कामगार की 'बहाली' केवल रोजगार के मूल स्थान पर की जा सकती है: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने इस सिद्धांत को दोहराया कि यदि कर्मचारी को उसके मूल रोजगार के स्थान पर बहाल नहीं किया जाता है तो बहाली आदेश मान्य नहीं होगा।
न्यायमूर्ति एम.एस. रमेश ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 17बी के तहत अंतिम आहरित मजदूरी की मांग करने वाली एक याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की। यह प्रावधान हाईकोर्ट में लंबित कार्यवाही के लिए काम करने वाले को पूर्ण वेतन का भुगतान करने के लिए संदर्भित करता है।
याचिका खारिज होने के करीब दो महीने बाद काम करने वाले पाटिल वीरशेट्टी को काम पर लौटने के लिए कहा गया। हालांकि, अपने पिछले रोजगार के स्थान यानी होसुर में वापस जाने के बजाय प्रबंधन द्वारा उन्हें पुडुचेरी में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां कामगार की आवश्यकता थी।
प्रबंधन ने कहा कि इस तरह के बदलाव का कारण COVID-19 महामारी के कारण होने वाली शिफ्टों के प्रतिबंध को देखते हुए था।
कामगार ने रोजगार के स्थान में परिवर्तन के कारण उक्त आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया।
प्रबंधन ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि कामगार अंतिम आहरित मजदूरी के लिए अपात्र था, क्योंकि उसने धारा 17बी मजदूरी का लाभ उठाने के लिए पुडुचेरी कारखाने में अपने निर्दिष्ट कार्यस्थल पर रिपोर्ट नहीं की थी।
इसका जवाब देते हुए कामगार के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि उसका अंतिम कार्यस्थल होसुर में था इसलिए नए बहाली आदेश को 'पुनर्स्थापना के आदेश के रूप में बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता।'
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने दीपाली गुंडू सुरवासे बनाम क्रांति जूनियर शिक्षक महाविद्यालय (डी.ईडी.) और अन्य (2013) 10 एससीसी 324 पर अपना भरोसा रखते हुए पीडी शर्मा बनाम भारतीय स्टेट बैंक एआईआर 1968 एससी 985 के फैसले के आधार पर कर्मचारियों की बहाली पर स्थिति स्पष्ट की।
न्यायालय के अनुसार, इन मामलों में हमेशा यह निर्धारित किया गया कि जब कामगार की बर्खास्तगी की स्वीकृति के लिए आईडी अधिनियम की धारा 33 (2) (बी) के तहत एक आवेदन खारिज कर दिया जाता है, तो नियोक्ता द्वारा की गई कार्रवाई शुरू से ही शून्य हो जाती है। कर्मचारी सेवा में बना रहेगा और उसकी सेवा की शर्तें भी बिना किसी रुकावट के जारी रहेंगी जैसे कि विचाराधीन आदेश में नहीं बनाया गया है।
अदालत ने अपने आदेश में बहाली के एक और पहलू पर ध्यान दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दीपाली गुंडू सुरवासे बनाम क्रांति जूनियर शिक्षक महाविद्यालय (D.ED.) और अन्य में दोहराया, जो बताता है कि,
"किसी कर्मचारी को उस पद पर बहाल करने का विचार जो उसने बर्खास्तगी या हटाने या सेवा की समाप्ति से पहले धारण किया था, का तात्पर्य है कि कर्मचारी को उसी स्थिति में रखा जाएगा जिसमें वह नियोक्ता द्वारा की गई अवैध कार्रवाई के लिए होता।"
लक्ष्मी मिल्स लिमिटेड, कोयंबटूर बनाम श्रम न्यायालय, कोयंबटूर और अन्य एआईआर 1962 मैड 335 के मामले को भी यह स्थापित करने के लिए संदर्भित किया गया है कि एक बार बर्खास्तगी के आदेश को खारिज कर दिए जाने के बाद प्रबंधन के पास कर्मचारी को उसके पिछले रोजगार के स्थान के अलावा किसी अन्य कार्यस्थल पर बहाल करने का अधिकार नहीं होता। वास्तव में इस तरह का कदम काफी अवैध कार्रवाई होगी और अदालत द्वारा उल्लिखित उदाहरणों में निर्धारित अनुपात के विपरीत होगा।
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि कर्मचारी के काम के लिए रिपोर्ट नहीं करने का सवाल ही नहीं उठता।
कोर्ट ने कहा,
"इस पृष्ठभूमि में दिनांक 15.07.2020 के स्थानांतरण आदेश के माध्यम से कर्मचारी को होसुर से पुडुचेरी स्थानांतरित करके उसे बहाल करने के प्रबंधन के वर्तमान निर्णय को 'बिल्कुल भी बहाल करने का आदेश' नहीं माना जा सकता।"
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि बर्खास्तगी के आदेश की अस्वीकृति के बाद से कामगार को अन्यत्र लाभकारी रूप से नियोजित नहीं किया गया। इसलिए वर्तमान रिट याचिका दायर करने की तारीख से शुरू होकर मुख्य रिट याचिका में अंतिम निर्णय धारा 17बी के तहत अपने अंतिम आहरित वेतन का भुगतान करने के लिए प्रबंधन को निर्देश देना उपयुक्त है।
केस शीर्षक: प्रबंधन, माइक्रो लैब्स लिमिटेड बनाम पाटिल वीरशेट्टी और अन्य।
मामला संख्या: 2021 का WMP.No.3730, 2020 के W.P.No.10833 में
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