राजस्थान हाईकोर्ट ने TADA के 80 साल पुराने मामले में दोषी को 30 दिन की पैरोल दी
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (टाडा, TADA) के तहत दोषी ठहराए गए 80 साल से ज्यादा पुराने मामले में आरोपी को पैरोल दी। उक्त आरोपी पिछले 27 साल से जेल में है।
याचिकाकर्ता ने अपनी मेडिकल कंडिशन के आधार पर आपातकालीन पैरोल देने के लिए रिट याचिका (पैरोल) दायर की थी। यह तर्क दिया गया कि वह "डीएम, सीएडी (कोरोनरी आर्टरी डिजीज), बीपीएच (सौम्य प्रोस्थेटिक हाइपरप्लासिया)" से पीड़ित है।
जस्टिस बीरेंद्र कुमार और जस्टिस पंकज भंडारी ने कहा,
"परिणामस्वरूप, रिट याचिका (पैरोल) की अनुमति दी जाती है। जेल अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता को 30 दिनों की अवधि के लिए पैरोल पर 50,000/- रुपये के अपने व्यक्तिगत बांड और समान राशि का जमानतदार प्रस्तुत करने पर रिहा करें। जेल अधिकारियों को इस शर्त के साथ कि वह रिहाई की तारीख से 30 दिनों की समाप्ति पर खुद को जेल प्राधिकरण के सामने आत्मसमर्पण करेगा और पैरोल अवधि के दौरान शांति और शांति बनाए रखेगा।"
अदालत ने यह भी आदेश दिया गया कि निर्धारित तिथि तक आत्मसमर्पण करने में विफल रहने पर जेल प्राधिकरण कानून के अनुसार आगे बढ़ेगा।
अदालत ने याचिकाकर्ता को पैरोल देते समय इस बात पर ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता को पहले सुप्रीम कोर्ट और बाद में हाईकोर्ट ने पैरोल दी। पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद उसने जेल अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता की उम्र लगभग 80 वर्ष है, जो 27 साल से अधिक समय तक हिरासत में है। उसे उचित उपचार की आवश्यकता है, क्योंकि उसकी मेडिकल स्थिति बिगड़ रही है।
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता को बुलाने के अदालत के निर्देशों के अनुसरण में व्हीलचेयर में अदालत के समक्ष पेश किया गया। अदालत ने पाया कि अधीक्षक सेंट्रल जेल, जयपुर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में याचिकाकर्ता की मेडिकल स्थिति को दर्शाया गया है।
याचिकाकर्ता के वकील ने गुजरात राज्य और अन्य बनाम लाल सिंह @ मंजीत सिंह और अन्य, [(2016) 8 एससीसी 370] और असफाक बनाम राजस्थान राज्य और अन्य, [(2017) 15 एससीसी 55] भरोसा किया। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट के पास शक्ति है कि वह टाडा के प्रावधानों के तहत अपराधी को पैरोल दे सकें।
भारत संघ की ओर से पेश वकील ने रिट याचिका (पैरोल) का विरोध किया। लतीफ छमतुमिया शेख बनाम गुजरात राज्य [2001 सीआरआईएलआर (गुजरात, 65] पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि आरोपी टाडा में दोषी ठहराया गया है और रिट याचिका (पैरोल) हाईकोर्ट के समक्ष नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट निशांत व्यास पेश हुए। जीए-सह-एएजी जी.एस. राठौर और सलाहकार, आनंद शर्मा क्रमशः राज्य और भारत संघ की ओर से पेश हुए। सुनवाई के दौरान अजय सिंह, कांस्टेबल 8656 और कपिल देव कांस्टेबल 10416, आरपीएल जयपुर भी उपस्थित रहे।
केस शीर्षक: मोहम्मद अमीन अपने बेटे के माध्यम से: जुल्काफिल अमीन अंसारी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (राज) 121
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