रेप/पॉक्सो मामले- "सरकारी सर्कुलर के मुताबिक डीएनए, अन्य रिपोर्ट संबंधित अधिकारियों को 15 दिनों के भीतर भेजें": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिए

Update: 2021-10-05 05:54 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दुष्कर्म मामलों में डीएनए र‌िपोर्ट या पोक्सो एक्ट मामलों की जांच के दरमियान हिरासत में ली गई या बरामद वस्तुओं के संबंध में रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर संबं‌धित जिला प्राधिकारणों को दी जाए।

जस्टिस राजीव सिंह की खंडपीठ ने सरकार के 2018 के परिपत्रों के मद्देनजर यह निर्देश जारी किया और कहा कि कई मामलों में परिपत्रों में निहित निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

संक्षेप में मामला

अदालत महफूज नाम के एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर अपने पिता की हत्या का आरोप है। उसे इकबालिया बयान और पड़ोसी शाबान के बयान के आधार पर मामले में आरोपी बनाया गया था।

कथित तौर पर, उसके पिता बार-बार उसे अपनी भाभी के साथ अंतरंग न होने के लिए कह रहे थे, जिसके बाद उसने अपने पिता को मार डाला। उसने इस तथ्य को जांच अधिकारी के सामने स्वीकार किया।

उसके पड़ोसी ने जांच अधिकारी को बताया कि घटना की तारीख की पिछली शाम को उसने उससे चाकू मांगा था और 16.06.2020 की रात को आवेदक के पिता की हत्या कर दी गई थी। वारदात की जगह से चाकू बरामद किया गया था।

हालांकि, उसके वकील ने प्रस्तुत किया कि आरोप पत्र दायर किया गया है.....निचली अदालत ने आरोप तय किए गए थे और मुखबिर, साथ ही आवेदक की मां को निचली अदालत के समक्ष पेश किया गया था, जिन्होंने अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं किया था।

दूसरी ओर, एजीए ने आवेदक को जमानत की प्रार्थना का विरोध करते हुए कहा कि जांच के दरमियान, आवेदक की संलिप्तता पाई गई और अपराध में प्रयुक्त चाकू की पहचान गवाह शाबान ने की है।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि निदेशक द्वारा रखी गई एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, सभी वस्तुओं पर मानव रक्त पाया गया था और इसलिए, यह प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक जमानत का हकदार नहीं है।

कोर्ट का आदेश

आवेदक के पड़ोसी के बयान को ध्यान में रखते हुए कि आवेदक ने घटना की तारीख की पिछली शाम को उससे चाकू मांगा था और उसी चाकू का इस्तेमाल आवेदक के पिता की हत्या में किया गया था, अदालत ने माना कि वह जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं था।

हालांकि, ट्रायल कोर्ट को किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन दिए बिना छह महीने की अवधि के भीतर मामले की सुनवाई समाप्त करने का निर्देश दिया गया था।

केस का शीर्षक - महफूज बनाम यूपी राज्य

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