पुनर्वास की सजा का उद्देश्य, कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में अपराधी को सुधारना है; बॉम्बे हाईकोर्ट ने 20 साल के लड़के को POCSO मामले में जमानत दी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले मंगलवार को एक 20 वर्षीय लड़के को प्रोेटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (POCSO) के तहत जमानत दे दी और कहा कि पुनर्वास की सजा का उद्देश्य एक व्यक्ति के रूप में अपराधी को सुधारना है ताकि वह एक बार फिर से सामान्य कानून का पालन करने वाला सदस्य बन सके।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे एक शुभम थोराट द्वारा दायर एक आपराधिक जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे आईपीसी की धारा 377, 323, 506 और पाॅक्सो एक्ट की धारा 3 (ए), 3 (सी) रिड विद 4, 5(ई) रिड विद धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध में आरोपी बनाया गया था।
जस्टिस डांगरे ने जमानत देने से पहले एक अतिरिक्त शर्त जोड़ी कि आरोपी को क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास काउंसलिंग के लिए जाना जारी रखना होगा और इसके लिए उसे ससून जनरल अस्पताल, पुणे में जाना होगा।
केस की पृष्ठभूमि
आवेदक को 5 फरवरी, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में पुणे की यरवदा जेल में बंद था। पीड़ित लड़के की मां ने 5 फरवरी को इस मामले में शिकायत दर्ज करवाई थी। पीड़ित लड़के की मां के अनुसार, 4 फरवरी को जब वह शाम को घर लौटी, तो उसका 13 साल का बेटा उसे काफी भयभीत नजर आया। जब उसने पूछताछ की, तो उसने उसे बताया कि आवेदक आरोपी ने उसे दिन में करीब 3 बजे अपने घर बुलाया था और जब वह उसके घर गया तो उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और उसे चारपाई पर लिटा लिया और उसके कपड़े निकालने लग गया।
जब लड़के ने आवेदक से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, तो उसने लड़के के साथ मारपीट की। इसके बाद, आवेदक ने उसके साथ यौन संबंध बनाने का प्रयास किया और जब लड़के ने शोर मचाया, तो आवेदक ने उसका मुंह दबा दिया और एक बार फिर अप्राकृतिक कृत्य करने का प्रयास किया। जब पीड़ित को इस कृत्य के कारण चक्कर आया, तो आरोपी ने उसे कपड़े पहनने के लिए कहा और उसने धमकी दी कि अगर उसने किसी को घटना की सूचना दी, तो वह उसे मार देगा।
युवा पीड़ित लड़के का मेडिकल परीक्षण 5 फरवरी को शाम 4ः15 बजे किया गया। उसके निजी अंगों की जांच से पता चला कि गुदा के ऊपर लगभग 2 x 0.2 सेमी का एक चीरा लगा हुआ था, यह बिना किसी रक्तस्राव के लाल रंग का था।
कोर्ट का आदेश
मामले के तथ्यों की जांच करने के बाद, न्यायमूर्ति डांगरे ने उल्लेख किया कि इस तथ्य पर विचार करते हुए कि आवेदक स्वयं 20 वर्ष का है और एक युवा लड़का है। मामले के तथ्यों से पता चलता है कि वह पहले से ही कानून के साथ संघर्ष में है। वही इस मामले में एक रिपोर्ट 3 दिसंबर, 2020 के आदेश के तहत यरवदा सेंट्रल जेल से मंगवाई गई थी।
अतिरिक्त लोक अभियोजक एसवी गावंद ने यरवदा सेंट्रल जेल से आई रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखा,जिसमें जेल के अधीक्षक ने बताया है कि जेल में आवेदक का व्यवहार उसकी कारावास की तारीख यानी 10 फरवरी, 2020 से लेकर अब तक संतोषजनक है।
उसे मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के अधीन भी रखा गया था और मनोरोग संबंधी परेशानी का पता लगाने के लिए भी उसकी जांच की गई थी। यह बताया गया है कि कोई मनोवैज्ञानिक परेशानी या कोई मानसिक बीमारी नहीं है। 21 दिसंबर, 2020 को उनके द्वारा की गई जांच में आरोपी को सहयोगी और मिलनसार पाया गया। उसके विचार सुसंगत हैं और किसी तरह की असामान्यता की सूचना इस रिपोर्ट में नहीं है।
यरवदा सेंट्रल जेल के क्लीनिकल मनोचिकित्सक द्वारा व्यक्त की गई राय में,आवेदक के व्यवहार और मानसिक स्थिति को स्थिर पाया गया है।
जस्टिस डांगरे ने कहा कि,
''जमानत अर्जी का निपटारा करते समय आरोप की गंभीरता के अलावा, आरोपी की उम्र को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। वह पहले भी इस तरह के मामलों में शामिल रहा है,जब वह नाबालिग था और उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 324, 504, 506 के तहत केस दर्ज हुआ था। बालिग होते ही वह वर्ष 2018 में वह चतुरशंगी पुलिस स्टेशन में पंजीकृत दो अपराधों में शामिल था। एक मामला आईपीसी की धारा 323,324,504 व 506 रिड विद आम्र्स एक्ट के तहत दर्ज हुआ था और दूसरा मामला आईपीसी की धारा 354, 354 ए (1) के तहत दर्ज किया गयया था। आवेदक के खिलाफ चैप्टर की कार्यवाही भी शुरू की गई थी।''
कोर्ट ने कानून के साथ संघर्ष में एक युवक की मानसिकता और सजा के सुधारवादी या पुनर्वास संबंधी दृष्टिकोण का विश्लेषण किया-
''क्या एक युवा लड़के को अपराध की ओर अग्रसर करता है जो गहन अध्ययन का विषय है। सहकर्मी दबाव, खराब शिक्षा, खराब सामाजिक आर्थिक स्थिति और उपेक्षित बचपन जैसे कारक कुछ कारक हो सकते हैं। हालांकि किसी भी अपराध को इस आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि उसके आस-पास की परिस्थितियां किसी व्यक्ति को अपराधी बनाती हैं क्योंकि सजा कानून को लागू करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले दबाव है और यह आधुनिक सभ्यता के स्तंभों में से एक है। एक शांतिपूर्ण समाज जीवन प्रदान करना एक राज्य का कर्तव्य है। सजा की कमी के कारण कानून को अपना चेहरा खोना पड़ता है और इसके परिणामस्वरूप कानूनविहीन समाज हो सकता है।
हालाँकि अपराधों पर अंकुश लगाने और दोषियों को सुधारने के लिए सुधारवादी दृष्टिकोण एक बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए सामने आया है, जिसके लिए मनुष्य हकदार है। पूरे विश्व में, पुनर्वास अपराधियों और उनके व्यवहार में मूलभूत परिवर्तन लाना चाहता है। यह आमतौर पर भविष्य की आपराधिकता की संभावना को कम करने के लिए शिक्षा और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन के माध्यम से काम करता है।
सुधारवादी सिद्धांत का उद्देश्य पुनर्वास भावनाओं के रूप में भी जाना जाता है, जो अपराधी को एक व्यक्ति के रूप में सुधारती है ताकि एक बार फिर से आरोपी समुदाय का वह सदस्य बन जाए,जो कानून का पालन करता है।
सुधार का सिद्धांत, जिसे वैश्विक मोर्चे पर कई बार लागू किया जाता है, वह नहीं है जिसे केवल उस समय पर टेस्ट किया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति को सजा सुनाई जाती है।
वह 20 वर्ष की आयु का एक युवा लड़का है, जो पहले से ही कानून के साथ संघर्ष में है और जैसा कि वकील ने तर्क दिया है, उसको लंबे समय तक जेल में रखने से वह कठोर अपराधी बन सकता है और इस आशंका को निराधार नहीं कहा जा सकता है। हालांकि दूसरी तरफ कथित कृत्यों के लिए जो कानूनी रूप से निषिद्ध हैं, उसे दंडित किया जाएगा।''
आरोपी को जमानत देते हुए, अदालत ने कहा कि आवेदक की रिहाई एक युवा आरोपी व्यक्ति के सुधार पर काम करने के लिए एक प्रयोग के रूप में है। मुकदमे की सुनवाई अभी शुरू होनी बाकी है,इसलिए उम्मीद है कि आवेदक किसी भी गैरकानूनी कार्य में खुद को लिप्त नहीं करेगा।
अंत में, जस्टिस डांगरे ने ससून जनरल अस्पताल के डीन से कहा है कि वह ससून अस्पताल में आवेदक के नाम से एक फाइल खोलें और उसकी काउंसलिंग उक्त अस्पताल से एक क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और एक मनोचिकित्सक द्वारा की जाए।
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