राजस्थान हाईकोर्ट ने जनहित याचिका के अधिकार क्षेत्र के दुरुपयोग की निंदा की, ग्रामीणों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में जोधपुर के दो ग्रामीणों पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने उन्हें अपने निहित स्वार्थों के लिए जनहित याचिका अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग करने को दोषी पाया।
उन्होंने ई-नीलामी के जरिए खनन गतिविधियों के लिए वितरित खदान लाइसेंस के संबंध में जनहित याचिका दायर की थी।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस कुलदीप माथुर की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के आरोप न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत हैं बल्कि राजस्व रिकॉर्ड और विभिन्न रिपोर्टों के विपरीत हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि संबंधित भूमि पर खदान लाइसेंस देने के लिए प्रतिवादियों द्वारा की गई कार्यवाही जनहित के खिलाफ है, इससे बारिश के पानी के प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव होगा और विभिन्न छोटे तालाबों का जलग्रहण क्षेत्र भी प्रभावित होगा, जिन पर लोग और मवेशी निर्भर हैं।
उत्तरदाताओं ने प्रस्तुत किया कि खदान लाइसेंस के लिए ई-नीलामी की कार्यवाही कानून के अनुसार और पर्यावरण अनुमति सहित सभी आवश्यकताओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के बाद की गई है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि भूमि का स्वामित्व सरकार के पास है, और संबंधित अधिकारियों ने सीमांकन के बाद खदान लाइसेंस प्रदान किया है। इसके अलावा, क्षेत्र के 45 मीटर के भीतर कोई सार्वजनिक स्थल, जलग्रहण क्षेत्र या जलाशय नहीं है। अतः खदान लाइसेसों का स्थान राजस्थान माइनर मिनिरल कंसेशन रूल्स, 2017 के नियम 28 के अनुसार है। मामले में उप वन संरक्षक से भी एनओसी मिलने की बात कही गई थी।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के निर्देश पर किए गए स्थल निरीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, यह पाया गया कि विवादित भूमि पर कोई वृक्षारोपण नहीं था। इसके अतिरिक्त, खदान लाइसेंस देने के लिए प्रस्तावित भूमि पर कोई नदी, नाला, तालाब या जलग्रहण क्षेत्र नहीं पाया गया।
रिकॉर्ड पर सामग्री का अवलोकन करते हुए, अदालत ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता खदान के लाइसेंस के लिए ई-नीलामी का एक हस्ताक्षरकर्ता भी है, जिसे उसने चुनौती दी है। अदालत ने कहा कि इससे पता चलता है कि याचिकाकर्ता खुद लाइसेंस प्राप्त करने में रुचि रखता था।
कोर्ट ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता ने उन व्यक्तियों को भी पक्षकार बनाने की परवाह नहीं की जिनके पक्ष में खदान लाइसेंस जारी किए गए थे। यहां तक कि जारी किए गए खदान लाइसेंस को भी चुनौती नहीं दी गई।
अदालत ने कहा, "इस तरह की याचिकाएं परोक्ष उद्देश्य से निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए दायर की जा रही हैं और उचित शोध किए बिना याचिकाएं दायर की जा रही हैं।"
केस- नारायण सिंह व अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।