगतान नहीं किया है।''

यह भी कहा, ''यदि उन्हें कोई आपत्ति थी, तो वह माननीय सुप्रीम कोर्ट को उस समय सूचित कर सकते थे जब उन्होंने स्वेच्छा से अपने बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करने के लिए कहा था। बाद में वह यह नहीं कह सकते हैं कि वह स्कूल फीस का भुगतान कर रहे हैं,इसलिए अपनी पत्नी को किसी भी राशि का भुगतान करने में असमर्थ हैं। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी को भरण-पोषण का भुगतान करना बंद कर दिया था और इस प्रकार कोई अन्य विकल्प न मिलने पर प्रतिवादी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया।''

कोर्ट ने कहा कि पत्नी की कार्रवाई में कोई दोष नहीं निकाला जा सकता है, क्योंकि यह याचिकाकर्ता पति है जो पहले सहमति आदेश का पालन करने में विफल रहा है और इस प्रकार वह बाद में यह आरोप नहीं लगा सकता है कि पत्नी को सहमति आदेश के तहत कार्य करना चाहिए।

''तलाक के लिए एक याचिका की लंबितता और ऐसी याचिका में भरण-पोषण के लिए दायर एक आवेदन की अस्वीकृति, प्रतिवादी को सीआरपीसी की धारा 125 (इसके दायरे और परिधि को देखते हुए) के तहत भरण-पोषण की मांग करने से वंचित नहीं करती है। याचिकाकर्ता द्वारा स्कूल फीस का भुगतान करने के आधार पर प्रतिवादी को भरण-पोषण देने से इनकार करके उसे अधर में नहीं छोड़ा जा सकता है।''

तद्नुसार, न्यायालय ने याचिका का निपटारा करते हुए निचली अदालत को निर्देश है कि वह याचिकाकर्ता के शैक्षिक खर्चों में योगदान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पत्नी के भरण-पोषण को तय करे।

अदालत ने आदेश दिया, ''... इसलिए इन बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए उसका भरण-पोषण फिर से तय किया जाए। लंबित आवेदन, यदि कोई हो, का भी निपटारा किया जाता है।''

केस टाइटल- सौमित्र कुमार नाहर बनाम पारुल नाहर

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