फरलो से इनकार करने के कारणों की रिकॉर्डिंग केवल औपचारिकता नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने जेल विभाग को विस्फोट के दोषी के मुकदमे की लागत का भुगतान करने का निर्देश दिया

Update: 2022-12-02 06:41 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अमरावती केंद्रीय कारागार के अधीक्षक को विस्फोट के एक दोषी को, जिसकी उम्र 60 वर्ष है, "रूढ़िबद्ध कारणों" से फरलो देने से इनकार करने पर कानूनी खर्च या 'याचिका की लागत' का भुगतान करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने जुर्माना लगाते हुए कहा,

"जिस तरह से विवादित आदेश पारित किया गया है, उस पर विचार किया जाए, कुछ पुराने कारणों को दर्ज किया गया है, जिससे मामले के महत्वपूर्ण और प्रासंगिक तथ्यों पर ध्यान न देने का पता चलता है और यह भी तथ्य है कि यह पहला अवसर नहीं है जब याचिकाकर्ता को असुविधा, विलंब और अन्याय का अनुभव हुआ है। हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान वकील की प्रार्थना उचित है और अनुमति योग्य है।"

जस्टिस एसबी शुकरे और जस्टिस एमडब्ल्यू चंदवानी की खंडपीठ ने कहा कि 1997-98 जामा मस्जिद सीरियल ब्लास्ट के दोषी मोहम्‍मद सगीर बशीर खान छह बार फरलो पर रिहा हुआ था और उसने समय पर आत्मसमर्पण किया था और एक बार भी फरलो नहीं छोड़ा था। कोर्ट ने सात दिनों के भीतर खान को फर्लो पर रिहा करने का आदेश दिया।

अदालत ने कहा कि खान को पहले भी हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि डीआईजी, प्रिजन, नागपुर ने तर्कपूर्ण आदेश पारित करने की बाध्यता के बावजूद रूढ़िबद्ध कारणों से फरलो से इनकार कर दिया था।

कोर्ट ने कहा,

"जेल नियम, 1959 के नियम 8(7) के तहत कारणों की रिकॉर्डिंग की आवश्यकता केवल औपचारिकता नहीं है और निश्चित रूप से पुराने कारणों को जैसे का तैसा दर्ज करते हुए आदेश को पारित करने के लिए लाइसेंस नहीं है।

यह कानून का बखूबी स्थापित सिद्धांत है कि जब भी विवेक के प्रयोग होता है तो यह जिम्मेदारी के साथ होता है। इसे यथोचित, निष्पक्ष और इस प्रकार लागू किया जाए कि कानून के उस उद्देश्य को पूरा किया जा सके जिसके तहत यह दिया गया है।"

जेल (बॉम्बे फरलो और पैरोल) नियम, 1959 के नियम 2 के तहत जेल उप महानिरीक्षक (क्षेत्रीय) फरलो के लिए आवेदन तय करता है।

अदालत ने कहा,

"मंजूरी देने वाले प्राधिकरण यानी कारागार के उप महानिरीक्षक, जो यहां प्रतिवादी नंबर एक हैं, उन्हें दिया गया विवेक अनिर्देशित और असंबद्ध नहीं है।"

अदालत ने कहा कि जेल नियम, 1959 के तहत मंजूरी देने वाले प्राधिकरण को कानून के स्थापित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए फरलो के आवेदनों पर निर्णय लेने में उचित सावधानी बरतनी चाहिए।

2004 में मुंबई की एक सत्र अदालत ने खान को 10 अन्य लोगों के साथ नवंबर 1997 से फरवरी 1998 के बीच जामा मस्जिद में, विभिन्न रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों के अंदर सिलसिलेवार विस्फोटों से संबंधित एक मामले में दोषी ठहराया।

खान को आईपीसी की कई धाराओं समेत हत्या, साजिश, भारतीय रेलवे अधिनियम की धारा 150 (2) और धारा 151 के साथ आईपीसी की धारा 120-बी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान की रोकथाम अधिनियम की धारा 4 के लिए दोषी पाया गया था।

उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

खान को इससे पहले छह बार 2008, 2012, 2015, 2016, 2019 और 2021 में रिहा किया गया था। खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता जैसे व्यक्तियों का पिछला आचरण बहुत महत्वपूर्ण है।

इसके अलावा, सामान्यीकृत कारण जैसे; अपराध की जघन्यता, जनता का गुस्सा, और कानून-व्यवस्था की स्थिति में गड़बड़ी की संभावना, फरलो से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

तदनुसार अदालत ने उचित शर्तों के अधीन फरलो पर रिहाई का आदेश दिया।

केस टाइटल: मो. सगीर बशीर चौहान बनाम जेल उप महानिरीक्षक, पूर्वी क्षेत्र, नागपुर

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