बलात्कार महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ सबसे बर्बर अपराधों में से एकः दिल्ली हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार मामले में 6 में से 3 आरोपियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा

Update: 2022-02-15 06:30 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मामले में तीन आरोपियों की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि बलात्कार एक महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ किए गए सबसे बर्बर अपराधों में से एक है।

अदालत ने हालांकि इस मामले में तीन अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है।

जस्टिस चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि,

''बलात्कार सबसे बर्बर और जघन्य अपराधों में से एक है जो न केवल बलात्कार-पीड़िता की गरिमा के खिलाफ बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ भी किया जाता है। प्रत्येक नागरिक की गरिमा संविधान के अनुच्छेद 21 व 14 के तहत निहित समानता खंड के मूल सिद्धांतों में से एक है, चूंकि ये प्रावधान हमारे संविधान के ''फ़ोन्स ज्यूरिस'' हैं। ये अपराध एक महिला के पवित्र शरीर और समाज की आत्मा के खिलाफ होते हैं।''

न्यायालय ने कहा कि प्रासंगिक दंड कानून का उद्देश्य महिलाओं को ऐसे अपराधों से बचाना और इस तरह की आपराधिक प्रवृत्ति को समाप्त करके समाज की अंतरात्मा को जीवित रखना है।

पीठ ने यह भी कहा कि,

''प्रत्येक अदालत का यह कर्तव्य है कि वह अपराध की प्रकृति और जिस तरह से इसे किया गया है, उसे देखते हुए उचित सजा सुनाए। इसलिए, अपराध की गंभीरता को देखते हुए, बिना किसी उचित आधार के सजा में कमी करना कानून के शासन की अवधारणा के लिए एक अभिशाप होगा और इसलिए मामले के तथ्यों को देखते हुए ऐसी कोई छूट नहीं दी जा सकती है।''

न्यायालय इस मामले में छह आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर आपराधिक अपीलों पर विचार कर रहा था। इन सभी को वर्ष 2012 में दर्ज एक प्राथमिकी के संबंध में दोषी करार देने के बाद सजा सुनाई गई थी। इसी आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी।

19 मई 2012 को पुलिस नियंत्रण कक्ष में एक सूचना प्राप्त हुई कि एक ट्रक में एक महिला के साथ कई लोगों ने बलात्कार किया है। उक्त सूचना मिलने पर पुलिस टीम मौके पर पहुंची और पीड़िता का बयान दर्ज किया गया। अपने बयान में, पीड़िता ने बताया कि वह एक कूड़ा बीनने वाली है और उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है।

उसने बताया कि लकी, विक्की, यासीन खान, सत्यजीत विश्वास, उमा शंकर और अमित नाम के आरोपियों ने उसके साथ बलात्कार किया। उसने विक्की नामक आरोपी द्वारा उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने का भी आरोप लगाया। इसके अलावा, उसने यह भी आरोप लगाया कि उसे तीन सह-आरोपियों द्वारा ग्रामीण सेवा में ले जाया गया जहां विक्की ने उसके साथ फिर से बलात्कार किया। उसने यह भी आरोप लगाया कि आरोपियों ने उसे वहीं छोड़ दिया और धमकी दी कि अगर उसने इस घटना के बारे में किसी को बताया तो जान से मार देंगे।

आरोपी व्यक्तियों को निम्नलिखित अपराधों के तहत दोषी ठहराया गया थाः

- विक्की को भारतीय दंड संहिता की धारा 366, 506, 377, 376 (2) (जी) और 34 के तहत दोषी ठहराया गया था।

- लकी को भारतीय दंड संहिता की धारा 366, 376(2)(जी) और 34 के तहत दोषी ठहराया गया था।

- यासीन खान को भारतीय दंड संहिता की धारा 366, 376(2)(जी) और 34 के तहत दोषी ठहराया गया था।

- अमित को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(जी) के तहत दोषी ठहराया गया था।

- उमा शंकर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(जी) के तहत दोषी ठहराया गया था।

- सत्यजीत बिस्वास भारतीय दंड संहिता की धारा 366, 376(2)(जी) व 34 के तहत दोषी ठहराया गया था।

रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का विश्लेषण करते हुए, न्यायालय ने माना कि प्रथम दृष्टया, जांच, पूछताछ और ट्रायल के विभिन्न चरणों के दौरान दर्ज किए गए पीड़िता के बयानों में कई विरोधाभास हैं।

अदालत ने कहा कि यह एक स्थापित कानूनी प्रस्ताव है कि जब पीड़िता का बयान विश्वास को प्रेरित करता है और इसे अदालत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो पीड़िता के एकमात्र सबूत के आधार पर सजा दी जा सकती है और किसी पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती है, बशर्ते जब तक कि कुछ ऐसे दमदार कारण न हो,जो अदालत के लिए उसके बयान की पुष्टि को आवश्यक बना दें।

अदालत ने कहा कि,

''मामूली विरोधाभास या महत्वहीन विसंगतियां,एक विश्वसनीय अभियोजन मामले को खारिज करने का आधार नहीं होनी चाहिए। पीड़िता/शिकायतकर्ता की गवाही की भी किसी अन्य गवाह की गवाही के रूप में संभावनाओं की प्रबलता के सिद्धांत (principle of preponderance of probabilities) पर सराहना की जानी चाहिए। हालांकि, यदि अदालत को पीड़िता के बयान को उसके फेस वैल्यू के आधार पर स्वीकार करना मुश्किल लगता है, तो अदालत ऐसे प्रत्यक्ष या पर्याप्त सबूत की तलाश कर सकती है,जो उसकी गवाही का समर्थन करते हों।''

अदालत ने यह भी माना कि महत्वपूर्ण विरोधाभास, चूक और सुधार (भले ही पीड़िता के बयान में बहुत कम हों) की अगर अनदेखी कर दी जाए या उन पर विचार न किया जाए तो यह गलत सजा की पुष्टि करके अपीलकर्ता के मामले को प्रभावित करेंगे।

कोर्ट ने कहा कि,

''एक आरोपी के खिलाफ चल रहे बलात्कार के मामले से न्यायालयों को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ निपटना चाहिए, ऐसे मामले की व्यापक संभावनाओं की जांच करनी चाहिए और गवाहों के साक्ष्य उन मामूली विरोधाभासों या महत्वहीन विसंगतियों से प्रभावित नहीं होंने चाहिए, जो महत्वपूर्ण चरित्र के नहीं हैं।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि, ''हालांकि, बलात्कार के मामलों में भी,अपराध के उस प्रत्येक घटक को सकारात्मक रूप से साबित करने की जिम्मेदारी हमेशा अभियोजन पक्ष की होती है जिसे वह स्थापित करना चाहता है और इस तरह की जिम्मेदारी कभी नहीं बदलती है। बचाव पक्ष का यह कर्तव्य नहीं है कि वह यह बताए कि कैसे और क्यों बलात्कार के मामले में पीड़िता और अन्य गवाहों ने आरोपी को झूठा फंसाया है। अभियोजन पक्ष को अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है और बचाव पक्ष की ओर से मामले की कमजोरी का समर्थन नहीं ले सकता है।''

पूर्वाेक्त को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस मामले में अभियुक्तों के दो सेट हैं- एक जिनके खिलाफ कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं है और दूसरे सेट में वे शामिल हैं,जिनके खिलाफ चिकित्सा साक्ष्य मौजूद हैं। तदनुसार, अदालत ने आरोपी अमित, सत्यजीत और यासीन खान को संदेह का लाभ दिया और उन्हें बरी कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि,''पहले से ही, अभियुक्तों ने अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर दिया है और अभियोजन पक्ष के मामले में इस तरह की स्पष्ट खामियों के बावजूद,यदि ऊपर वर्णित अभियुक्तों को और भी कैद में रखा जाता है तो यह न्याय का मजाक होगा। इसलिए, आक्षेपित निर्णय को रद्द किया जाता है और अपीलकर्ता/आरोपी - अमित उर्फ सोनू जाट, सत्यजीत विश्वास उर्फ सत्ते और यासीन खान उर्फ तेहना को वर्तमान मामले में बरी किया जाता है।''

हालांकि, कोर्ट ने विक्की, लकी और उमा शंकर की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा और उनकी अपीलों को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि,

''नवीनतम नामिनल रोल के अनुसार, 24 दिसंबर 2021 को, आरोपी उमा शंकर को अपनी एक महीने और आठ दिनों की शेष सजा काटनी बाकी थी। आज की तारीख में, उसकी सजा पूरी हो चुकी है। तदनुसार, आरोपी उमा शंकर को जेल नियमावली के तहत प्रक्रिया के अनुसार रिहा करने का निर्देश दिया जाता है। अन्य आरोपी व्यक्ति, जिन्हें यहां बरी नहीं किया गया है और अभी भी उन्हें अपनी सजा को पूरा करना बाकी है, उन्हें जेल मैनुअल के अनुसार उनकी शेष सजा काटने के बाद ही रिहा किया जाए।''

केस का शीर्षक- अमित उर्फ सोनू जाट बनाम राज्य व अन्य जुड़े मामले

उद्धरण- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 112

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