पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राजस्व न्यायालयों द्वारा व्हाट्सएप, अन्य मैसेजिंग ऐप के माध्यम से सम्म‍न की तामील के लिए दिशानिर्देश जारी किए

Update: 2023-05-31 16:45 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में राजस्व न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही के निपटारे में देरी से बचने के लिए सम्मन, नोटिस और याचिकाओं को तेजी से और आसान तरीके से तामील करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस अरविंद स‌िंह सांगवान ने निर्देश दिया कि नोटिस, सम्‍मन और दलीलों के आदान-प्रदान की सेवाएं ई-मेल, फैक्स और मैसेजिंग ऐप जैसे व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल आदि द्वारा की जा सकती हैं। अदालत ने कहा है कि सभी राजस्व न्यायालय पक्षों और उनकी ओर से पेश वकीलों को अपना ई-मेल एड्रेस, फोन नंबर व्हाट्सएप आदि प्रदान करने का निर्देश देंगे।

जस्टिस सांगवान ने आगे कहा कि भविष्य में वकीलों को सभी नोटिस ई-मेल या अन्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली त्वरित संदेश सेवाओं के माध्यम से जारी किए जा सकते हैं।

पीठ ने "मुनादी" की प्रक्रिया को समाप्त करने का भी आह्वान किया, जो ऐसे मामलों में ढोल पीटकर जनता का ध्यान आकर्षित करने का एक अप्रचलित तरीका है जहां एक पक्ष सम्‍मन की तामील से बच रहा था।

पीठ ने निर्देश दिया, "...अगर सम्मन की तामील अगली तारीख पर प्रभावी नहीं होती है, तो समाचार पत्र में प्रकाशन का आदेश दिया जाए।"

पीठ ने अपीलीय / पुनरीक्षण न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे अपील या संशोधन दाखिल करने के दरमियान मूल रिकॉर्ड पर जोर न दें और रिकॉर्ड की केवल स्कैन की गई कॉपी/फोटोकॉपी ही मंगाई जाएं ताकि कार्यवाही बिना किसी देरी के जारी रह सके।

अदालत ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे आवश्यक अनुपालन के लिए पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासकों को आदेश की सूचना दें। सुनवाई की अगली तारीख से पहले एक अनुपालन हलफनामा दायर करने के निर्देश भी जारी किया गया है।

अदालत के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाते हुए दायर एक अवमानना ​​याचिका में निर्देश पारित किए गए थे, जिसमें इस तथ्य पर विचार करते हुए कि याचिका पिछले 19 वर्षों से लंबित थी, छह महीने के भीतर एक विभाजन आवेदन का निपटान करने का निर्देश जारी किया गया था।

देरी का कारण यह था कि मामले की सुनवाई कर रहे राजस्व न्यायालय में मूल रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं थे। विलंब का एक अन्य कारण इस तथ्य को बताया गया कि पक्षकारों को बार-बार नोटिस जारी करने के बावजूद सम्मन तामील नहीं किया जा सका।

पीठ ने कहा, "यह सामान्य ज्ञान की बात है कि एक व्यक्ति, जिसके पास जमीन है और वह विभाजन की कार्यवाही को अंतिम रूप देने से बचना चाहता है...कार्यवाही केवल मूल अधिकार क्षेत्र के न्यायालय के समक्ष मूल रिकॉर्ड का इंतजार करने के लिए स्थगित रही।"

अदालत ने कहा कि पार्टियों पर सम्मन का प्रभाव न होना कार्यवाही में देरी के लिए एक और तरीका अपनाया जा रहा है।

पीठ ने निर्देश पारित करते हुए, कृष्णा वेणी नागम बनाम हरीश नागम, 2017 (2) आरसीआर (सिविल) 358 और इन रि कॉग्निज़ेंस फॉर एक्सटेंशन ऑफ लिमिटेशन, 2020 (9) एससीसी 468 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने माना है कि नोटिस, सम्‍मन और दलीलों का आदान-प्रदान ई-मेल, फैक्स और आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली इंस्टेंट मैसेजिंग सेवाओं, जैसे व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल आदि द्वारा किया जा सकता है।

केस टाइटल: अमर सिंह बनाम संजीव कुमार COCP-959/2023 (O&M)

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