मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'तेलिया तालाब' में मछली पकड़ने पर प्रतिबंध बहाल किया, कहा-कलेक्टर नगर परिषद की ओर से पहले ही लागू प्रस्ताव पर रोक नहीं लगा सकते

Update: 2023-11-29 14:31 GMT
Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंदसौर नगर परिषद की ओर से तेलिया तालाब में मछली पकड़ने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है। कोर्ट ने हाल ही में परिषद के प्रस्ताव की समीक्षा और मछली पकड़ने का पट्टा देने के जिला कलेक्टर के निर्देश को रद्द कर दिया।

बेंच ने मध्‍य प्रदेश नगर पालिका अध‌िनियम (एक परिषद के प्रस्ताव के क्रियान्वयन को निलंबित करने की कलेक्टर की शक्ति) की धारा 323 का अवलोकन किया, जिसका कलेक्टर ने इस्तेमाल किया था। बेंच ने कहा कि पहला प्रस्ताव पांच सालों से अध‌िक समय से साल 2012 से लागू था।

कोर्ट ने कहा,

“...कलेक्टर निलंबन का आदेश तभी पारित कर सकते थे, जब कार्रवाई/आदेश/प्रस्ताव अभी तक पूरा/निष्पादित/कार्यान्वित नहीं हुआ हो। मौजूदा मामले में आठ नवंबर, 2012 का प्रस्ताव पहले ही निष्पादित हो चुका है और कम से कम पांच वर्षों तक लागू रहा... यह भी पता नहीं है कि कलेक्टर ने यह राय कैसे बनाई कि नगर परिषद का प्रस्ताव कानून या नियम या उसके तहत बनाए गए उपनियमों के अनुरूप नहीं है।”

अदालत ने देवेंद्र कुमार पालीवाल बनाम एमपी राज्य और अन्य (2008) में धारा 323 की व्याख्या का उल्लेख करने के बाद उक्त टिप्पणियां की।

जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस प्रणय वर्मा की खंडपीठ ने यह भी कहा कि जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मछली पकड़ने पर प्रतिबंध के संबंध में निर्णय लेने के लिए स्थानीय अधिकारी सबसे अच्छी स्थिति में हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि इस तरह के निषेध के कारण सैकड़ों मछुआरे अपनी आजीविका से वंचित हो सकते हैं, जिला कलेक्टर के लिए परिषद के प्रस्ताव पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं था।

उल्लेखनीय है कि 'तेलिया तालाब' (झील) मंदसौर शहर में स्थित है और धर्म और पर्यटन के क्षेत्र में विशेष महत्व रखता है। विभिन्न हिंदू मंदिर और आश्रम 'तेलिया तालाब' के किनारे स्थित हैं, जहां सालाना लाखों श्रद्धालु आते हैं। विभिन्न धार्मिक समुदायों की ओर से कई रिप्रेजेंटेशन दिए जाने के बाद, मंदसौर नगर परिषद ने नवंबर, 2012 में तेलिया तालाब में मछली पकड़ने के पट्टे देने पर प्रतिबंध लगा दिया।

हालांकि 2017 में जिला कलेक्टर ने राज्य की मछली पकड़ने की नीति [मध्य प्रदेश मत्स्य पालन की नीति] का हवाला दिया और परिषद से अपने 2012 के प्रस्ताव की समीक्षा करने के साथ-साथ मछली पकड़ने के पट्टे देने का आग्रह किया। हालांकि, नगर परिषद ने जुलाई 2018 में एक अन्य प्रस्ताव के माध्यम से अपने पहले के निर्णय की पुष्टि की।

जिसके बाद कलेक्टर ने परिषद की ओर से पारित दोनों प्रस्तावों को निलंबित कर दिया और राज्य की नीति के अनुसार मछली पकड़ने के लिए पट्टे देने का निर्देश दिया। उक्त आदेश और अपर आयुक्त, उज्जैन 2020 द्वारा पारित अपीलीय आदेश से व्यथित होकर एक डॉक्टर ने हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा जनहित याचिका दायर की।

उपरोक्त आदेशों को रद्द करते हुए, डिवीजन बेंच ने पाया कि कलेक्टर ने अधिनियम की धारा 323 के तहत शक्ति का प्रयोग करने के लिए कोई कारण नहीं बताया था। बेंच ने कहा कि प्रावधान में विशेष रूप से निर्धारित किय गया है कि 'परिषद के प्रस्ताव पर तभी रोक लगाई जा सकती है जब यह परिषद या जनता के हितों के लिए हानिकारक हो या जनता या किसी वर्ग या व्यक्तियों के निकाय को चोट या परेशानी का कारण बन रहा है या शांति भंग होने की संभावना है और अन्यथा नहीं।"

कोर्ट ने कहा, “…माना जाता है कि मछली पकड़ने की नीति एक वैधानिक नीति नहीं है, बल्कि केवल एक दिशानिर्देश है। स्थानीय अधिकारी जनता की भावनाओं के आधार पर प्रतिबंध लगाने के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं। कलेक्टर ने निश्चित रूप से शक्तियों और अधिकार क्षेत्र से परे काम किया है।”

अदालत ने आगे कहा कि कि राज्य सरकार ने दिसंबर, 2020 में विवादित आदेशों की पुष्टि करके अपनी शक्तियों से परे काम किया, जिस पर अदालत ने मार्च, 2020 में रोक लगा दी थी।

केस टाइटलः डॉ. दिनेश कुमार जोशी बनाम मध्य प्रदेश राज्य, प्रमुख सचिव, शहरी प्रशासन और विकास विभाग और अन्य के माध्यम से,

रिट याचिका संख्याः 5043/2020

साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एमपी)

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