पक्षकार की ओर से हलफनामे पर हस्ताक्षर करने पर वकील के क्लर्क की हाईकोर्ट ने की कड़ी आलोचना, कहा- यह धोखाधड़ी के समान

Update: 2025-11-18 14:36 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने बिना इन दस्तावेजों की विषय-वस्तु को जाने वकीलों या उनके क्लर्कों द्वारा अपने मुवक्किलों की ओर से आवेदनों/याचिकाओं/प्रति-हलफनामों आदि के हलफनामों पर हस्ताक्षर करने की घटना की ओर ध्यान दिलाया। साथ ही कहा कि ऐसा आचरण धोखाधड़ी के समान है और अस्वीकार्य है।

कोर्ट ने कहा:

“न्याय को अक्सर लाक्षणिक रूप से अंधा कहा जाता है, लेकिन न्यायालयों के अधिकारियों को जजों को दृष्टिहीन समझकर पीठ के विश्वास को तोड़ने का साहस नहीं करना चाहिए... वकीलों या उनके क्लर्कों द्वारा बिना उचित प्रतिनिधित्व के अपने हस्ताक्षरों के साथ हलफनामा/याचिका/आवेदन/जवाब दाखिल करने की प्रथा की सराहना नहीं की जा सकती और इसकी निंदा की जानी चाहिए।”

कोर्ट ने आगे कहा,

“एक वकील का क्लर्क, निस्संदेह, वकील के कार्यालय में अमूल्य सहायता प्रदान करता है...कोई भी बात किसी वकील के क्लर्क को वकील की ओर से कोर्ट में उपस्थित होने का अधिकार या अधिकार नहीं देती।”

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि अदालतें किसी भी वकील द्वारा दायर किए गए दस्तावेज़ की प्रामाणिकता का अनुमान लगाने से पहले दो बार नहीं सोचतीं। इस दृष्टि से वकील या उनके क्लर्कों को अदालत के समक्ष किसी पक्षकार की ओर से औपचारिक रूप से शपथपत्र देने का कोई अधिकार नहीं है, खासकर ऐसे दस्तावेज़ जिनमें उनके व्यक्तिगत ज्ञान से परे तथ्य शामिल हों।

अदालत ने कहा कि यदि वकील या उनके क्लर्क को पक्षकार द्वारा प्रस्तुत किसी विशेष दस्तावेज़ की सामग्री के बारे में कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं है तो उसे रिकॉर्ड पर लाने से पहले उसकी उचित रूप से पुष्टि की जानी चाहिए और पक्षकार से शपथपत्र पर शपथ लेने के लिए कहना भी बेहतर होगा।

अदालत याचिकाकर्ता द्वारा दायर निरस्तीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने, जैसा कि प्रतिवादी ने आरोप लगाया, सिविल कोर्ट में प्रतिवादी के नाम से याचिका प्रस्तुत की थी, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए विभाजन के मुकदमे के शीघ्र निपटारे की मांग की गई। ट्रायल कोर्ट ने भी इस याचिका के संबंध में आदेश पारित किया, जिसमें कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया गया।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि याचिका उसके स्थानीय वकील द्वारा दायर की गई, जिसके क्लर्क ने याचिका पर अपने हस्ताक्षर किए, वह भी गलत नाम से। यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किसी भी दस्तावेज़ में दूसरे पक्ष के नाम से अपने हस्ताक्षर नहीं किए।

वकील ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने उस स्थानीय वकील के विरुद्ध संबंधित बार एसोसिएशन और राजस्थान बार काउंसिल के समक्ष उचित कार्रवाई हेतु शिकायत प्रस्तुत की। इसके अलावा, यह भी दलील दी गई कि याचिकाकर्ता को इस आदेश से कोई वित्तीय या अन्य लाभ नहीं हुआ।

तर्कों पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को प्राप्त लाभ के विवाद में जाए बिना इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता द्वारा गलत हस्ताक्षर प्रस्तुत करके कोर्ट के अभिलेख के साथ छेड़छाड़ की गई।

कोर्ट ने माना कि पक्षकार के गलत हस्ताक्षरों के साथ याचिका दायर करने की ऐसी प्रथा वादी, वकीलों या उनके क्लर्कों की ओर से उचित नहीं है।

वकीलों और उनके क्लर्कों द्वारा अपने मुवक्किलों की ओर से हस्ताक्षर करने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए कोर्ट ने कहा,

“किसी भी याचिका/आवेदन/उत्तर या हलफनामे पर पक्षकार या वकालतनामा/याचिका रखने वाले वकील द्वारा नामित/प्राधिकृत व्यक्ति के बजाय किसी वकील या उसके क्लर्क द्वारा हस्ताक्षर करना अस्वीकार्य है और कानून को तोड़ने के ऐसे प्रयास अस्वीकार्य हैं।”

कोर्ट ने कहा कि भले ही इस आदेश से किसी को कोई पूर्वाग्रह या नुकसान नहीं हुआ हो। फिर भी कोर्ट इस तरह के अनुचित कृत्य को स्वीकार नहीं करेगा।

इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने कहा कि वह FIR में लगाए गए आरोपों की सत्यता का आकलन नहीं कर सकता कि वास्तव में इस कृत्य के लिए कौन जिम्मेदार था। इसलिए वह FIR रद्द करने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि FIR रद्द करने से समाज में गलत संदेश जाएगा।

तदनुसार, जांच अधिकारी को जांच जारी रखने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने वकीलों और उनके क्लर्कों से अपेक्षा व्यक्त की कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं होगी।

Title: Rakesh Jain v State of Rajasthan & Anr.

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