राजस्थान हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त लेखापरीक्षा निरीक्षक, जिसकी पेंशन के लिए लड़ते हुए मृत्यु हो गई, के सेवानिवृत्ति लाभ जारी करने का निर्देश दिया, जुर्माना भी लगाया
राजस्थान हाईकोर्ट ने सहकारिता विभाग के एक सेवानिवृत्त लेखापरीक्षा निरीक्षक के कानूनी प्रतिनिधियों को सेवानिवृत्ति लाभ जारी करने का आदेश दिया है। उक्त निरीक्षक राज्य द्वारा रोकी गई पेंशन को लेकर अपनी वर्षों की लंबी लड़ाई के बीच मर गए।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि मृतक का सेवा रिकॉर्ड स्वच्छ था और फिर भी उसकी पेंशन एक विभाग से उसके रिकॉर्ड प्राप्त करने में देरी का हवाला देते हुए रोक दी गई थी, जहां उसने एक बार सेवा की थी।
पीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता जैसे कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की बकाया राशि को रोकने की अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि किसी भी विभाग द्वारा दूसरे विभाग से दस्तावेज प्राप्त नहीं किए गए थे। उत्तरदाताओं को यह आश्रय लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि देरी किसी भी प्राधिकरण द्वारा याचिकाकर्ता की आवश्यक फाइल और कागज नहीं भेजने के कारण हुई थी, प्रतिवादी/प्राधिकरण की ओर से ऐसी कार्रवाई निराधार और वस्तुतः मनमाना, अवैध और कानून के विपरीत है।"
कोर्ट ने 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे मृतक की विधवा को भुगतान करना होगा।
याचिकाकर्ता (मृतक के बाद से) जनवरी 2018 में सेवानिवृत्त हो गया था। अदालत ने कहा कि आधा दशक से अधिक समय बीत चुका था और फिर भी प्रतिवादी-अधिकारी ने बिना किसी वैध कारण के उसके सेवानिवृत्ति लाभों को रोक रखा था। याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विभागीय जांच या आपराधिक मामला लंबित नहीं था।
कोर्ट ने अधिकारियों को याद दिलाया कि पेंशन और ग्रेच्युटी बाउंटी नहीं है। यह कर्मचारियों द्वारा निरंतर, बेदाग सेवा के दम पर अर्जित किए गए लाभ हैं और राज्य द्वारा मनमाने ढंग से पेंशन रोके जाने के इस तरह के कृत्य हतोत्साहित करने के लिए उत्तरदायी है।
देवकीनंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1971) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया था।
इन विचारों के आधार पर अदालत ने 30 दिनों के भीतर ब्याज सहित सभी सेवानिवृत्ति लाभों को जारी करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता के परिजनों को देय राज्य पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
केस टाइटल: दयाचंद आर्य बनाम राजस्थान राज्य।